कम नकदी अर्थव्यवस्था की कठिन राह

By: Apr 29th, 2017 12:02 am

भारत डोगरा लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं

विमुद्रीकरण के बाद डिजिटल भुगतान प्रणाली और कम नकदी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का लोगों ने स्वागत किया है। लेकिन डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए महीने में चार बार से अधिक नकदी लेन-देन पर शुल्क की व्यवस्था जनता की परेशानियां बढ़ाएगी, उन पर अतिरिक्त बोझ पडे़गा। इस व्यवस्था के अंतर्गत बैंकों ने अपने-अपने ढंग से शुल्क वसूलना शुरू कर दिया है। डिजिटल भुगतान की अनिवार्यता लागू करने से पहले अबाध डिजिटल गेटवे को सुनिश्चित करना ज्यादा जरूरी है, अन्यथा नकदी पर नकेल कसने की जबरन थोपी गई यह व्यवस्था ज्यादती ही कही जाएगी। इससे न केवल आम जनता की, बल्कि व्यापारियों की भी समस्याएं बढ़ेंगी। आयकर चुकाने वाले व्यक्ति को पूरा अधिकार होना चाहिए कि वह अपनी जमा की गई रकम को किस रूप में खर्च करे। उसे खर्च करने का तरीका बताने की कोशिश सरकार को क्यों करनी चाहिए या फिर बैंकों को उसके खर्च करने के तरीके को नियंत्रित करने का अधिकार क्यों होना चाहिए? अपना ही जमा पैसा अगर कोई व्यक्ति निकालना चाहता है, तो उसे बगैर किसी ठोस तर्क के ऐसा करने से क्यों रोका जाना चाहिए? तमाम अध्ययनों से जाहिर हो चुका है कि भारत जैसे देश में, जहां अधिसंख्य लोग तकनीकी संसाधनों के संचालन से अनभिज्ञ हैं, डिजिटल लेन-देन को अनिवार्य बनाना उचित नहीं है। कालेधन, भ्रष्टाचार एवं आर्थिक अपराधों पर नियंत्रण के लिए सरकार की योजनाओं एवं मंशा पर संदेह नहीं है, लेकिन इनके लिए आम जनता पर तरह-तरह के बोझ लादना बदलती अर्थव्यवस्था के दौर में उचित नहीं कहा जा सकता। अगर सरकार बैंकों से नकदी निकालने पर नियंत्रण रखना चाहती है, तो उसे डिजिटल भुगतान पर लगने वाले शुल्क को समाप्त करना चाहिए। नोटबंदी के समय सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया था।

इसके लिए इनामी योजनाएं भी चलाई गईं। इन शुरू की गई लकी ग्राहक योजना और डिजिधन व्यापार योजना में विभिन्न आयु वर्गों व्यवसायों और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में हिस्सा ले रहे हैं। तमाम बैंक और ऐप आधारित वित्तीय कंपनियां डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया को आसान बनाने का प्रयास कर रहे हैं। नोटबंदी के दौरान जब बैंकों में नकदी की किल्लत थी, इसलिए सरकार ने डिजिटल भुगतान को शुल्क मुक्त रखने का आदेश दिया था। पर बैंकों और कंपनियों ने फिर से वही प्रक्रिया शुरू कर दी। ऐसे में जब लोगों को बैंकों से पैसे निकालने और नकदी रहित भुगतान दोनों के लिए शुल्क देना पड़ रहा है, तो उनका रोष समझा जा सकता है। डिजिटल भुगतान की अनिवार्यता को लागू करने से जुड़ा एक अहम सवाल है कि क्या पूरे देश में अबाध डिजिटल गेटवे तैयार हो चुका है? इसमें कोई शक नहीं कि हमें बहुत बड़ी तादाद में लोगों को बहुत कम समय में इंटरनेट, स्मार्टफोन, डिजिटल भुगतान के तौर-तरीके सिखाने हैं। यह बहुत कठिन है। इसमें तकनीक, इंटरनेट तक पहुंच, प्रशिक्षण की बातें हैं, दूरदराज गांवों को तो छोड़ दीजिए, शहरों तक में इंटरनेट और मोबाइल फोन की अबाध सेवा नहीं है। लोगों में इन चीजों की तकनीकी ज्ञान का अभाव है। तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ समुचित साधनों का अभाव भी बड़ी बाधा है। गांवों में आज भी लोगों को मोबाइल फोन से बात करने के लिए उन जगहों पर जाना पड़ता है, जहां नेटवर्क की पहुंच सहज हो। इसलिए जरूरी यह भी है कि डिजिटल गेटवे की व्यवस्था को भी समानांतर तरीके से सुलभ और मजबूत किया जाए। जब तक इंटरनेट की अबाध सेवा नहीं होगी, डिजिटल गेटवे की सहज सहूलियतें नहीं दी जाएंगी, डिजिटल भुगतान को कामयाबी के साथ लागू नहीं किया जा सकेगा। इन स्थितियों में इसकी अनिवार्यता सरकार की बिना सोची-समझी व्यवस्था होगी, जो हठधर्मिता ही कही जाएगी, क्योंकि हमारा देश अभी डिजिटल गेटवे की दृष्टि से अपरिपक्व है।

