कुटिल षड्यंत्रों में उलझा गोवंश

By: Apr 8th, 2017 12:02 am

कंचन शर्मा लेखिका, स्वतंत्र पत्रकार हैं

गोवंश हत्या कोई धर्म, जाति या समुदाय का झगड़ा नहीं, अपितु यह भारत की अर्थव्यवस्था को क्षीण करने का एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है। इसके तहत लार्ड मैकाले ने न केवल भारत की शिक्षा प्रणाली को कमजोर किया, बल्कि यहां की आर्थिकी का गहन अध्ययन कर गोवंश को ही खत्म करने की साजिश रची…

गत 31 मार्च को गुजरात में गऊ संरक्षण अधिनियम में संशोधन किया गया। गुजरात विधानसभा में गोहत्या संशोधन पास हो गया, जिसके तहत गाय की हत्या करने वालों को अब उम्रकैद की सजा होगी। इसके साथ ही गाय की तस्करी करने वालों के लिए भी 10 साल की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा बीफ ले जाने वाले पर पांच लाख का जुर्माना भी लग सकता है, जो कि अत्यंत सराहनीय कदम है। इससे पहले 1999 में भी गुजरात में मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया, तो उस समय कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को हटाने से साफ इनकार किया था। हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद संभालने ही गोहत्या पर पूरी तरह रोक लगाने के न केवल आदेश दिए, बल्कि बूचड़खानों के खिलाफ सख्त कदम उठाकर कई अवैध बूचड़खाने बंद करवाए। इसी तरह गोहत्या पर छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने हाल ही में बयान दिया कि हालांकि छत्तीसगढ़ में गोहत्या का कोई मामला सामने नहीं आया है, फिर भी अगर कोई इस कार्य में लिप्त पाया गया तो उसे उल्टा लटका दिया जाएगा। यह बयान आज के संदर्भ में प्रासंगिक है। वस्तुतः गोवंश हत्या कोई धर्म, जाति या समुदाय का झगड़ा नहीं, अपितु यह भारत की अर्थव्यवस्था को क्षीण करने का एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है। इसके तहत लार्ड मैकाले ने न केवल भारत की शिक्षा प्रणाली को कमजोर किया, बल्कि यहां की आर्थिकी का गहन अध्ययन कर गोवंश को ही खत्म करने की साजिश रची। आदिकाल से ही गोरक्षा के लिए अभियान चलते रहे हैं। बौद्ध धर्म, जैन धर्म ने गोरक्षा की ओर ध्यान दिलाया। महर्षि दयानंद सरस्वती ने गोहत्या बंद करने के लिए बड़ा आंदोलन चलाया। गुरुनानक, कबीर, तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु ने हमेशा गोवंश के हित में बात की। गऊ रक्षा के लिए महर्षि जमदग्नि ने अपने प्राणों तक की आहुति दी।

भगवान श्रीकृष्ण के गोपालन आदर्श को कौन नहीं जानता। महात्मा गांधी ने भी आजादी के बाद गोहत्या बंद करने की बात सबसे ऊपर रखी थी, फिर आखिर क्या हुआ जो आज तक गोहत्या भारत में पूर्ण रूप से प्रतिबंधित नहीं हो पाई, बल्कि उल्टा भारत गोमांस निर्यात में विश्व में नंबर एक पर खड़ा है। कहीं यह एक बहुत बड़ा षड्यंत्र तो नहीं, जिसकी नींव अंग्रेजी शासन में रख दी गई थी। बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर जैसे मुस्लिम शासकों ने भी गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया था। यहां तक कि रावण भी गोवंश की बलि के विरुद्ध था। दरअसल गोहत्या का आरंभ कर अंग्रेजों ने एक तीर से दो निशाने साधे। एक तो उन्होंने भारत की आर्थिकी की रीढ़ पर प्रहार किया। दूसरा हिंदू-मुस्लिम एकता को खत्म करने के लिए फूट डालो व राज करो की नीति का सूत्रपात किया। आज तक हिंदू-मुस्लिम एक होकर भी विलग हैं, यह बहुत बड़ी त्रासदी है। भारत में आज भी 29 में से 11 राज्य ऐसे हैं, जहां गाय, बछड़ा, बैल, सांड काटने व बीफ खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं। बाकी 18 राज्यों में गोहत्या पर पूर्ण या आंशिक रोक है। दरअसल ‘बीफ’ मछली, भेड़-बकरी, मुर्गे के गोश्त से सस्ता होता है, इसी वजह से यह गरीब तबके के भोजन का हिस्सा बन चुका है। खास तौर पर मुस्लिम, ईसाई व आदिवासी जनजातियों के बीच यह अधिक प्रयोग में लाया जाता है। दूसरी ओर भारत में गाय का दूध बढ़ाने वाले आक्सीटोसिन जैसे हानिकारक इंजेक्शनों ने न केवल गायों का बांझ बना दिया, अपितु इन दवाओं से विषाक्त हुए मृत पशुओं को खाने वाले गिद्ध भी भारत में समाप्त हो रहे हैं। जब गायों का मांस इन इंजेक्शनों के प्रभाव से इतना जहरीला हो चुका है तो फिर उसका दूध, गोबर, गोमूत्र कितना हानिकारक होगा, यह शोचनीय है।

यही नहीं, इन इंजेक्शनों के प्रभाव से जहां जो गाय अपने जीवन काल में 18-20 बार तक नया दूध देती थी, अब वो मुश्किल से चार-पांच बार ही दे पाती है। अंततः बांझ होकर परिवार से दुत्कार कर सड़क पर पहुंच जाती है, जहां से वह घात लगाकर बैठे गऊ तस्करों के चंगुल में फंसकर कत्लखाने में पहुंच जाती है। जब भारत की गाय की नस्लों को सुधारने की बात आई तो यह रहस्य यहां छिपाया गया कि वह केवल भारतीय गाय की ही नस्ल है, जिसके दूध से न केवल शारीरिक बल और बुद्धि बल का विकास होता है, अपितु अन्य कई प्रकार के रोगों का निदान होता है। जबकि दूसरी विदेशी गाय की नस्लों के दूध से कई प्रकार के कैंसर होने तक के प्रमाण मिल चुके हैं। यह बात भी गलत है कि बीफ के प्रतिबंध से एक बहुत बड़ा वर्ग बेरोजगार हो जाएगा। एक सर्वे के अनुसार भारत को पशुधन से तीन अरब नब्बे करोड़ रुपए की वार्षिक आमदनी होती है, जो कि भारत की कुल आय का 25 प्रतिशत से भी अधिक है, जबकि बीफ से कुछ हजार करोड़ रुपए की ही आमदनी होती है। इस लिहाज से अगर गोवंश वध पर अंकुश लगे तो भारत की आर्थिकी में बहुत सुधार होगा। दयनीय स्थिति यह भी है कि अंग्रेजी शिक्षा व गांवों के शहरों की ओर पलायन से गोवंश सड़क पर पहुंच चुका है। भारत की आर्थिकी को पुनः सुदृढ़ करने के लिए न केवल भारतीय गायों की नस्लों को बचाना होगा, अपितु केंद्र से गोवंश वध पर प्रतिबंध लगा कठोर कानून बनाने की पुरजोर आवश्यकता है।

ई-मेल : kanchansharma210@yahoo.com


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