माता मिंधल वासिनी मंदिर

By: Apr 22nd, 2017 12:08 am

aasthaपूरा मंदिर कांठकुणी शैली में बना हुआ है, जिस पर सुंदर नक्काशी एवं चित्रकारी की हुई है। मंदिर के नीचे अभी भी वह स्थान सुरक्षित रूप में रखा हुआ है, जिस पर माता घुंगली नाम वृद्धा के  चूल्हे में पाषाण प्रतिमा के रूप में प्रकट हुई थीं…

आदि शक्ति मां भवानी के रूप में प्रकट हुई माता मिंधल वासिनी के प्रति पांगी घाटी के साथ-साथ जम्मू की भद्रकाल एवं पाडुर घाटी के लोगों में भी अपार श्रद्धा है। लोक मान्यता है कि आदि शक्ति मां चामुंडा सात बहनें थीं, जिनमें पांगी में मिंधल वासिनी, चंबा में चौंडा माता, छतराड़ी में शक्ति माता, भलेई माता, कांगड़ा में चामुंडा, जम्मू में वैष्णो देवी और बैरागढ़ में बैरा वाली देवी कोठी विश्व विख्यात है। मिंधल वासिनी माता के पांगी घाटी में अवतरित होने के प्रति जो मान्यता है वह यह भी है कि मां भवानी चंड-मुंड का वध करके चैणी पास से होती हुई चकमंड के रास्ते मिंधल नामक स्थान पर पहुंची थीं। पांगी मुख्यालय किलाड़ से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर माता का धाम स्थित है। जिसे घोर सर्दी व अति बर्फबारी के दिनों के अतिरक्त भी बहुत बड़े ग्लेशियर को पार करके सीधी चढ़ाई वाली सीढि़यां चढ़ कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यह ग्लेशियर जुलाई से सितंबर तक ही पिघला होता है। पूरा मंदिर कांठकुणी शैली में बना हुआ है, जिस पर सुंदर नक्काशी एवं चित्रकारी की हुई है।  मंदिर के नीचे अभी भी वह स्थान सुरक्षित रूप में रखा हुआ है, जिस पर माता घुंगली नाम वृद्धा के  चूल्हे में पाषाण प्रतिमा के रूप में प्रकट हुई थीं। मुख्य मंदिर के दाएं-बाएं दो छोटे मंदिर प्रांगण के कोनों पर शिवलिंग व अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के साथ श्रद्धालुओं के द्वारा चढ़ाए गए त्रिशूल और मध्य में हवन कुंड बना हुआ है। हवन कुंड के समीप छोटे चबूतरे पर वह ऐतिहासिक पत्थर भी रखा हुआ है, जिसे एक ओर से तो कोई भी व्यक्ति एक हाथ से हिला सकता है परंतु दोनों हाथों से बडे़ से बड़ा बलशाली व्यक्ति भी नहीं उठा पाता है। लोक विश्वास एवं स्थानीय गाथाओं के अनुसार मिंधल नामक स्थान पर बारह भट्ट खानदान के ब्राह्मण निवास करते हैं। इन्हीं में घुंगली नाम की वृद्धा अपने सात बहू-बेटों के साथ रहती हुई मां कालिका की भक्ति में तल्लीन रहती थीं। एक दिन सुबह ही जब उसके बेटे और बहुएं खेतों में काम करने के लिए गए हुए थे, तो चूल्हे की राख निकालते हुए घुंगली को एक शिलाखंड उभरा हुआ दिखाई दिया। घुंगली ने उसे दबाने का प्रयास किया, तो वह दबता हुआ आभासित हुआ। दूसरे, तीसरे, चौथे दिन वह शिलाखंड और भी उभरता हुआ दिखाई दिया और बुढि़या घुंगली उसे निरंतर दबाने का प्रयास करती रही। एक दिन रात को मां कालिका ने बुढि़या घुंगली को स्वप्न में दर्शन देकर बताया कि हे भक्तिन! तुम्हारा कल्याण हो, चूल्हे के जिस शिलाखंड को तुम दबाना चाहती हो, वह वास्तव में मेरा साकार रूप है।

रमेश चंद्र मस्ताना, नेरटी (कांगड़ा)


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