भौगोलिक कठिनाई के बावजूद मेहनती हैं हिमाचली

By: Jul 19th, 2017 12:05 am

जमीन के नीचे रहने वाले जीव-जंतुओं में यहां कई प्रकार के सांप पाए जाते हैं, जो अति जहरीले खड़पा व संखचूड़ आदि से लेकर कम जहरीले तक सांप भी हैं। भौगोलिक कठिनाई के बावजूद यहां के लोग परिश्रमी हैं और व्यापारिक प्रकृति के हैं…

जीव – जंतु

वनस्पति की भांति हिमाचल प्रदेश में अनेक प्रकार के जीव-जंतु पाए जाते हैं, जिसका कारण यहां की विविध जलवायु और विभिन्न ऊंचाई के साथ विभिन्न प्रकार की वनस्पति और जंगलों की उपलब्धता है, जो इन प्राणियों का निवास स्थान बन कर इन्हें खाने के लिए वस्तुएं उपलब्ध  करते हैं। यहां उष्ण दून घाटियों के नदी की घाटियों के पर्वतीय और बर्फ में रहने वाले प्रत्येक प्रकार के जीव- जंतु पाए जाते हैं। यहां पाए जाने वाले प्रसिद्ध जानवरों में लंगूर, बंदर, ककड़, हिरण, घोरल, खरगोश, गीदड़ बारासिंगा, लोमड़ी, जंगली बकरा, हाइसा कस्तूरा, बर्फानी चीता, सूअर, जंगली बिलाव, भूरा भालू, काला भालू, बाघ, चीता, भेडि़या, कियांग व याक आदि हैं। हिमाचल का राज्य पक्षी जाजूराणा तथा राज्य पशु बर्फानी तेंदुआ है। हिमाचल प्रदेश में कई प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं, जिनमें कबूतर, तीतर, चकोर, घुग्गी, सार्टी, बतख, चिड़ी, जंगली मुर्गा, कोयल, कौआ, सफेद कौआ, इल, बाज, पुठकौआ, मोर, मोदड़, ठठियार, तोता, मैना, बर्फानी कबूतर व मोनाल आदि हैं। यहां की नदियों में विभिन्न प्रकार की मछलियां भी पाई जाती हैं, जिनकी संख्या में गोबिंदसागर और पौंग आदि झीलों के बन जाने से काफी वृद्धि हुई है। महाशीर, कतला, नाउ, कारप आदि किस्मों के अतिरिक्त ट्राउट हिमाचल की प्रसिद्ध मछली है, जो ठंडे इलाके में पाई जाती हैं। पानी में पाए जाने वाले अन्य जीव-जंतु घडि़याल, पानी के सांप, मसांकड़ा मेंढक व कछुआ आदि हैं। जमीन के नीचे रहने वाले जीव-जंतुओं में यहां कई प्रकार के सांप पाए जाते हैं जो अति जहरीले खड़पा व संखचूड़ आदि से लेकर कम जहरीले तक हैं। भौगोलिक कठिनाई के बावजूद यहां के लोग परिश्रमी हैं और व्यापारिक प्रकृति के हैं। लाहुल और किन्नौर की जनजातियां इस समय देश के अन्य किसी भी भाग की जनजातियों से कहीं आगे हैं। आलू, कुठ न्योजा (सूखा हुआ), बादाम, अखरोट, अंगूर, आड़ू, खुमानी व अन्य सूखे फलों व दवाई में प्रयोग होने वाली जड़ी-बूटियों को पैदा करके ये लोग बेचते हैं। इनका व्यापार भी होता है और शिलाजीत जो पहाड़ों में मिलती है, भी इकट्ठी करके बेची जाती है। कुछ घाटियों और किन्नौर के दक्षिणी भाग को छोड़ कर शेष क्षेत्र सूखे पहाड़ों का है, जिसमें कोई मूल्यवान चीज पैदा नहीं होती। वर्षा बिलकुल कम होती है। पाए जाने वाले मुख्य पशु, घोड़े, खच्चरें, भेड़ बकरियां और याक हैं। सर्द ऋतु में यहां के निवासी अपने पशुओं सहित नीचे के क्षेत्रों की ओर चले जाते हैं हालांकि अब विकास के कारण इस प्रथा में कमी आ रही है। अब जैसे-जैसे विकास होता जा रहा है, लोग अपने पुश्तैनी धंधे छोड़ रहे हैं।

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