आतंक से लड़ें, आपस में नहीं !

By: Jul 14th, 2017 12:02 am

एक ओर कश्मीर में अमरनाथ हमले के तनाव, क्षोभ, गुस्से और शोक से निजात नहीं मिली है। दुनिया के देश शोक संवेदनाएं जता रहे हैं और भारत के साथ खड़े होने का आश्वासन भी दे रहे हैं। दूसरा पहलू हमारे ही देश के भीतर का है। कांग्रेस के पूर्व सांसद एवं प्रवक्ता संदीप दीक्षित, आम आदमी पार्टी की विधायक अलका लांभा और गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल ने अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले को प्रायोजित करार देकर संदेह जताया है और साजिश का नाम दिया है। निष्कर्ष के तौर पर उन तीनों का मानना है कि चूंकि गुजरात में इसी साल चुनाव हैं, लिहाजा बाबा भोलेनाथ के भक्तों में गुजराती ही आतंकियों के शिकार बने। आतंकी हमले से लोगों की सहानुभूति अर्जित करने की साजिश रची गई है। ये आरोप और संदेह नए नहीं हैं। यही संदीप दीक्षित थे, जिन्होंने सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को ‘सड़क का गुंडा’ करार दिया था। कांग्रेस ने निजी बयान मानकर तब भी और आज भी पल्ला झाड़ा है। कांग्रेस में मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह तक ऐसे ही बयानों की परंपरा रही है। जब मुंबई में पाकिस्तान के आतंकियों ने 26/11 आतंकी हमला किया था, तब कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने उसे आरएसएस की साजिश करार दिया था। यह संयोग है कि गुजरात की बस और तीर्थ यात्री ही आतंकियों के निशाने पर आए और मरने वालों में पांच गुजराती महिलाएं थीं। सवाल है कि कोई भी सरकार या नेता चुनाव जीतने के लिए, अपने ही देशवासियों को, आतंकवाद के हवाले कर सकते हैं? अपने ही नागरिकों को मरवा सकते हैं? अरे भारत के नादान नेताओ! आतंकवाद से लड़ो! आपस में ऐसे शक करने की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं है। यह ऐसा दौर है, जब लोग चर्चाएं करने लगे हैं कि कश्मीर भारत के हाथों से निकल जाएगा। कश्मीर और कश्मीरियत जीवन-मौत के बीच झूल रहे हैं। बेशक 2017 में ही, बीते छह महीनों के दौरान 92 आतंकियों को ढेर किया गया, लेकिन 40 जवान भी ‘शहीद’ हुए और 37 नागरिक भी मारे गए हैं। मोदी सरकार के तीन सालों के कार्यकाल में कुल 483 आतंकी मार दिए गए, लेकिन आतंकवाद को नेस्तनाबूद नहीं किया जा सका है। हैरत और अफसोस है कि हमारे नेता और राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं और ऐसे आतंकी हमलों को सरकार की साजिश करार दे रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का बयान भी संदेहास्पद प्रकार का है। हमें आतंकवाद से भी लड़ना है। उधर, कश्मीर में और नियंत्रण रेखा पर कोई भी कार्रवाई करने की छूट मोदी सरकार ने सेना को दे दी है। मकसद है-आतंकियों का समूलनाश! लेकिन आतंकवाद में बार-बार पाकिस्तान कनेक्शन सामने आया है। कसाब को तो फांसी पर लटका दिया गया, लेकिन चार-पांच ‘जिंदा कसाब’ आज भी हमारी गिरफ्त में हैं। अमरनाथ यात्रियों पर हमले का मास्टरमाइंड लश्कर आतंकी अबू इस्माइल है। बीते कुछ समय से वह अनंतनाग क्षेत्र का कमांडर है, लेकिन पाकिस्तान का मूल निवासी है। पाकिस्तान लगातार संघर्षविराम का उल्लंघन कर रहा है, गोलाबारी कर रहा है। दरअसल यह भारत के खिलाफ एक ‘छाया युद्ध’ है, जो लंबे वक्त से जारी है। इस पर सर्जिकल स्ट्राइक की जाए या कोई अन्य हमला बोला जाए, इसे तोड़ना और खत्म करना जरूरी है। उसके बिना आतंकवाद का खात्मा असंभव है। कांग्रेस ने आतंकवाद के ऐसे दौर देखे और झेले हैं। फिर भी शक करना या साजिश करार देना देशद्रोही हरकत है। आखिर हमारी सरकार, अपने ही देश में, किन-किन मोर्चों पर लड़ेगी? कांग्रेस में ही एक तबके ने भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक पर भी शक जताया था। आखिर उनका हासिल क्या रहा?

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