शब्द वृत्ति
सरगना मवाद
(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
भागे दौड़े, छुप रहे, बहुत हुए लाचार,
आतंकी अपने लिए कब्र करें तैयार।
निकला है वारंट अब, दिन दो दिन की बात,
कत्ल किए जो अनगिनत, पाएंगे सौगात।
भड़कावे में आ रहे, युवा भड़कते रोज,
दुष्प्रचार है अत्यधिक, इंटरनेट की रोज।
नित्य बिछाता हिब्ज ही, स्वयं मौत का जाल,
महल मिला यासीन को, प्रहरी मिले अनेक।
चक्की भी है मुफ्त में, सुविधाएं तो देख,
पांच सितारा सुख मिला, सरकारी मेहमान।
वायु सलाखों की मिली, खूब मिला सम्मान,
आज जिलानी से गिला, करता है कश्मीर,
अपने हाथों से हरा, तूने मां का चीर।
लो सुन लो ऐसा हुआ, जब सरगना मवाद,
सैनिक, योद्धा हिंद के, नहीं रहे क्या याद।
ताल दे रहा बाजवा, कत्थक करे नवाज,
फौजी ने गूंगा किया, बंद करी आवाज।
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