सिनेमा के 100 साल

By: Jun 18th, 2017 12:07 am

खलनायकी के मोगैंबो अमरीश पूरी

Utsavअमरीश पुरी का जन्म 22 जून, 1932 को पंजाब में हुआ। अपने बड़े भाई मदन पुरी का अनुसरण करते हुए फिल्मों में काम करने मुंबई पहुंचे, लेकिन पहले ही स्क्रीन टेस्ट में विफल रहे और उन्होंने ‘भारतीय जीवन बीमा निगम’ में नौकरी कर ली। बीमा कंपनी की नौकरी के साथ ही वह नाटककार सत्यदेव दुबे के लिखे नाटकों पर ‘पृथ्वी थियेटर’ में काम करने लगे। रंगमंचीय प्रस्तुतियों ने उन्हें टीवी विज्ञापनों तक पहुंचाया, जहां से वह फिल्मों में खलनायक के किरदार तक पहुंचे।

आरंभिक जीवन

अमरीश पुरी का आरंभिक जीवन बहुत ही संघर्षमय रहा। अमरीश पुरी ने 1960 के दशक में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने दुबे और गिरीश कर्नाड के लिखे नाटकों में प्रस्तुतियां दीं। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया, जो उनके अभिनय करियर का पहला बड़ा पुरस्कार था। लंबा कद, मजबूत कद काठी, बेहद दमदार आवाज और जबरदस्त संवाद अदायगी जैसी खूबियों के मालिक अमरीश पुरी को हिंदी सिनेमा जगत के कुछ सबसे सफल खलनायकों में गिना जाता है, लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि अमरीश पुरी को मुंबई आने के बाद संघर्ष के दिनों में एक बीमा कंपनी में नौकरी करनी पड़ी थी।

फिल्मी जगत की शुरुआत

वर्ष 1971 में उन्होंने फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ से खलनायक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन वह इस फिल्म से दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। मशहूर बैनर बाम्बे टॉकीज में कदम रखने के बाद उन्हें बड़े-बड़े बैनर की फिल्म मिलनी शुरू हो गई। अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपना करियर का आधार बनाया। इन फिल्मों में श्याम बेनेगल की कलात्मक फिल्म जैसे निशांत, 1975, मंथन 1976, भूमिका 1977, कलयुग 1980 और मंडी 1983, जैसी सुपरहिट फिल्म भी शामिल हैं। जिनमें उन्होंने नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम किया और अपनी अदाकारी का जौहर दिखाकर अपना सिक्का जमाने में कामयाब हुए। इस दौरान उन्होंने अपना कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविंद निहलानी की 1983 में प्रदर्शित कलात्मक फिल्म ‘अर्द्धसत्य’ में निभाया। इस फिल्म में उनके सामने कला फिल्मों के दिग्गज अभिनेता ओम पुरी थे। बरहराल, धीरे-धीरे उनके करियर की गाड़ी बढ़ती गई और उन्होंने ‘कुर्बानी 1980, नसीब 1981, विधाता 1982, हीरो 1983, अंधाकानून 1983, कुली 1983, दुनिया 1984, मेरी जंग 1985, सल्तनत 1986 और जंगबाज 1986’ जैसी कई सफल फिल्मों के जरिए दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई। वर्ष 1987 में उनके करियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ।

‘मोगेंबो’ का यादगार किरदार

वर्ष 1987 में अपनी पिछली फिल्म ‘मासूम’ की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केंद्रित एक और फिल्म बनाना चाहते थे, जो ‘इनविजबल मैन’ पर आधारित थी। इस फिल्म में नायक के रूप में अनिल कपूर का चयन हो चुका था जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फिल्म में उनके किरदार का नाम था ‘मोगेम्बो’और यही नाम इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया।

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