जिन देशों में तकनीकी सहूलियतें और डिजिटल गेटवे व्यवस्था बेहतरीन है, वहां भी डिजिटल भुगतान सेवा पूरी तरह कामयाब नहीं है। अमरीका में अब भी 46 प्रतिशत भुगतान नकद में होता है। अमरीका और यूरोप के जिन देशों में ब्लूमबर्ग ने सर्वे किया, उन देशों में ई-वॉलेट, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और बिटकाइन जैसी सहूलियतें मौजूद हैं। इसके बावजूद नार्वे को छोड़कर बाकी जगहों पर नोट का ही ज्यादा इस्तेमाल चलन में है। यह एक विरोधाभास ही है कि एक तरफ ई-भुगतान और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए सरकार पुरस्कार योजनाएं लागू कर रही है, दूसरी ओर उन पर शुल्क की व्यवस्था भी थोप रही है। ऐसी स्थिति में वह एक हद तक ही कामयाब हो पाएंगी। डिजिटल भुगतान को लेकर लोगों की ललक तभी बढ़ पाएगी, जब भुगतान के लिए उन्हें फीस न देनी पड़े, उनके सामने उन्नत डिजिटल तकनीक हो। डिजिटल भुगतान के लिए पेमेंट गेटवे वाली कंपनियां जिस तरह मोटी फीस वसूल रही हैं, उससे लोगों में गुस्सा है और वे इसे अपनी मेहनत की कमाई की बर्बादी ही मान रहे हैं। इसलिए मुफ्त भुगतान सेवा वाले डिजिटल गेटवे भी मुहैया कराने होंगे। अन्यथा लोगों को डिजिटल भुगतान के लिए आकर्षित कर पाना आसान नहीं होगा। डिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहित करने के पीछे सरकार की मंशा है कि इससे काले धन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। नकदी का प्रवाह जितना कम होगा, काले धन की संभावना उतनी ही कम होती जाएगी। मगर हकीकत यह है कि डिजिटल लेन-देन आम लोगों के लिए उलझन भरा एवं तकनीकी काम है। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए लोगों को नकदी पर निर्भर रहना ही पड़ता है। फिर व्यापारियों और छोटे कारोबारियों के लिए संभव नहीं है कि वे डिजिटल भुगतान पर निर्भर रह सकें। यदि देश में गैर नकदी लेने-देन की परंपरा को बढ़ाना है, तो गांवों के देश में तकनीकी व्यवस्थाएं थोपने से पहले गांवों को तकनीकी प्रशिक्षण देना होगा, उन्हें दक्ष बनाना होगा। राजनीतिक लाभ उठाने के नाम पर जनता का जीवन दुभर बनाना किसी अघोषित विद्रोह का सबब न बन जाए।


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