हां, मैं गद्दी हूं

By: Jul 23rd, 2017 12:05 am

भोलेपन और सादगी की मूरत गद्दी समुदाय पहाड़ की शान है। प्रदेश में महज दस फीसदी आबादी होने के बाद भी यह समुदाय 20 विधानसभा क्षेत्रों के सियासी समीकरणों को बदलने का माद्दा रखता है। गद्दी समुदाय ने मेहनत के दम पर हर क्षेत्र में कामयाबी के झंडे गाड़े हैं, तरक्की के पूरे सफर को दखल के जरिए बता रहे हैं मस्तराम डलैल…

भेड़-बकरियों को रेबड़ बनकर हांकने वाला गद्दी अब समृद्ध व्यवसायी बन गया है।  समुदाय राज्य के 20 विस क्षेत्रों में चुनावी नतीजे प्रभावित कर सकता है। प्रशासन के उच्च पदों पर इस समुदाय के अधिकारी विराजमान हैं। केंद्र की मोदी सरकार में इसी कुनबे से निकले शख्स पीएमओ में सलाहकार हैं। गुजरात से लेकर राजस्थान तक के उच्च पदों पर समुदाय के अफसर काबिज रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री में समुदाय का डंका बज रहा है। सबसे ज्यादा होटल व्यवसायी इसी कुटुंब के लोग हैं। विद्युत परियोजनाआें और सेबों ने इनकी आर्थिकी को पंख लगा दिए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश में गद्दी होने के क्या मायने हैं।

दस फीसदी आबादी पर चुनावी नतीजे बदलने का दम

हिमाचल प्रदेश की कुल आबादी में दस फीसदी इस समुदाय के लोगों का सियासी महत्त्व भी अब बढ़ने लगा है। चंबा जिला में चार लाख और कांगड़ा घाटी में तीन लाख समुदाय के लोग 20 विस क्षेत्रों के चुनावी नतीजों को पलटने का माद्दा रखते हैं। इसके अलावा 50 हजार के करीब समुदाय के लोग प्रदेश के बाहर साधन संपन्न जीवन यापन कर रहे हैं। चंबा जिला के भरमौर तथा बनीखेत विस क्षेत्र में 100 फीसदी आबादी समुदाय की है। भटियात तथा चंबा में भी 90 फीसदी से ज्यादा गद्दी समुदाय बहुल क्षेत्र है। चुराह विस क्षेत्र में भी इसी समुदाय का दबदबा है। कांगड़ा जिला के बैजनाथ, पालमपुर, नगरोटा बगवां, धर्मशाला तथा नूरपुर क्षेत्रों में इस समुदाय की संख्या अन्य से अधिक हो गई है। इसी तरह कांगड़ा, शाहपुर, जवाली तथा गंगथ में 15 फीसदी आबादी इसी समुदाय की है। कांगड़ा जिला के अन्य विस क्षेत्रों में भी इस समुदाय की पैठ तेजी से बढ़ रही है।

उपेक्षा का शिकार भरमौर

समुदाय के लोग एशिया में सबसे परिश्रमी आंके जाते हैं। ईमानदार छवि इस समुदाय की सबसे बड़ी पहचान है। समुदाय की संस्कृति और अतिथि देवो भवः की शैली गजब की है। हालांकि पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत भरमौर क्षेत्र उपेक्षा का शिकार है। मणिमहेश यात्रा को अमरनाथ के मुकाबले रति भर सुविधाएं नहीं मिल पाईं। होली-उतराला तथा कुवारसी-धर्मशाला तथा होली-चामुंडा टनल का निर्माण भी दावों तक सिमट गया

मांगणी नवालिया

मेहनतकश शैली

बर्फीले तूफान से टकराने का जज्बा समुदाय की मेहनतकश शैली ने इसकी अलग पहचान बनाई है। अब भी 15 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित दर्रों के बर्फीले तूफान से टकराने का जज्बा इसी समुदाय में है। हालांकि समुदाय के लोग भेड़ व्यवसाय से नाता तोड़कर सेब व्यवसाय की ओर मुडे़ हैं। कबायली मानसिकता अब शिक्षा की तरफ रुख कर उच्च पदों के लिए लालायित है। पर्यटन में गद्दी बहुल क्षेत्र का पिछड़ापन अखरता है

