नाट्यशास्त्र

By: Apr 12th, 2017 12:07 am

cereerनाट्यशास्त्र नाट्य कला पर व्यापक ग्रंथ एवं टीका, जिसमें शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच के सभी पहलुओं का वर्णन है। माना जाता है कि इसे तीसरी शताब्दी से पहले भरत मुनि ने लिखा था। इसके कई अध्यायों में नृत्य, संगीत, कविता एवं सामान्य सौंदर्यशास्त्र सहित नाटक की सभी भारतीय अवधारणाओं में समाहित हर प्रकार की कला पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया है। इसका बुनियादी महत्त्व भारतीय नाटक को जीवन के चार लक्ष्यों, धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के प्रति जागरूक बनाने के माध्यम के रूप में इसका औचित्य सिद्ध करना है।

दंत कथा

भरतमुनि के नाट्य शास्त्र के विषय में ऐसी दंत कथा है कि त्रेता युग में लोग दुःख, आपत्ति से पीडि़त हो रहे थे। इंद्र की प्रार्थना पर ब्रह्मा ने चारों वर्णों और विशेष रूप से शूद्रों के मनोरंजन और अलौकिक आनंद के लिए ‘नाट्यवेद’ नामक पांचवें वेद का निर्माण किया। इस वेद का निर्माण ऋग्वेद में से पाठ्य वस्तु, सामवेद से गान, यजुर्वेद में से अभिनय और अथर्ववेद में से रस लेकर किया गया। भरतमुनि को उसका प्रयोग करने का कार्य सौंपा गया। भरतमुनि ने ‘नाट्य शास्त्र’ की रचना की और अपने पुत्रों को पढ़ाया। इस दंत कथा से इतना तो अवश्य फलित होता है कि भरतमुनि संस्कृत नाट्यशास्त्र के आद्य प्रवर्तक हैं।

नाट्यशास्त्र का स्वरूप

अभिनव गुप्त के मतानुसार नाट्य शास्त्र के 36 अध्याय हैं। इसमें कुल 4426 श्लोक और गद्यभाग हैं। नाट्यशास्त्र की आवृत्तियां निर्णय सागर प्रेस, चौखंबा संस्कृत ग्रंथमाला(1) द्वारा प्रकाशित हुई है। गुजराती के कवि नथुराम सुंदरजी की ‘नाट्य शास्त्र’ पुस्तक है, जिसमें नाट्य शास्त्र का सार दिया गया है।

नाट्यशास्त्र के टीकाकार

भरत के हाल ही में उपलब्ध नाट्यशास्त्र पर सर्वाधिक प्रमाणिक और विद्वत्तापूर्ण ‘अभिनव भारती’ टीका के कर्ता अभिनव गुप्त हैं। यह टीका ई. सन् 1013 में लिखी गई थी। अभिनव गुप्त के पूर्व नाट्यशास्त्र पर उद्भट त्नोल्लट, शंकुक, कीर्तिधर, भट्टनायक आदि ने टीकाएं लिखी थी।


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