भारत का इतिहास

By: Jun 7th, 2017 12:05 am

मुस्लिम लीग ने नकारी मिशन योजना

संविधान-सभा के सदस्यों में प्रसिद्ध वकील, चिकित्सक, शिक्षाविद जिनमें उपकुलपति भी थे, उद्योगपति तथा व्यापारी, श्रमिकों के प्रतिनिधि, लेखक और पत्रकार आदि सभी थे। इन सदस्यों में देश की गण्मान्य, महिलाएं भी थीं, जैसे श्रीमति सरोजिनी नायडू, श्रीमति विजयलक्ष्मी पंडित और राजकुमारी अमृतकौर आदि। 20 नवंबर, 1946 को वायसराय ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया कि वे 9 दिसंबर 1946 को संविधान-सभा की पहली बैठक में उपस्थित हों, मुस्लिम लीग ने मिशन योजना को पहले तो स्वीकारा, लेकिन फिर बाद में वह न केवल पीछे हट गई अपितु उसने असहयोग और सीधी कार्यवाही शुरू कर दी। ब्रिटिश सरकार ने 6 दिसंबर, 1946 को एक वक्तव्य जारी किया, जिसमें उसने प्रांतों के वर्गीकरण के बारे में मंत्रि-मिशन में पूर्ववर्ती वक्तव्य की पुष्टि की और  कहा कि जिस संविधान-सभा में भारतीय जनता के एक बड़े भाग का प्रतिनिधित्व न हुआ हो, अगर उसने कोई संविधान बनाया तो सम्राट की सरकार उसे देश के किन्ही ंअनिच्छुक भागों पर बलपूर्वक लागू करने का विचार नहीं करेगी, इस वक्तव्य के सुदूरव्यापी परिणाम निकले। इसमें स्पष्ट ध्वनि थी कि  ब्रिटिश सरकार किसी न किसी रूप में पाकिस्तान की योजना को सफल बनाने में सहयोग देगी। 9 दिसंबर, 1946 को संवधिन-सभा का विधिवत उद्घाटन हुआ। यह एक ऐतिहासिक अवसर था। देश का भावी संविधान बनाने के लिए जनता के प्रतिनिधि पहली बार एकत्रित हुए थे। यद्यपि मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि संविधान-सभा में शामिल नहीं हुए थे। फिर भी वह एक अत्यंत भव्य सभा थी। उसमें कांग्रेस के प्रमुख नेता तथा अन्य क्षेत्रों के लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित थे। कांग्रेस ने अपने दल से बाहर के अनेक विख्यात व्यक्तियों को निर्वाचन में खड़ा किया था, जो सार्वजनिक सेवा, ज्ञान- विज्ञान और विधि आदि क्षेत्रों से थे। इस तरह सभा के पास ज्ञान और अनुभव पर्याप्त था। संविधान-सभा की पहली बैठक में 207 सदस्यों ने  भाग लिया। सभा के सबसे बुजुर्ग सदस्य और बिहार के एक प्रमुख राजनीतिक नेता डा. सचिदानंद सिन्हा सभा के अस्थायी सभापति बने। डा. सिन्हा ने सभा की पहली बैठक में पहले विदेशों से प्राप्त कुछ सद्भावना संदेश पढ़कर सुनाए और इसके बाद अपना उद्घाटन भाषण दिया। अंत में सदस्यों ने अपने परिचय पत्र प्रस्तुत किए और रजिस्टर में हस्ताक्षर किए।

संविधान- सभा का प्रतिनिधिक स्वरूप 

संविधान-सभा का जब से अधिवेशन आरंभ हुआ, तभी से मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के अलावा और सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों ने उसकी बैठक में सक्रिय भाग लिया, लेकिन दिसंबर 1946 में ब्रिटिश संसद में भारतीय मामलों के बारे में जो वाद-विवाद  हुए, उनमें कुछ इस तरह के वक्तव्य दिए गए, जिनसे ध्वनि निकली कि संविधान सभा प्रतिनिधिक संस्था नहीं है।

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