इंद्र सिंह ठाकुर

सादगी-भोलापन पहचान

सादगी और भोलेपन की छवि ने समुदाय के लोगों को विश्वसनीय बनाया है। इसी भरोसे के कारण समुदाय की समाज में पैठ बढ़ी है। ईमानदारी तथा कड़े परिश्रम के बूत्ते अपने आपको स्थापित किया है। बावजूद इसके गद्दी बहुल क्षेत्रों में अब भी  विकास की दरकार है। इन क्षेत्रों के लिए पर्यटन, सड़क, शिक्षा तथा स्वास्थ्य की सुविधाएं अभी तक नहीं मिल पाई हैं

सुरजीत भरमौरी

आरक्षण के ज्यादा मायने नहीं

आरक्षण का लाभ अब बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता, क्योंकि इस वर्ग के लोग सामान्य कैटेगरी के छात्रों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। जनजातीय क्षेत्रों के विकास का पैसा भी चुनिंदा इलाकों के लिए जारी होता है। समुदाय ने अपनी आर्थिकी को अपने दम पर मजबूत किया है। उच्च ओहदों पर अपनी काबिलीयत से पहुंचे हैं। सरकार और नेताआें का सहयोग मिलता, तो यह समुदाय 70 के दशक में ही ऊपर उठ सकता था

सूरज पंडित

नहीं बनी ठोस योजनाएं

समुदाय के लोग उच्च पदों पर आसीन हैं। होटल व्यवसाय से लेकर फिल्म इंडस्ट्री तक अपनी पैठ बना चुके हैं। छात्र संगठनों से लेकर प्रदेश की सियासत तक समुदाय ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। इस समुदाय की समाज में सादगी तथा ईमानदारी वाली छवि हमारा सीना चौड़ा करती है। सरकार गद्दी बहुल क्षेत्रों के लिए ठोस योजनाएं नहीं बना पाई है। इसके लिए अब भी इच्छा शक्ति की कमी दर्शाती है

विशाल नहरिया

पहाड़ी मानुष को मिला एसटी का दर्जा

आजादी के बाद पिछड़ी जातियों को चिन्हित करने के लिए सभी राज्यों से सूचियां मांगी गई। भरमौर में बसे हिलमैन का जिक्र इस सूची में महज प्रमाण पत्र जारी करने के उद्देश्य से किया गया। हिमाचल से भेजी गई सूची में हिलमैन (पहाड़ी मानुष) को गद्दी समुदाय लिखा गया। भारत सरकार ने इसी आधार पर वर्ष 1951 में इस समुदाय को जनजातीय दर्जा प्रदान कर दिया। इस आधार पर समुदाय को शिक्षा व सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया गया। तत्कालीन यह सुविधा सिर्फ चंबा-भरमौर के पहाड़ी क्षेत्र में बसे समुदाय के लोगों को प्रदान की गई। अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के केंद्रीय मंत्री शांता कुमार ने कांगड़ा में बसे गद्दी समुदाय के लोगों को भी इस दर्जे का हक प्रदान कर दिया। इस आधार पर अब प्रदेश भर में बसे समुदाय के लोगों को जनजातीय दर्जा मिला है और शिक्षा तथा सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है। इसी दम पर समुदाय के लोग आईएएस, आईपीएस, एचपीएस, एचएएस तथा डाक्टर-इंजीनियर बने हैं। वर्तमान में केंद्र तथा प्रदेश के करीब सभी विभागों व अर्द्ध सरकारी महकमों में समुदाय के लोग लिपिक से लेकर उच्च पदों तक आसीन हैं।

सियासत में भी अलहदा रुतबा

वीरभद्र सरकार की कैबिनेट में इसी समुदाय के ठाकुर सिंह भरमौरी वन मंत्री हैं। चंबा सदर के विधायक बीके चौहान, चुराह के हंसराज तथा भटियात के एमएलए जरियाल गद्दी समुदाय के ताल्लुक रखते हैं। धूमल सरकार में पूरी तरह से समुदाय का दबदबा रहा है। पिछली सरकार में किशन कपूर कैबिनेट मंत्री और पंडित तुलसी राम विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं। समुदाय से दूलो राम बैजनाथ के विधायक रह चुके हैं। इसके अलावा मेजर बृज लाल दो बार धर्मशाला विधानसभा से निर्वाचित हो चुके हैं। इस समुदाय के त्रिलोक कपूर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हैं। इसके अलावा समुदाय के कई नेता विभिन्न बोर्डों तथा निगमों के चेयरमैन-वाइस चेयरमैन हैं।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कठुआ से गद्दी विधायक

