वेद मार्ग से हटने के कुपरिणाम

By: Mar 23rd, 2017 12:02 am

( स्वामी रामस्वरूप लेखक, योल, कांगड़ा से हैं )

सनातन ग्रंथों में वर्णन करते हुए ऋषियों ने कहा है कि वेदों में वर्णित विशुद्ध राजनीति के कारण समाज में काम वासना युक्त कोई नर-नारी, क्रोध की वृत्ति वाला मनुष्य या कंजूस पृथ्वी पर नहीं था। यह वैदिक विशुद्ध राजनीति के प्रभाव से ही संभव था। आज दंड व्यवस्था का डर देशवासियों में न होने के कारण देश-समाज में कई वृत्तियां पनप चुकी हैं। आमजन तमाम तरह की समस्याओं से घिरा हुआ है। ऐसा भी नहीं है कि हमारी सरकारों ने किसानों, गरीबों की तरफ ध्यान नहीं दिया, परंतु इसका दायरा बहुत सीमित सा रहा है। इस वर्ग के लिए शिक्षा, खेतों और मकानों में बिजली की आपूर्ति, गांवों में शौचालय एवं स्वच्छता का बेहतर प्रबंध करना अभी दूर की बात है। खेतीबाड़ी में बीज, खाद तथा पानी और फसलों का उचित दाम सुनिश्चित न हो पाने के कारण किसान दुःखी है। किसान अपनी फसल को या तो सड़कों पर फेंककर बर्बाद कर रहा है अथवा मुफ्त में बांटे जा रहा है और सरकार सब देखते हुए भी अनदेखा किए जा रही है। हमारे कृषि प्रधान देश में किसानों एवं गरीबों की ऐसी दुर्दशा वैदिक काल के युगों में कभी नहीं देखी गई है। मैं अमरीका सहित कई देशों में वैदिक प्रचार करने गया और वहां पाया कि उन देशों का प्रत्येक किसान खुशहाल है। कश्मीर अलगाववाद और आतंकवाद से त्रस्त है। पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए छद्म युद्ध तथा घुसपैठ में हमारे जवान शहीद हो रहे हैं। आजादी के बाद ये समस्याएं बढ़ी ही हैं, घटी नहीं हैं। तो क्या हमारे भारतवर्ष के सुंदर भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है? ऋग्वेद में कहा है कि मनुष्य का यह कर्त्तव्य है कि वह सब सुखों को प्राप्त करके अन्य को भी सुख दे तथा परमात्मा को जानकार अधर्म से अलग होकर सत्य धर्म का पालन करे। तो क्या ये वैदिक शिक्षाएं केवल पढ़ने-सुनने के लिए ही होती हैं, इन पर आचरण नहीं होता। क्यों नहीं होता? क्योंकि  प्रायः हमारे देश में अमीर, अमीर होता गया और गरीब, गरीब होता गया। सरकार की ढुलमुल नीति के कारण अमीरी और गरीबी में ऊंच-नीच की भावना बनी रही।

इसी कारण जातिवाद एवं आरक्षण आदि की समस्याओं ने देश को खोखला करके रख दिया। ऋग्वेद में कहा कि जनता साथ-साथ मिलकर उन्नति करे और सदा हिंसा रहित वातावरण बनाकर रखे। जब सरकार ने ऐसी सत्य शिक्षा देने वाले वैदिक ज्ञान को ही परे फेंक दिया, तब अब क्या किया जाए? पिछले युगों में राजाओं एवं नेताओं ने इस संस्कृति के उपदेश घर-घर पहुंचाए थे, जिस कारण संपूर्ण पृथ्वी पर सुख-शांति का वास था। आज हमारे देश के नेताओं ने कोरी वेद-विरुद्ध कुर्सी हथियाने वाली राजनीति को अपनाकर प्रजा को प्राकृतिक आपदा, मजहबों की लड़ाइयों और ऊपर लिखी अनेक समस्याओं में धकेल दिया है। जनता इससे दुःखी है। ऋग्वेद में कहा गया है कि मंत्री प्रजा को सुखी रखें, उन्हें न्याय दें। राजा प्रजा का अपने बच्चों के समान पालन करे। सब प्रजा को सुशिक्षा देने की व्यवस्था करे, अन्न-धन की उन्नति करे, जिससे सबको भरपेट अन्न प्राप्त हो, परंतु शायद मंत्रियों ने इसे यूं लिया कि यह ज्ञान उनके और उनके परिवार के लिए है। अतः दुःख की बात है कि अपनी संस्कृति का ज्ञान न होने के कारण मंत्रियों और राजा आदि को इस वैदिक विशुद्ध राजनीति एवं अपने कर्त्तव्य-कर्मों का बिलकुल भी बोध नहीं है। तब फिर दुःखी प्रजा तो बेचारी रामभरोसे ही जी रही है। व्यक्ति यदि केवल भौतिक उन्नति पर ध्यान देगा और वैदिक आध्यात्मिकवाद को बिलकुल नजरअंदाज कर देगा, तब आध्यात्मिकवाद के अभाव में उसे पाप कर्म करने, भ्रष्टाचार करने, हिंसा और अन्याय करने जैसे अनेक कुकर्मों को करने से कोई नहीं रोक सकेगा। देश में पुनः रामराज्य लाने के लिए राम, कृष्ण, हरिश्चंद्र जैसे अनेक राजाओं के जीवन में स्थापित वैदिक गुणों को वर्तमान  नेताओं तथा प्रजा को भी अपनाने की आवश्यकता है।

इसके अभाव में कुर्सी हथियाने की घिनौनी राजनीति, जिसमें नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर दोषारोपण, प्रत्यारोप, गाली-गलौज, हिंसा, नफरत सरीखे अवगुणों से भरी राजनीति का दौर कभी रुकने वाला नहीं। ऐसे में केवल गरीब जनता ही पिसती रहेगी। आज कैसी यह घिनौनी राजनीति हो रही है, जिसकी शरण में अधिकतर गुंडे पल रहे हैं। जिस राजनीतिक पार्टी ने किसी राजनेता को पाला-पोसा, बड़ा किया, मंत्री आदि का पद दिया, वही राजनेता पार्टी से नमक हलाली न करते हुए दल-बदलू का तमगा लेकर ऊंचे-ऊंचे पदों को पाने की लालसा में भिन्न-भिन्न पार्टियों में चले जाते हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता एनडी तिवारी भी हैं। पर्यावरण समस्या ने देश में कई प्रकार की बीमारियों से देशवासियों को त्रस्त किया। यह सब आज तक की आई सरकारों की कुनीतियों का ही परिणाम है। वनों को काट-काट कर, नदियों के प्राकृतिक स्वरूप से खिलवाड़ और बेतरतीब निर्माण कार्यों ने पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचाई है। वेद कहते हैं कि यज्ञ करने से पर्यावरण में प्रदूषण समस्या पूर्णतः नष्ट हो जाती है, पर हमारी सरकारों ने वेद विद्या का प्रसार न करके यज्ञ का संदेश श्रीराम, श्रीकृष्ण आदि की तरह घर-घर नहीं पहुंचाया। इस प्रकार सत्य छिप गया और आसाराम वाला, राधे मां वाला, संत रामपाल वाला अथवा वेद-विरुद्ध अपने विचार फैलाने वाला मार्ग बनता चला गया। इस मार्ग को छोड़कर पुनः कल्याणकारी वेद मार्ग की ओर लौटना की वक्त की मांग है।


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