अकादमी पर ‘अपनों’ की कुंडली

By: Apr 3rd, 2017 12:05 am

हिमाचल कला, संस्कृति और भाषा अकादमी के तीन विषय हैं-कला संस्कृति और भाषा। नियमानुसार बजट को तीन भागों में बांट कर कला, संस्कृति और भाषा पर व्यय किया जाना चाहिए। खेद की बात है कि कला पर बहुत कम बजट व्यय किया जाता है। पुरस्कारों में भी कला के नाम पर किसी बाहरी कला शिक्षक को पुरस्कृत किया जाता है। डाक्टर विश्वचंद्र हरि और किशोरी लाल वैद्य जैसे कला शिक्षकों को नकार दिया जाता है। अकादमी में सारी अनियमितताएं इसलिए हो रही हैं, क्योंकि सरकार द्वारा नामित उपाध्यक्ष, अकादमी की कार्यकारिणी और सामान्य परिषद के सदस्यों के रूप में कुछ खास लोगों का चुनाव करता है। संभवतः इसी करण, कार्यक्रमों से लेकर पुरस्कार और पुस्तक खरीद तक में मनमानी चल रही है। वर्ष 2012 तक अकादमी का बजट मात्र 75 लाख रुपए के आसपास था। 2012 के बजट में इसे बढ़ाकर 1 करोड़ 35 लाख किया गया। उसके बाद अकादमी के स्टाफ के कई अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए। अब

बजट का मनमाना दुरुपयोग होता दिखता है। 2012 में मैं भी अकादमी कार्यकारिणी का सदस्य था, उस वक्त अनेक योजनाओं के लिए नियम निर्धारित किए गए थे।  इनमें से कई नियमों को नई व्यवस्था होने पर बदल दिया गया। अकादमी की पुरस्कार और पुस्तक खरीद योजना में पिछले 3 सालों की किताबें लेने का प्रावधान था, जिसे अब बदल कर दो साल कर दिया गया। केंद्रीय ललित कला अकादमी में प्रत्येक राज्य से ललित कला के नामी-गिरामी लोगों को नामित करके राज्य के प्रतिनिधित्व के लिए भेजा जाता है। इस बार सरकार ने अकादमी के उपाध्यक्ष को ललित कला अकादमी के सदस्य के रूप में नामित किया है, जबकि प्रदेश में कई प्रख्यात चित्रकार और मूर्तिकार और कला समीक्षक मौजूद हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का उचित प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।

धर्मशाला स्थित कांगड़ा कला संग्रहालय में कांगड़ा की चित्रकला को प्रदर्शित करने के लिए राज्य संग्रहालय शिमला से वर्ष 1990 में कुछ चित्र उधार लेकर प्रदर्शित किए गए। यह संग्रहालय कांगड़ा शैली के चित्रों का संग्रह नहीं बना पाया। ऐसी दशा में मैंने तत्कालीन अधिकारियों को एक योजना बताई थी कि किस प्रकार समकालीन चित्रकारों से उच्च कोटि के चित्र बनवाकर कांगड़ा की कला को जीवंत किया जा सकता है। मेरे इस सुझाव पर तत्कालीन निदेशक श्री राकेश कंवर ने इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए मुझे ओएसडी नियुक्त किया था। इस दौरान मैने अपने शिष्यों के साथ मिलकर करीब 37 चित्रों का निर्माण करके उन्हें एक गैलरी में लगाया था। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है की श्री कंवर के स्थानांतरण के बाद सब कुछ खटाई मे पड़ गया। जिन कलाकारों ने कांगड़ा शैली के स्तरीय चित्रों का निर्माण किया, उन्हें अभी तक पारिश्रमिक नहीं मिल सका है।

– विजय शर्मा, चंबा और कांगड़ा कलम के ख्यातिलब्ध कलाकार हैं।  टांकरी भाषा के विद्वान के रूप में आप पहचाने जाते हैं।


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