नर्सिंग में उर्मिला की उड़ान

By: May 14th, 2017 12:07 am

आईजीएमसी में नर्सिंग सिस्टर ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में बतौर नर्सिंग सिस्टर तैनात उर्मिला गुलेरिया को राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल अवार्ड के लिए चुना गया है। उर्मिला को यह अवार्ड 12 मई को दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की ओर से दिया गया।  पुरस्कार के तौर पर इस अवार्ड में 50 हजार रुपए,  मेडल और मैरिट सर्टिफिकेट प्रदान किया जाएगा। आईजीएमसी के लिए यह बड़ी उपलब्धि है क्योंकि इससे पहले भी आईजीएमसी नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट को यह अवार्ड मिल चुका है। गुलेरिया को इस अवार्ड के बारे में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से पत्र जारी कर अवगत कराया गया था और उन्हें 12 मई को इस अवार्ड को लेने के लिए दिल्ली बुलाया गया था।  उर्मिला गुलेरिया ने बताया कि उन्होंने आईजीएमसी से ही जीएनएम की थी। 1986 में उन्होंने कांगड़ा के नूरपुर में बतौर स्टाफ नर्स ज्वाइन किया। इसके बाद चार साल यहीं सेवाएं दीं औैर वर्ष 1990 में आईजीएमसी में तैनाती मिली। तब से लेकर उर्मिला आईजीएमसी में ही तैनात हैं। इस अवार्ड को पाने के लिए पूरे हिमाचल से पांच ने आवेदन किया था, लेकिन उर्मिला की बेहतर कार्यप्रणाली ने उन्हें इस अवार्ड का हकदार बनाया। उनकी इस उपलब्धि पर आईजीएमसी के एमएस डाक्टर रमेश चंद और प्रिंसीपल अशोक शर्मा और स्टाफ के अन्य सदस्यों ने बधाई दी है। उर्मिला का कहना है कि मरीजों के प्रति सेवा भाव ने ही उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। उर्मिला के मुताबिक जो भी नर्सिंग में आने की इच्छुक हैं उन्हें मरीजों के प्रति सेवा भाव रखना चाहिए और उन्हें गैर न समझ कर अपना समझना चाहिए। उर्मिला मूल रूप से कांगड़ा के नूरपूर के तलारा गांव से हैं। उर्मिला के पिता साधारण किसान हैं और माता गृहिणी। उर्मिला के तीन भाई हैं और वह दो भाइयों के बाद छोटी बहन हैं। उर्मिला की दसवीं तक की शिक्षा गनोह स्कूल से हुई है। उर्मिला का कहना है कि बचपन में जब वह फिल्मों में नर्सों को मरीजों की सेवा करते हुए देखती थीं, तो उन्हीं के जैसा बनने का सपना भी बुनती थीं। फिर वर्ष 1982 में जीएनएम के लिए चयनित हो गईं और वर्ष 1986 में नूरपुर में ही पहली तैनाती मिली। जब जीएनएम के लिए उर्मिला का चयन हुआ था, तो उस समय सौ नर्सों का चयन हुआ था। उसके बाद उर्मिला ने नर्स बनकर ही जनसेवा करने को अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य बना लिया। उर्मिला के दो बेटे हैं । बड़ा बेटा इंजीनियरिंग कर कैलिफोर्निया में है तो छोटा बेटा बीटीए कर रहा है। उर्मिला के पति बिजली बोर्ड से बतौर एक्सईएन सेवानिवृत हुए हैं।

—अंजना ठाकुर, शिमला

मुलाकात

Utsavमरीज हंस कर कह दे ‘थैंक्यू सिस्टर’, तो सुकून मिलता…

आपके लिए राष्ट्रीय पुरस्कार तक पहुंचना कितनी बड़ी कसौटी रहा?

राष्ट्रीय पुरस्कार मेरे लिए मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। नर्सिंग एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें पुरस्कार बेहतरीन जनसेवा के लिए मिलता है।

अमूनन अस्पतालों में शिकायतें प्रायः व्यवहार की रहती हैं तो इस लांछन से आप कैसे बचीं ?