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में गद्दी समुदाय के नेताओं का डंका बजने लगा है। इस बार की विधानसभा में पहली बार कठुआ हलके से समुदाय का विधायक जीतकर जम्मू विधानसभा में पहुंचा है। वीरभद्र सरकार की कैबिनेट में इसी समुदाय के ठाकुर सिंह भरमौरी वन मंत्री हैं।

एक लाख से ज्यादा प्रति व्यक्ति आय

समुदाय के लोगों की एक लाख से ज्यादा प्रति व्यक्ति आय है। एक अनुमान के अनुसार हिमाचल की एक लाख चार हजार 943 के मुकाबले समुदाय के लोगों की पर कैपिटा इन्कम अधिक है। इसका मुख्य कारण सेब व्यवसाय है। इसके अलावा होटल,इंडस्ट्री में समुदाय ने अपनी पैठ बनाई है। जड़ी-बूटियों के व्यवसाय में तेजी से व्यापार बढ़ाया है।

टर्की से आए थे मुस्लिम गद्दी

सुल्तान महमूद गजनवी ने  कबूल करवाया था इस्लाम धर्म भारत के आधुनिकीकरण में मुस्लिम गद्दियों का सराहनीय योगदान रहा है।  कुछ इतिहासकारों का मत है कि भारतीय मुस्लिम गद्दियों का संबंध टर्की से है और कहते हैं कि यह महमूद गजनवी के साथ उसके सैनिकों के रूप में भारत में आए थे, जो यहीं पर स्थापित हो गए और यह जाति भारत के सभी भारतीयों व विदेशी शासकों के प्रति हमेशा सेवानिष्ठ रही। आजादी से पहले पाकिस्तान के सिंध व पश्चिमी पंजाब के प्रत्येक प्रांतों में गद्दी आबाद थे। 1947 में आजादी के बाद हरियाणा और दिल्ली में मुस्लिम गद्दी भी पाकिस्तान चले गए थे। हरियाणा के अंबाला और करनाल जिलों के गद्दी अधिकतर कृषक थे, जो पाकिस्तान में भी कृषक बने। परंपरा के आधार पर यह कहा गया है कि हरियाणा के गद्दी, राजपूत (क्षत्रिय) थे, जिनको सुल्तान महमूद गजनी ने उन्हें सिंध प्रांत में हराया था, जहां उनके कई गणराज्य थे। हार जाने के कारण महमूद गजनी ने उन्हें इस्लाम धर्म कबूल कराकर मुस्लिम बना दिया था। मुस्लिम धर्म अपनाने के उपरांत ये मुस्लिम गद्दी कहलाने लगे। गद्दी अब पाकिस्तान के पंजाब के मध्य व दक्षिणी भागों, मुजफ्फरागढ़, आेंकारा, शेखपुरा, गुजरांवाला और ननकाना साहिब विशेषकर गुजरांवाला, शेखपुरा, कोट अड्डू व कुंधया नगरों में पाए जाते हैं। पंजाब के अधिकतर गद्दी आधुनिक सुविधाआें से युक्त गांवों में रहते हैं, जहां पर बहुत संख्या में भारत की ही तरह सेना व पुलिस विभागों में बड़ी संख्या में कार्यरत हैं। ये अपनी जाति के समूहों में ही शादी करते हैं और सुन्नी मुस्लमान हैं, जो हरियाणवी, पंजाबी व उर्दू भाषाआें का प्रयोग करते हैं। भारत वर्ष के राजस्थान और दिल्ली से विस्थापित हुए मुस्लिम गद्दी पाकिस्तान के सिंध, कराची, हैदराबाद व मीरपुर आदि प्रांतों में स्थापित हैं।

पीएम के सलाहकार केसी कपूर

मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रधान सचिव से लेकर लोक निर्माण विभाग के प्रधान सचिव पद पर इसी समुदाय के प्रशासनिक अफसरों का दबदबा रहा है। गुजरात सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त होकर राज्य चुनाव अधिकारी बनने का गौरव भी इसी समुदाय के आईएएस अधिकारी केसी कपूर को मिला। वह वर्तमान में प्रधानमंत्री कार्यालय में सलाहकार नियुक्त हैं। उनके छोटे भाई पीसी कपूर हिमाचल सरकार से अतिरिक्त मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त होने से पहले अधिकतर विभागों का प्रभार संभाल चुके हैं। समुदाय से ताल्लुक रखने वाले रिटायर्ड आईएएस अधिकारी भीमसेन हिमाचल प्रदेश के पहले राज्य मुख्य सूचना आयुक्त बने हैं।  इससे पहले वह धूमल सरकार में प्रिंसीपल सेक्रेटरी टू सीएम रह चुके हैं। उनके बेटे अर्जित सेन हिमाचल प्रदेश काडर के आईपीएस अधिकारी हैं। इसी समुदाय के आईएएस अधिकारी आेंकार शर्मा अपनी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए चर्चा में रहे हैं। प्रधान सचिव ओंकार शर्मा के पास वर्तमान में आधा दर्जन महत्त्वपूर्ण विभागों का जिम्मा है।

