गणेश पुराण

By: May 20th, 2017 12:05 am

हिमालय ने जब यह सुना तो अपने भाग्य को संबोधित करते हुए अपनी पुत्री को लेकर वापस लौट आए और उन्होंने सोचा कि अब इसका विवाह क्या करना? किंतु उमा के मन में दृढ़ निश्चय  देखकर उसे विवाह करने की आज्ञा दे दी…

बड़े लोगों का प्रसाद जितना अच्छा होता है, उससे ज्यादा बुरा उनका क्रोध होता है। यह सुनकर देवराज इंद्र ने कहा कि तुम चिंता मत करो हम सब तुम्हारे साथी रहेंगे। इंद्र के इन शब्दों को सुनकर कामदेव अपने ब्यूह रचना करके शंकर जी के पास पहुंचा और कान के रास्ते से उनके हृदय में प्रवेश कर गया। शिवजी के मन में धीरे-धीरे प्रेम का भाव पैदा होने लगा था, लेकिन उन्होंने अपनी योग माया से उससे मुक्ति पा ली। फिर कामदेव ने अपने बाणों का प्रयोग किया और मोहन बाण छोड़ा। शिवजी के मन में फिर से प्रेम का भाव पैदा होने लगा और उन्होंने जब वास्तविकता का पता चला तब उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से अग्नि निकालकर कामदेव को भस्म कर दिया। अपने पति को भस्म हुआ देखकर रति ने बहुत विलाप किया और शंकर जी के पास गई। पहले तो उसने शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए पूजा की और फिर अपने पति के प्राण मांगे, किंतु महादेवजी ने कहा कि अब तुम्हारा पति चिरंजीवी और सौंदर्य देवता तो होगा, लेकिन वह अनग कहलाएगा। यह सुनकर रति को बहुत दुख हुआ और वह वन में जाकर रोने लगी। जब हिमालय ने उससे पूछा कि तुम क्यों रो रही हो और यह भी कहा कि अपना परिचय बताओ तो रति ने कहा कि कामदेव की पत्नी रति हूं और महादेव ने मेरे पति को भस्म कर दिया है और जब मैं उनके पास गई तो उन्होंने कहा कि मेरा पति समय आने पर मुझे मिलेगा। मैं इसी लिए अपने शरीर को नहीं त्याग पा रही हूं। हिमालय ने जब यह सुना तो अपने भाग्य को संबोधित करते हुए अपनी पुत्री को लेकर वापस लौट आए और उन्होंने सोचा कि अब इसका विवाह क्या करना? किंतु उमा के मन में दृढ़ निश्चय  देखकर उसे विवाह करने की आज्ञा दे दी। पुत्री के संकल्प को देखकर जैसे ही हिमवान ने उसे तप करने के लिए स्वीकृति दे दी वैसे ही उसने तप करना प्रारंभ कर दिया। पार्वती की परीक्षा के लिए कुछ मुनि उसके पास गए और उनसे पूछा कि तुम यह क्या कर रही हो तो पहले तो पार्वती ने उनका सम्मान किया और आसन पर बिठाया फिर संकोच पूर्वक उसने अपनी बात कही, किंतु मुनियों ने पार्वती से कहा कि यह तुम्हारा प्रयास विफल हो जाएगा, क्योंकि जिसने काम को ही जला दिया है वह भला कामुक कैसे होगा तुम किसी अन्य देवता को चुन लो। यह बात सुनकर पार्वती बहुत नाराज हुई और उसने क्रोधित होते हुए मुनियों से कहा कि क्या आप लोग भगवान शंकर की महिमा से परिचित नहीं है? मुझे तो ऐसा लगता है कि या तो आप मुनिवेश में अवांछनीय व्यक्ति हैं अथवा आप लोग जानबूझकर नाटक कर रहे हैं? आप ही बताइए, अग्नि, सूर्य, चंद्र, वायु तथा वरुण आदि देवता किसके शासन में रहते हैं? नारायण भी तो अदिति और कश्यप से उत्पन्न हुए हैं। इस संसार में एकमात्र जन्म-मरण से रहित लोक लोकेश्वर तो भगवान शंकर ही हैं, उन्हें छोड़ कर आप लोग मुझे अन्य देवों के वरण के लिए क्यों कह रहे हैं? क्या आप मुझे इतनी मूर्ख समझते हैं कि आपके कहने से मैं स्वामी को छोड़कर सेवक की कामना करने लग जाऊंगी। मुझे शंकरजी के सिवाय और किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। ऋषियों ने जब उमा के मन में शिवजी के प्रति इतना दृढ़ निश्चय देखा तो उसे आशीर्वाद दिया और शिवजी के पास पहुंचे। वहां पर उन्होंने शिवजी की स्तुति प्रारंभ की और जब उन्होंने मुनियों के आने का कारण पूछा तो शिवजी से मुनियों ने कहा कि आपको मालूम है कि हिमालय की पुत्री आपको पाने के लिए कठोर तप कर रही है और आप भी देवताओं के कल्याण के लिए उसका वरण करें। मुनियों की बात सुनकर शिवजी ने अपनी स्वीकृति दे दी।

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