शिव को ही माना गया सृष्टि का आदिकर्ता

By: Mar 1st, 2017 12:05 am

हिमाचल के धार्मिक गीतों में जो गीत शिव संबंधी हैं, उनमें शिव को ही सृष्टि का आदिकर्ता कहा गया है। इसके अनुसार सृष्टि के आरंभ में न धरती थी, न आकाश, न जल, न वायु और न ही सूर्य और चंद्र थे। केवल शिव ही धूनी जमाए और भस्म लगाए थे…

प्रागैतिहासिक हिमाचल

खशोंें और बाद में आए आर्यों ने भी यह धर्म इन्हीं आदिम जातियों से ग्रहण किया होगा, क्योंकि आर्य बड़े ही भावुक और प्रकृति पूजक लोग थे। यजुर्वेद में शिव को गिरीश भी कहा गया है। शिव पुराण मंे यह स्पष्ट कथा आती है कि ऋषियों ने भी शिव पर क्रोध किया और उन्हें शाप दे डाला, जिससे उनके लिंग के दो टुकड़े हो गए। शिव पुराण के आधार पर ही हिंदू शिव का प्रसाद खाना निषिद्ध मानते हैं। एक कथा यह भी है कि दक्ष प्रजाति के यज्ञ में शिव को स्थान नहीं दिया गया। इन सारी बातों से विद्वान यह अनुमान लगाते हैं कि खशों और आर्यों के यहां शिव भावना की स्वीकृति थोड़ी विलंब से हुई और आरंभ में समाज के धार्मिक नेता इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि लोग शिव को आर्य देवता के रूप में ग्रहण करें। संभवतः जब खशों तथा आर्यों के यहां की आदम जातियों के साथ विवाह संबंध होने लगे, तब देशी स्त्रियों के साथ शिव की भावना खशों के घरों में नारियों की प्रधानता होने के कारण खश परिवार में भी यह भावना बढ़ती गई, क्योंकि उनकी पत्नियां अधिकतर खशोत्तर आग्नेय-कुलोत्पन्न थीं इसलिए वे अपने कुल देवता की पूजा करने के लिए इतनी व्याकुल थीं। हिमाचल के धार्मिक गीतों में जो गीत शिव संबंधी हैं, उनमें शिव को ही सृष्टि का आदिकर्ता कहा गया है। इसके अनुसार सृष्टि के आरंभ में न धरती थी, न आकाश, न जल, न वायु और न ही सूर्य और चंद्र थे। केवल शिव ही धूनी जमाए और भस्म लगाए थे। शिव ने ही सृष्टि को रचाया है। एक अन्य गीत में शिव के नृत्य का वर्णन इस प्रकार मिलता है। शिव जी नृत्य करते आ रहे हैं। वे पूछते हैं मैं कहां पर नृत्य करूं? शिव तुम जौ और गेहूं के खेतों में अपना नृत्य करो, परंतु जौ, गेहूं के पौधों को न तोड़ना। तुम पूर्ण रूप से नृत्य करो। राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में अगर इस प्रकार के लोक गीतों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए, तो ये अवश्य हमें सिंधु घाटी सभ्यता तक ले जा सकते हैं। शिव उपासना के साथ-साथ यहां पर देवी की भी पूजा होती थी। जॉन मार्शल तथा अन्य भारतीय विद्वानों ने इसे मातृदेवी, भूमि देवी या गृह देवी का नाम दिया है। ऋग्वेद में इसका वर्णन अदिति और पृथ्वी नाम से आता है। पौराणिक काल में इसने शक्ति देवी का रूप धारण कर लिया और दुर्गा, काली, अंबा और पार्वती आदि नामों से प्रसिद्ध हुई। आज भी हिमाचल प्रदेश के हर गांव और हर शिखर पर देवी के मंदिर पाए जाते हैं। हर घर की एक गृह देवी होती है, जिसकी पूजा समय-समय पर घर का स्वामी करता है। इसी प्रकार प्रत्येक गांव की अपनी ऐसी देवी होती है जिसे हम मातृ देवी या भूमि देवी ही कह सकते हैं।


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