आर्थिकी को अपाहिज बनातीं खस्ताहाल सड़कें

By: Jun 19th, 2017 12:07 am

गुरुदत्त शर्मा

लेखक, शिमला से हैं

newsयदि सड़कें सही हालत में होंगी तो हमारे कृषक व बागबान अपने उत्पाद को मंडी तक आसानी से पहुंचा सकते हैं नहीं तो उन्हें मंडी तक अपना उत्पाद पहुंचाने में बहुत कठिनाई होगी। जल्दी नष्ट होने वाले फल व सब्जियों को मंडी तक पहुंचाने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ता है…

हिमाचल में मुख्य यातायात सड़क मार्ग द्वारा ही होता है। पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से इक्का-दुक्का रेलवे पटरियों को छोड़कर रेलवे का प्रदेश में कोई विकास नहीं हो पाया। अतः प्रदेश में करीब 90 फीसदी से अधिक यातायात सड़क द्वारा ही होता है और सड़कें मानसून की वर्षा के कारण खराब हो जाती हैं। गत मानसून में कई जगह अधिक वर्षा के कारण सड़कों और परिवहन व्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ है। हर बरसात में अधिक वर्षा और बादल फटने के कारण सड़कें बह जाती हैं और जगह-जगह गड्ढे बन जाते हैं। सड़कों में पानी के अधिक बहाव के कारण सड़कों को नुकसान पहुंचने का मतलब है परिवहन व्यवस्था का नुकसान होना। प्रदेश में सड़कों की टूट- फूट होना हर वर्ष बरसात के दिनों की हकीकत है। शहर या आसपास के क्षेत्रों में तो सड़कों को ठीक करने का कार्य बरसात के बाद आरंभ हो जाएगा, परंतु देहाती और प्रदेश के सुदूर इलाके में तो जनता को इस समस्या से महीनों जूझना पड़ेगा। प्रदेश के सड़क यातायात में बसों, ट्रकों और छोटे वाहनों का अधिक महत्त्व है और सड़कों का खराब होना प्रत्येक वर्ष की कवायद है।

प्रदेश में सड़कों का इस्तेमाल यात्रियों को आने-जाने और किसान- बागबान अपने उत्पादकों को लाने ले जाने के लिए करते हैं। दूसरे प्रदेश में कमीशनखोरी की प्रथा के कारण सड़क बनाने के लिए इस्तेमाल की गई सामग्री की क्वालिटी का खराब होना और एक बार बनाने के बाद उसके रखरखाव का उचित प्रबंध न होना मुख्य कारण है। यह अमूमन देखा गया है कि खराब सड़कों का अंजाम सड़क हादसों के रूप में होता है। इसके लिए छोटी-छोटी बातें ज्यादा जिम्मेदार हैं। जैसे सड़कों के किनारे पैरापिट न लगाना, अत्यधिक कठिन मोड़, जिनका डिजाइन त्रुटिपूर्ण होने से हादसे होते हैं और ऐसे ब्लैक स्पॉट जहां पर अकसर हादसे होते रहते हैं। गाड़ी को तेज चलाना, गाड़ी को शराब पीकर चलाना या गाड़ी के चलाने का पर्याप्त अनुभव न होना भी एक्सीडेंट होने का प्रमुख कारण हो सकता है।

इसके अलावा कुछ सड़कें संकरी या घुमावदार भी हैं, जो सड़क दुर्घटनाओं को न्योता देती हैं। ऐसे मार्गों में गाड़ी चलाते समय चालकों को बहुत एहतियात बरतनी चाहिए। तेजी से बढ़ी दुर्घटनाओं को सरकार गंभीरता से नहीं ले रही है। दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों के परिवारों या घायलों को राहत राशि मुहैया करवा देने से सरकार अपना पल्लू नहीं झाड़ सकती है। हादसों का पता लगाना व उनके निवारण करने की जिम्मेदारी भी सरकार की बनती है और सरकार इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है। प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए पुख्ता कदम उठाना भी सरकार व एचआरटीसी का संयुक्त दायित्व है। प्रदेश में निजी छोटे वाहनों की दुर्घटनाओं का सिलसिला एक रोजाना की घटना बनती जा रही है। हर छोटे-छोटे निजी वाहनों की दुर्घटनाओं का समाचार अखबारों में पढ़ा जा सकता है। सड़क हादसे के बाद सरकार जांच के आदेश दे देती है और अपनी ओर से इतिश्री तब तक कर देती है कि जब तक कोई दूसरा बड़ा हादसा न हो जाए। प्रदेश में सड़कों का जाल तो बिछा, लेकिन उनको बनाने के लिए इस्तेमाल सामग्री का घटिया होना और बनने के बाद उनकी देखरेख की कोई व्यवस्था न होना ऐसा लगता है कि मानो केवल जनता की मांग व टारगेट पूरा करने के लिए सड़कों का निर्माण किया गया है और उसके बाद उसके रखरखाव की ओर पूर्ण ध्यान नहीं दिया गया है। प्रदेश में आर्थिक तरक्की की है और विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी में भी प्रदेश में बहुत विकास हुआ है, लेकिन सड़क निर्माण में हमारे प्रदेश में विज्ञान व टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। यही वजह है कि सड़कों के निर्माण के कुछ वर्षों में ही प्रदेश की सड़कें खस्ता हाल बन जाती हैं। उदाहरण के तौर पर कचरे का रूप ले चुके प्लास्टिक के इस्तेमाल से मजबूत सड़कें बन सकती हैं तथा इस संबंध में सीएसआईआर की लैबोरेटरी सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीच्यूट ने इस तरह की तकनीक विकसित की है, जिसमें मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल मजबूत सड़कों का निर्माण किया जा सकता है। प्रदेश की सड़कें हमारे लिए हमारी भाग्य रेखा हैं, जो हमारा भाग्य संवार व बिगाड़ सकती हैं।

यदि सड़कें सही हालत में होंगी तो हमारे कृषक व बागबान अपने उत्पाद को मंडी तक आसानी से पहुंचा सकते हैं नहीं तो उन्हें मंडी तक अपना उत्पाद पहुंचाने में बहुत कठिनाई होगी। जल्दी नष्ट होने वाले फल व सब्जियों को मंडी तक पहुंचाने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ता है और खस्ता हालत सड़कों के कारण जो हादसे होकर बेशकीमती जानें जाती हैं वह अलग नुकसान होता है तथा सड़कों में घटिया सामग्री के इस्तेमाल से सरकारी खजाने को चूना लगता है उसकी भरपाई भी प्रदेश की जनता से ही होती है। इसलिए आज यह जरूरी बन जाता है कि दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार संबंधित विभाग के अधिकारी, सड़क निर्माण के ठेकेदार को भी सड़क निर्माण के लिए घटिया सामग्री प्रयोग करने के लिए कानून में सजा का प्रावधान करने की व्यवस्था शुरू की जाए, ताकि प्रदेश में घटिया सड़कों के निर्माण में सुधार किया जा सके।

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