उत्तराखंड से राजस्थान तक समुदाय की धाक

समुदाय के आईपीएस अधिकारी लोकेश्वर जरयाल उत्तराखंड में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसी समुदाय के रामपाल राजस्थान सरकार से प्रिंसीपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फोरेस्ट पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। इसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले नंद लाल, भारत सरकार के वित्त मंत्रालय से फाइनांशियल एडवाइजर पद पर सेवाएं दे चुके हैं।

न्यूरो सर्जन डा. जनक राज ने चमकाया नाम

इसके अलावा  भारतीय सेना में ब्रिगेडियर से लेकर कर्नल तक कई अधिकारी समुदाय का सीना चौड़ा कर रहे हैं। बतौर न्यूरो सर्जन प्रदेश भर में अपनी पहचान बना चुके डा. जनक राज सहित कई चिकित्सक आईजीएमसी, टीएमसी और प्रदेश के अन्य अस्पतालों में सेवाएं दे रहे हैं। माया नगरी में अपनी काबिलीयत का लोहा मनवा चुके गद्दी समुदाय के चौकस भारद्वाज कई फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। अब उनकी पहचान एक मंझे हुए फिल्म निर्माता-निदेशक के रूप में बन चुकी है।

विदेशों में भी बनाई खास पैठ

समुदाय ने अपनी पैठ सात समुद्र पार तक बना ली है। समुदाय की कोख से इंजीनियर बने युवा अब अमरीका-जापान में अपनी कंपनियां चला रहे हैं। मूलतः भरमौर से ताल्लुक रखने वाले बैजनाथ क्षेत्र के दो युवा इंजीनियर विदेशों में अपनी कंपनी चला रहे हैं।

भरमौर से फ्रीडम फाइटर धनी राम को कैसे भूलें

इसके अलावा भरमौर के धनी राम ने स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी अनूठा छाप छोड़ी थी। वीरभद्र सरकार में पुलिस तथा प्रशासनिक सेवाआें में समुदाय के अधिकारियों की निष्ठा और ईमानदारी मिसाल है। चिकित्सा के क्षेत्र में भी समुदाय के कई डाक्टर अपनी सेवाआें से योगदान दे रहे हैं।

सेब से बेहतर की आर्थिकी

भरमौर का भेड़ पालक अब सेब का प्रमुख व्यवसायी बन गया है। वर्तमान में शिमला तथा कुल्लू के बाद देश की मंडियों में भरमौर का सेब पहुंच रहा है। अरबों के इस कारोबार में इस समुदाय की आर्थिकी तथा सामाजिक पैठ को पुख्ता किया है। इसी तरह धर्मशाला, मकलोडगंज तथा नड्डी में सबसे ज्यादा होटलियर्स समुदाय के व्यवसायी हैं।

कारोबार में भी दे रहे टक्कर

जड़ी-बूटियों के कारोबार में समुदाय के व्यापारी पंजाब के व्यावसायियों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इस कारण समुदाय के व्यवसायी व्यापार के क्षेत्र में भी अपनी विशेष पहचान बना चुके हैं।

भेड़ व्यवसाय समुदाय की रीढ़

भेड़ व्यवसाय इस समुदाय की  है। इसके चलते गद्दी समुदाय के छात्र अब उच्च शिक्षा के लिए चंडीगढ़-दिल्ली का रुख कर रहे हैं। धर्मशाला तथा हमीरपुर के शिक्षण संस्थानों में इस समुदाय के छात्रों की सबसे ज्यादा संख्या है। आरक्षण ने भी समुदाय को हर साल नौकरियों के फाटक खोले हैं। इंजीनियरिंग तथा मेडिकल की परीक्षा में हर साल एक दर्जन सीटें समुदाय के छात्रों को मिल रही हैं। इस कारण इंजीनियर्स तथा डाक्टरों की फौज भी बढ़ने लगी है।

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