पापमोचक है वरुथिनी एकादशी

By: Apr 22nd, 2017 12:08 am

aasthaवरूथिनी एकादशी का व्रत समस्त पापों से मुक्ति प्रदान करता है और इसके कारण सांसारिक समृद्धि भी प्राप्त होती है। इस वर्ष 22 अप्रैल, 2017 के दिन वरूथिनी एकादशी व्रत किया जाएगा। यह व्रत वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। पद्मपुराण में वरूथिनी एकादशी के विषय में तथ्य प्राप्त होते हैं, जिसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर के पूछने पर कि वैशाख माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का फल एवं माहात्मय क्या है, तो उनके इस कथन पर भगवान उन्हें कहते हैं कि हे धर्मराज लोक और परलोक में सौभाग्य प्रदान करने वाली वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से साधक को लाभ की प्राप्ति होती है तथा उसके पापों का नाश संभव हो जाता है। यह एकादशी भक्त को समस्त प्रकार के भोग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली होती है। वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को कठिन तपस्या करने के समान फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत के नियम अनुसार व्रत रखने वाले को दशमी तिथि के दिन से ही नियम धारण कर लेना चाहिए। संयम व शुद्ध आचरण का पालन करते हुए एकादशी के दिन प्रातःकाल समस्त क्रियाओं से निवृत्त होकर भगवान विष्णु जी का पूजन करना चाहिए। विधिपूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत करते हुए एकादशी की रात्रि में जागरण करना चाहिए तथा भजन कीर्तन करते हुए श्री हरि का मनन करते रहना चाहिए।

वरूथिनी एकादशी महत्त्व

इस एकादशी के विषय में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार मांधाता, इक्ष्वाकुवंशीय नरेश थे। इनकी प्रसिद्धि दूर- दूर तक थी। इनके विषय में कहा जाता है कि इन्हें सौ राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञों का कर्ता और दानवीर, धर्मात्मा चक्रवर्ती सम्राट जो वैदिक अयोध्या नरेश मंधातृ जैसा अभिन्न माना जाता था। यादव नरेश शशबिंदु की कन्या बिंदुमती इनकी पत्नी थीं, जिनसे मुचकुंद, अंबरीष और पुरुकुत्स नामक तीन पुत्र और पचास कन्याएं उत्पन्न हुई थीं जो एक ही साथ सौभरि ऋषि से ब्याही गई थीं। पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ के हवियुक्त मंत्रपूत जल को प्यास में भूल से पी लेने के कारण युवनाश्व को गर्भ रह गया, जिसे ऋषियों ने उसका पेट फाड़कर निकाला। वह गर्भ एक पूर्ण बालक के रूप में उत्पन्न हुआ था, जो इंद्र की तर्जनी अंगुली को चूसकर रहस्यात्मक ढंग से पला और बढ़ा हुआ था। इंद्र द्वारा दूध पिलाने तथा पालन करने के कारण इनका नाम मांधाता पड़ा। यह बालक आगे चलकर बड़ा पराक्रमी राजा बना। इन्होंने विष्णु जी से राजधर्म और वसुहोम से दंडनीति की शिक्षा ली थी। इसी वरूथिनी एकादश के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग को गए थे क्योंकि गर्व से चूर होकर और स्वयं को उच्च मानते हुए इनके द्वारा कई गलत कार्य भी हुए, जिनके प्रभाव स्वरूप इन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हुई अतः अपने पापों से मुक्ति पाने हेतु क्षमायाचना स्वरूप इन्होंने इस एकादशी व्रत का पालन किया, जिसके प्रभाव से इन्हें स्वर्ग की प्राप्ति संभव हो सकी। इसी प्रकार राजा धुंधुमार को भगवान शिव ने एक बार क्रोद्धवश श्राप दे दिया था, जिसके कारण उन्हें बहुत सारे कष्टों की प्राप्ति हुई। उनसे मुक्ति के मार्ग के लिए धुंधुमार ने तब इस एकादशी का व्रत रखा, जिससे उन्हें श्राप से मुक्ति प्राप्त हुई और वह उत्तम लोक को प्राप्त हुए।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App