विस्थापितों के हक पर गैर विस्थापितों का कब्जा

By: Jul 3rd, 2017 12:05 am

विस्थापित शब्द आजकल प्रायः हर रोज पढ़ने और सुनने को मिलता है। इसका सरलार्थ है कि सरकार द्वारा किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह की संपत्ति (भवन-भूमि आदि) का सार्वजनिक हित में मुआवजा राशि देकर अधिग्रहण करना। कल्याणकारी राज्य होने के नाते विस्थापितों के उचित पुनर्वास की जिम्मेदारी भी सरकार की ही बनती है। भाखड़ा बांध विस्थापितों की यह व्यथा-गाथा कमावेश सब जगह के विस्थापितों की समस्याओं को दर्शाती है। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा देश के विकास के लिए अति आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण बहु-उद्देश्यीय जल विद्युत परियोजनाओं का प्राथमिकता के आधार निर्माण कार्य आरंभ किया गया। पं. नेहरू के इसी सुनहरे सपने को मूर्त रूप देने के लिए बिलासपुर जिला के भाखड़ा में सतलुज नदी पर विश्व के सबसे ऊंचे बांध का निर्माण किया गया। इसके फलस्वरूप भाखड़ा से लेकर बरमाणा (सलापड़ पुल) तक 1700 फुट जलस्तर वाला लगभग 70 किलोमीटर लंबा जलाशय अस्तित्व में आया। यह विश्वस्तरीय मानव निर्मित जलाशयों में एक है। बिलासपुर के करीब 250 गांवों और ऐतिहासिक बिलासपुर नगर को अपनी प्रकृति प्रदत्त सुख-सुविधाओं तथा अमूल्य धरोहरों समेत जल समाधि दे दी गई। विस्थापितों के बारे बनाई गई तथाकथित नीतियां पूर्णतया त्रुटिपूर्ण और विसंगतियों से भरी होने के कारण विस्थापितों के हितों की रक्षा करने में पूर्णतया असफल साबित हुए हैं। बिलासपुर नगर के लोगों की अधिगृहीत की गई संपत्ति की पैमाइश और मूल्य निर्धारण राजस्व विभाग द्वारा मुगलकालीन नियमों कार्य प्रणाली के अनुसार किया गया। इसी आधार पर अवार्ड तय किए गए। संयुक्त परिवार प्रणाली के अधिकतर घर के मुखिया का केवल एक ही अवार्ड बना। अधिगृहीत संपत्ति की वन टाइम पेमेंट की गई। यह उसकी उपयोगिता के समय के अनुसार निर्धारित की जानी चाहिए थी। कुछ मकान दुकान के किराएदारों को विस्थापित मानकर प्लाट के हकदार तथा गुडविल राशि दी गई। विस्थापितों को प्रकृति प्रदत्त अनेकों सुविधाओं तथा प्राचीन धरोहरों को हमेशा के खो देने के एवज न तो वित्तीय सहायता दी और न ही उन्हें पुनर्स्थापित किया गया। ‘पुनर्वास’ के नाम पर विस्थापितों के साथ धोखा किया गया। नगर विस्थापितों से यह कहा गया कि उनके बसाव के लिए छह सेक्टरों वाला एक नया नियोजित शहर निर्माण किया जाएगा। इसमें जनता सेक्टर-1, 2 और 3, सेक्टर-6 मेन मार्किट तथा सेक्टर-4 गवर्नमेंट सेक्टर। विस्थापितों को मकान बदले मकान, दुकान के बदले दुकान का प्लाट तथा जमीन के बदले जमीन की घोषणा की गई। यह घोषणा विस्थापितों के हितों के सर्वथा विपरीत थी। एक से ज्यादा मकानों-दुकानों के मालिकों को केवल ही प्लाट का प्रावधान। दूसरे मकान-दुकान चाहे जितनी ज्यादा भूमि पर थे, इनके लिए क्रमशः 1800 व फुट और 450 वर्ग फुट के प्लाट उपलब्ध करवाए जाने की व्यवस्था भी अन्यायपूर्ण थी। जमीन के बदले जमीन देने की घोषणा भी झूठ साबित हुई। नगर के कई विस्थापितों के पास 10 से 40 बीघा तक कृषि सिंचित भूमि तथा बाग-बागीचे थे। जिन्हें इस घोषणा के तहत भूमि मिली है, उनकी संख्या न के बराबर है। आज हालात ये है कि मूल विस्थापितों की पहचान ही खत्म कर दी गई है। जलमग्न बिलासपुर के विस्थापितों के बसाव के लिए वर्तमान ‘न्यू बिलासपुर टाउनशिप’ का निर्माण एक मास्टर प्लान तथा बाई लॉज के मुताबिक एचपी पीडब्ल्यूडी के नए एनबीटी डिवीजन की देखरेख में पासशुदा नक्शों के मुताबिक हुआ। नए नगर में तमाम नागरिक सुविधाएं उपलब्ध करवाई गई थीं। हर घर तक मोटरेबल पक्की सड़क, स्ट्रीट लाइट, ड्रेनेज सिस्टम, सीवरेज और वाटर-सप्लाई लाइन, पब्लिक टैक्स, सार्वजनिक शौचालय।’ सभी निजी और सरकारी भवन दोमंजिला ही बनाए गए। नेताओं और नौकरशाहों की जुगलबंदी के कारण आज स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि उपरोक्त सारी नागरिक सुविधाएं प्रायः लुप्त हो गई हैं। नियोजित शहर में एक अनियोजित अवैध शहर बनने का सिलसिला आज की तारीख तक जारी है। गैर विस्थापितों को विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत नगर में भूमि आबंटित की जा रही है। मूल विस्थापितों की दूसरी पीढ़ी को विस्थापित नहीं माना जा रहा है। जब अवैध कब्जाधारी गैर विस्थापितों की दूसरी-तीसरी पीढ़ी को सरकार नगर क्षेत्र में बसा रही है।  1980 के दशक में राजस्व विभाग द्वारा शहर का बंदोबस्त किए जाने के तो विस्थापितों की समस्याओं को और ज्यादा उलझा दिया गया। इस मायने में जंगल (कंकरीट का) और जंगलराज का साक्षात यदि किसी को करना है, तो बिलासपुर में उनका स्वागत है।

-एसआर आजाद

10, डियारा सेक्टर, न्यू बिलासपुर-174001


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