विज्ञान सम्मत हैं प्राचीन परंपराएं
( दिनेश नेगी, संधोल, मंडी )
प्राचीन काल से हमारे देश में तांबे के बरतन में पानी रखकर पीने की परंपरा रही है। अब पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर अब लोगों ने प्लास्टिक की बोतलों में पानी भरकर पीना शुरू कर दिया है। यह स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होता है। हाल ही में इंग्लैंड में हुए शोध के परिणाम ने हमारे देश की परंपरा को विज्ञान सम्मत सिद्ध किया है। विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने तांबे, पीतल, कांच तथा प्लास्टिक के बरतनों में पानी भरकर रखा। तांबे के बरतन में रोगाणु छह घंटे में नष्ट हो गए। पीतल के बरतन में 10-12 घंटों में रोगाणु नष्ट हो गए। कांच के बरतन में रखे रोगाणु मरे तो नहीं, पर क्षीण हो गए। इन सबके विपरीत प्लास्टिक के बरतन में रोगाणु बीस गुना बढ़ गए। इस बात से साबित होता है कि हमारे ऋषियों- मुनियों द्वारा शुरू किए गए सिद्धांत और परंपराएं विज्ञान सम्मत सिद्ध हैं। उनके द्वारा बताए गए आयुर्वेदिक सिद्धांत, जो आज भी कारगर हैं और कई बीमारियों को नष्ट करने में सहायक सिद्ध हुए हैं। हमें इन सिद्धांतों को अपनाना चाहिए। स्वास्थ्य विभाग को इस विषय में सभी अस्पतालों को सूचित करना चाहिए ताकि हम अपनी इन प्राचीन परंपराओं का लाभ उठा सकें। यह सही है कि हमें विज्ञान ने कहुत कुछ दिया है, पर आधुनिक विज्ञान के साइड इफेक्ट भी कम नहीं हैं। इसलिए हमें अपनी जीवन शैली में ज्यादा से ज्यादा प्राचीन परंपराओं को जगह देनी चाहिए, ताकि लाभ तो हो, पर लाभ के साथ हानि न हो। भारत को ऐसे ही विश्व गुरु नहीं कहा जाता था। भारत के पास ज्ञान का अथाह भंडार रहा है और पश्चिम की खोखली परंपराओं के पीछे पड़े हैं।
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