जाधव को जस्टिस

By: May 20th, 2017 12:05 am

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ  जस्टिस (आईसीजे) के 11 जजों की पीठ ने भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के संदर्भ में जो अंतरिम फैसला सुनाया है, वह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है। भारत और जाधव के परिजनों के लिए नैतिक और मानसिक राहत है। पाकिस्तान कई स्तरों पर बेनकाब हुआ है। अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला है कि केस के आखिरी फैसले तक पाकिस्तान जाधव को फांसी नहीं देगा। पाकिस्तान पर भी यह कानूनी दायित्व है कि वह अंतरराष्ट्रीय अदालत के आदेशों का अमल कराए और रपट अदालत को भेजता रहे। पाकिस्तान पर यह बाध्यता इसलिए है,क्योंकि भारत के साथ उसने भी वियना संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। हालांकि आईसीजे ने यह भी माना है कि जाधव को राजनयिक मदद दी जानी चाहिए थी,क्योंकि यह भी वियना संधि का एक हिस्सा है। कोर्ट ने जाधव की गिरफ्तारी को भी एक विवादित मुद्दा माना है। लेकिन राजनयिक संपर्क और मदद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बाध्य नहीं किया गया, लिहाजा ऐसा लगता है कि यदि जाधव के लिए, भारत सरकार या उसके परिजन, राजनयिक संपर्क की मांग दोहराते हैं, तो पाकिस्तान नहीं मानेगा। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने जाधव को जासूस मानने की पाकिस्तानी दलीलों को भी खारिज कर दिया है, क्योंकि अदालत के मुताबिक पाकिस्तान ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं दे पाया। अंतरराष्ट्रीय अदालती आदेश से पाकिस्तान का बौखलाना स्वाभाविक है और उसने अभी से दावा करना शुरू कर दिया है कि वह जाधव के खिलाफ  पुख्ता सबूत आईसीजे में जरूर पेश करेगा और एक कातिल को बचाने की भारत की कोशिशों को बेनकाब करेगा। बहरहाल बेशकीमती और बुनियादी सवाल और चिंता यह है कि पाकिस्तान ने आईसीजे के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है, तो अब क्या होगा? दरअसल अंतरराष्ट्रीय अदालत ने वियना संधि के मुताबिक इसे पाकिस्तान की बाध्यता तय कर दिया है कि पाकिस्तान फैसले पर अमल करेगा। यदि पाकिस्तान फैसले को मंजूर नहीं करता है, तो उसपर पाबंदियां चस्पां की जा सकती हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चुनौती दे सकता है, लेकिन विडंबना यह है कि भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है, जबकि पाकिस्तान के ‘याराना  देश’ चीन के पास वीटो पावर भी है। यदि चीन वीटो के जरिए जैश-ए-मोहम्मद के सरगना आतंकी मसूद अजहर को बचाए रख सकता है, तो आईसीजे का मुद्दा बेहद अहं है और पाकिस्तान के खिलाफ  भारत की याचिका को स्वीकृति के स्तर पर ही खारिज करा सकता है, लेकिन आईसीजे के सामूहिक फैसले का असर यह जरूर होगा कि पाकिस्तान जाधव को फांसी पर नहीं लटकाएगा। इस मामले की आखिरी और प्रक्रियागत सुनवाई अगस्त के आसपास होगी और फिर उसके बाद अंतिम अदालती फैसला…! दरअसल कूटनीतिक स्तर पर भारत यही चाहता था, लिहाजा इसका एक श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को भी मिलेगा, क्योंकि उनके निर्देश पर ही आनन-फानन में अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाना तय किया गया था, ताकि जाधव की फांसी पर तुरंत रोक लग सके। आईसीजे के जरिए यह भी साफ हो गया है कि पाकिस्तान का मानवाधिकारों में लेशमात्र भी यकीन नहीं है। पाकिस्तान का चेहरा बेनकाब हुआ है और उसकी भद्द पिट रही है। एक पल के लिए यह मान भी लें कि पाकिस्तान आईसीजे के फैसले पर अमल नहीं करेगा, तो नतीजा यह होगा कि जब पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर संबंधी संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों की दुहाई देगा,तो उसकी बात कोई नहीं सुनेगा। आईसीजे संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी अदालत है और प्रत्येक सदस्य-देश इसका पक्षकार होता है, लिहाजा भारत-पाकिस्तान भी आईसीजे के प्रति प्रतिबद्ध हैं। लेकिन हास्यास्पद यह है कि पाकिस्तान राष्ट्रहित में अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला नहीं मान रहा है और इस मामले को आईसीजे के अधिकार क्षेत्र से बाहर ही मानता है, लेकिन आईसीजे का सर्वसम्मत फैसला है कि जब तक आखिरी फैसला नहीं आता, तब तक जाधव को फांसी देने पर रोक लगा सके, वियना संधि के तहत यह हक आईसीजे को पूरी तरह है। बहरहाल पहली जीत तो भारत के पक्ष में रही है, लेकिन उससे भी महत्त्वपूर्ण जाधव की सुरक्षा है। आईसीजे ने भी जाधव की जान को खतरा बताया है तथा उसकी सुरक्षा के प्रति सरोकार जताया है,लेकिन जाधव कहां है,कैसे हैं, उन्होंने अपील की या नहीं, ऐसे किसी भी तथ्य की जानकारी नहीं है। पाकिस्तान ऐसा धूर्त देश है कि उस पर यकीन नहीं किया जा सकता। कुलभूषण जाधव जब अंतिम तौर पर अपने देश लौट आएंगे,तो वह भारत की स्थायी जीत होगी।।

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