डायबिटीज और आधुनिक उपकरण

By: Apr 22nd, 2017 12:05 am

यह तकनीक का ही कमाल है कि कान की लोलकी  में एक सेंसर लगाकर भी पलक झपकते ग्लुकोज का स्तर पता किया जा सकता है। इसकी रीडिंग अल्ट्रासाउंड, विद्युत-चुंबकीय रीडिंग और थर्मल टेक्नोलॉजी पर आधारित होती है। भारत के अन्य हिस्सों की तरह ही हिमाचल में भी कार्डियोवैस्कुलर रोगों में वृद्धि हो रही है। इस परिदृश्य में कार्डियोट्रैक जैसे जीवनरक्षक उपकरणों से काफी फायदा हो सकता है। इस उपकरण के द्वारा मरीज का 12-प्वाइंट इलेक्ट्रो कार्डियोग्राम (ईसीजी) लेकर इसे ब्लूटुथ के सहारे स्मार्टफोन या टैबलेट में ट्रांसफर किया जा सकता है। साथ ही नतीजों को क्लाउड पर अपलोड करके चिकित्सक के पास भेजा जा सकता है। कोई अनियमितता होने पर एक अलार्म बजता है। स्टेंट्स, पेसमेकर्स और हार्ट वॉल्व जैसे अन्य उपकरण हृदय रोगियों के लिए वरदान हैं। पहाड़ी राज्य में स्क्रब टायफस का प्रकोप केवल बरसात के मौसम में बढ़ता है, किंतु यहां टीबी का प्रकोप भी बढ़ रहा है। टीबी के मरीजों के लिए, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में परंपरागत विधियों के अलावा नए-नए सॉफ्टवेयर से भी जीवन में सुविधा हो सकती है। भारत के स्वास्थ्य अधिकारी स्वास्थ्य सेवा को सुलभ बनाने के लिए प्रयासरत रहे हैं, लेकिन इसमें असफलता के पीछे सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की सुलभता का लक्ष्य पूरा करने में अपनाए जा रहे गलत नजरिए की बड़ी भूमिका है। भारत में स्वास्थ्य सेवा के समक्ष अनगिनत समस्याएं मौजूद हैं, जैसे कि चिकित्सकों की अपर्याप्त संख्या या चिकित्सा कर्मियों का अभाव तथा स्वास्थ्य सेवा संबंधी बुनियादी सुविधाओं की कमी आदि। ऐसी हालत में नीति निर्माताओं तथा सरकार द्वारा मौजूदा व्यवस्था में सुधार करना जरूरी है ताकि स्वास्थ्य सेवा पर खर्च और स्वास्थ्य बीमा की व्यापकता बढ़ाकर लोगों को फायदा पहुंचाया जा सके। प्राधिकारियों को सख्त क्वालिटी कंट्रोल का क्रियान्वयन, वर्षों के अनुसांधान के बाद विकिसत नवोन्मेषी उपकरणों की सुलभता भी सुनिश्चित करनी चाहिए।

— डा. पी.सी.नेगी, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष (कार्डियोलॉजी) इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज, शिमला


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