मैंने मरीज को हमेशा अपने सगे की तरह ट्रीट करने का प्रयास किया। मैं नर्सिंग में आने वाली नई लड़कियों को भी यही सलाह देती हूं कि मरीजों को मरीज नहीं अपना समझ कर व्यवहार करें।

आपके लिए सेवा का मतलब और मूल्य क्या है ?

मेरे लिए मरीज सबसे पहले है। मरीजों की सेवा किसी भी नर्स का पहला कर्त्तव्य है उससे ऊपर कुछ नहीं।

बेहतर उपचार में नर्स की भूमिका किन आदर्शों पर स्थापित होती है?

बेवजह कोई अस्पताल नहीं आता। मरीज अस्पताल में बीमारी का इलाज कराने आता है और दवाओं के साथ साथ स्टाफ का व्यवहार भी मरीज के इलाज के लिए महत्त्वपूर्ण है।

प्रायः हो इसके विपरित रहा है और जहां सेवा भावना पर वेतन और सुविधाएं भारी पड़ रही हैं?

हां, आज के दौर में रोजगार पाने और पैसे कमाने की चाहत सभी में है। लेकिन नर्सिंग के क्षेत्र में उन्हीं को आना चाहिए, जो दिल से लोगों की सेवा करना चाहता हो। बिना सेवा भाव के इस प्रोफेशन में आने का कोई औचित्य ही नहीं है।

यह प्रोफेशन आपकी च्वाइस था या यूं ही रास्ते मुड़ गए?

मैं जब बचपन में फिल्मों में नर्सों को मरीजों की सेवा करते हुए देखती थी तो उन्हीं के जैसी बनने का सपना आंखो में संजो लिया था।

कब सोचा कि आप भी फ्लोरेंस नाइटिंगेल हो सकती हैं ?

जब अवार्ड के लिए आवेदन मांगे गए तो मेेरे वरिष्ठ सहयोगियों ने मुझे प्रेरित किया कि मुझे भी आवेदन करना चाहिए। हालांकि मैंने कभी सोचा नहीं था कि इतना बड़ा सम्मान मुझे मिल पाएगा।

आपके व्यक्तित्व के लिए कराहते मरीजों के बीच निर्मलता व कठोरता क्या है ?

कइर् बार मरीजों के साथ सख्ती से पेश आना पड़ता है क्योंकि मरीज कई बार दवा नहीं खाते, ड्रिप निकाल देते हैं या फिर तंग होकर आक्रामक व्यवहार करते हैं। ऐसे में उनकी भलाई के लिए थोड़ा कठोर भी होना पड़ता है, लेकिन इस कठोरता के पीछे भी मकसद मरीज का इलाज ही होना चाहिए। अपने गुस्से को मरीज की सेवा पर कभी हावी नहीं होने देना चाहिए।

जब आप अपनी ड्यूटी के दौरान रो पड़ीं या कभी आपके कारण संवेदना जीतकर किसी को बचाने में मददगार बन गई?

भावुक होने के मौके हर नर्स की ड्यूटी ऑवर में आते हैं। अकसर मरीजों के साथ अटेचमेंट भी हो जाती है। स्टाफ जितना मरीजों से घुलमिल कर रहता है, वह उतनी जल्दी ठीक महसूस करता है। मेरी हर मरीज के लिए यही कोशिश रहती है।

ड्यूटी के दौरान खुद और परिवार के बीच संतुलन कैसे रख पाती हैं?

मैंने हमेशा अपने कार्य को एंज्वाय किया है। मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगा कि मुझे परिवार और अपने प्रोफेशन के बीच एडजस्टमेंट करनी पड़ी हो। जब बच्चे छोटे थे, तो भी मुझे परिवार का पूरा सहयोग था और मैंने कभी भी पारिवारकि समस्याओं के कारण अपने काम को प्रभावित नहीं होने दिया।

काम के दबाव के बीच आप मनोरंजन या उल्लास के क्षण कैसे निकालती हैं?

काम का दबाव वाली स्थिति मैंने कभी महसूस नहीं की। मरीज जब  हंस के कह दे कि थैंक्यू सिस्टर तो बहुत स्कून महसूस होता है। नर्स के सेवाभाव से अगर मरीज संतुष्ट है और वह ठीक हो जाता है, तो वही सबसे बड़ी खुशी है।

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