मंगल वर्षा

By: Jul 17th, 2017 12:05 am

पी के फूटे आज प्यार के

पानी बरसा री

हरियाली छा गई,

हमारे सावन सरसा री

बादल छाए आसमान में,

धरती फूली री

भरी सुहागिन, आज मांग में

भूली-भूली री

बिजली चमकी भाग सरीखी,

दादुर बोले री

अंध प्रान-सी बही,

उड़े पंछी अनमोले री

छिन-छिन उठी हिलोर

मगन-मन पागल दरसा री

फिसली-सी पगडंडी,

खिसकी आंख लजीली री

इंद्रधनुष रंग-रंगी आज मैं

सहज रंगीली री

रुन-झुन बिछिया आज,

हिला डुल मेरी बेनी री

ऊंचे-ऊंचे पैंग हिंडोला

सरग-नसेनी री

और सखी, सुन मोर विजन

वन दीखे घर-सा री

फुर-फुर उड़ी फुहार

अलक दल मोती छाए री

खड़ी खेत के बीच किसानिन

कजली गाए री

झर-झर झरना झरे

आज मन-प्रान सिहाये री

कौन जनम के पुन्न कि ऐसे

औसर आए री

रात सखी सुन, गात मुदित मन

साजन परसा री।

                      -भवानी प्रसाद मिश्र

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