मौसम के बदलते तेवर
(मयंक शर्मा, डलहौजी)
पहले बिना कम्प्यूटर के ही हमारे बुजुर्ग मौसम की भविष्यवाणी कर देते थे कि अब गर्मियां शुरू हो रही हैं या अगले महीने से बरसात का मौसम आ रहा है। यानी पहले मौसम चक्र अपने नियमानुसार चलता था। हर मौसम प्रकृति ने एक चक्कर मे बांध रखा था। पर आज देख लो मई के महीने में ठंडक का एहसास हो रहा है। यह सब मनुष्य का किया धरा है कि मौसम अपने चक्र से टूट गया है। अब न तो बारिश का समय तय है और न ही वसंत का। वजह साफ है कि मनुष्य ने प्रकृति से छेड़छाड़ कर अपने स्वार्थ साधने की कोशिश की है। प्रकृति ने सब के लिए सब कुछ अनुकूल बना रखा है, पर मनुष्य प्रकृति से छेड़छाड़ कर सबकुछ अपने हिसाब से अपने अनुकूल करता जा रहा है। इसी का नतीजा हैं ये प्राकृतिक आपदाएं। जब प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है तो आपदांए आना स्वाभाविक है। मनुष्य प्रकृति से टक्कर नही ले सकता, पर हां यदि प्रकृति का सहयोग करे तो प्रकृति से बहुत कुछ ले सकता है। जंगल काट-काट कर घर बना लिए, रहने के लिए जगह तो बना ली, पर रहेंगे कब तक, यह पता नहीं। क्योंकि प्रकृति अपने साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करती और छेड़छाड़ करने वाले को फिर कहीं का नही छोड़ती। हमें जाग जाना चाहिए, नहीं तो प्रकृति जिद पर आई तो हमें जगाने वाला भी कोई नहीं रहेगा।
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