कालेज के छोर पर

By: May 19th, 2017 12:01 am

कुछ चुनौतियां समझी गईं और कुछ फासले पर खड़ी उच्च शिक्षा के हालात पर चिंतन हुआ, मगर समस्या की चोटी फिर भी पकड़ी नहीं गई। शिक्षा जा किधर रही है और इसे जाना है किधर। जब तक इस भंवर से बाहर निकल कर क्षितिज नहीं देखा जाता, हिमाचल की उच्च शिक्षा का मात्रात्मक पहरावा ही नजर आएगा। प्रदेश में रिकार्ड कालेजों की शुमारी के बीच शैक्षणिक संस्थानों की मिट्टी शिकायत करती है, तो समझना यह होगा कि हर कालेज परिसर अपनी प्रासंगिकता कैसे तय करेगा। प्राचार्यों की बैठक में अनुशासन का एक मोहरा बनकर, मोबाइल को सजा मिली। कालेज के किस छोर में मोबाइल बजेगा यह तय हुआ, लेकिन शिक्षा किस छोर पर खड़ी है, इस पर चिंतन की आवश्यकता को कब जानेंगे। शिक्षा की पद्धति में गुण-दोष का आधार परिसर कतई नहीं है और न ही पाठ्यक्रम, लेकिन छात्र समुदाय को जिस आधार पर तैयार करना होगा, उसकी जमीन ही तय नहीं। शिमला विश्वविद्यालय ने एक विजन दस्तावेज तैयार किया था, लेकिन इसकी बिसात पर केवल सियासी घोड़े दौड़े। छात्र क्षमता में निखार लाने के लिए हिमाचली कालेजों ने अपनी विशिष्टता को अगर प्रमाणित ही नहीं किया, तो हर क्लासरूम केवल एक इमारत बनकर रह जाएगा। मोबाइल का अधिक इस्तेमाल साबित करता है कि अधिकांश छात्र समय गुजार रहे हैं या शिक्षा की रस्मों में महत्त्व गौण हो गया। जब परिसर में माहौल, पाठ्यक्रम में भविष्य की वचनबद्धता, शिक्षा में गुणवत्ता और अध्यापक समुदाय में आदर्श नहीं होंगे, तो मोबाइल संस्कृति में बिखरते युग को देखा जा सकता है। कालेजों में नहा कर जो शिक्षा दर्शन दे रही है, उसे हम युग की चुनौतियों के काबिल नहीं बना पा रहे। इस पर भी तुर्रा यह कि पिछले कुछ सालों में कालेज संख्या दोगुनी हो गई, जबकि अध्ययन और अध्यापन कंगाल हो गया। अधिकतर कालेज ग्रामीण इलाकों में खुले, लेकिन इनके वजूद में न तो परिवेश को समझा गया और न ही इन्हें आवश्यकता व योग्यता के अनुरूप तराशा गया। मसलन नगरोटा सूरियां में खुले कालेज को क्षेत्रीय संभावना व प्रासंगिकता से जोड़ते, तो एक राज्य स्तरीय संस्थान स्थापित हो जाता। पौंग जलाशय के साथ इस कालेज का तात्पर्य मस्त्य व प्रवासी पक्षियों के अध्ययन के साथ जुड़ता, तो राष्ट्रीय स्तर के ज्ञान में इजाफा होता। इतना ही नहीं, जल क्रीड़ाओं के लिहाज से भी नगरोटा सूरियां कालेज एक विस्तृत खेल परिसर के रूप में अंगीकार किया जा सकता है। ग्रामीण कालेजों में पढ़ाई और परिसर के बीच क्षमता विकास के नए सेतु अगर पैदा करने हैं, तो आरंभिक ज्ञान में ही कुछ विषय गांव की आर्थिकी और क्षेत्रीय विशिष्टता से जुड़ने चाहिएं। पूरे प्रदेश का शैक्षणिक ढांचा देखें, तो हर कालेज एक जैसी शिक्षा का वजन धारण किए हुए है, जबकि कुछ राज्य स्तरीय संस्थानों की पहचान में विषय केंद्रित श्रेष्ठता का दर्जा मिलना चाहिए। राज्य स्तरीय कालेजों में साइंस, कला, वाणिज्य, इकॉनोमिक्स, आर्ट्स, खेल व डिफेंस स्टडीज के लिए कुछ परिसर तैयार नहीं किए तो मौजूदा दौर की पढ़ाई में छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ ही होता रहेगा। हिमाचल में दर्जन भर कालेज आज भी सम्माननीय दृष्टि से अपना रुतबा रखते हैं, लेकिन नए कालेजों की खींचतान में इनकी भी आबरू लुट गई। शिक्षा विभाग ने सेवानिवृत्त कालेज शिक्षकों से फिर से सेवाएं लेने का अच्छा रास्ता चुना है, लेकिन इसके साथ यह भी सुनिश्चित किया जाए कि टॉप रैंकिंग कालेजों की फैकल्टी को बरकरार रखा जाए। इसी के साथ विश्वविद्यालय को समर कैंपों के जरिए कालेज छात्रों में मूल्यों, संस्कृति व खेलों के प्रति रुझान जागृत करना होगा, ताकि जीवन की रिक्तता व चुनौतियों के सामने युवा व्यक्तित्व में स्थिरता, संतुलन व स्थायित्व बना रहे।

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