हिमाचली पुरुषार्थ :चंद्रभागा को चामत्कारिक मानते चंद्रमोहन

By: Jul 26th, 2017 12:07 am

सरस्वती नदी के बारे में खोज करते- करते डाक्टर चंद्रमोहन परशीरा को तांदी संगम के बारे में इतना अधिक जानने का मौका मिला कि वह इस बात को लेकर अपने आप को ही नहीं बल्कि लाहुलवासियों को भी खुशनसीब मानते हैं कि उन्होंने ऐसे पवित्र स्थल पर जन्म लिया है, जहां पर पवित्र चंद्रभागा नदी बहती है…

cereerबचपन से घर के बुजुर्गों को तांदी संगम में जाते देखा करते थे। फागली उत्सव के दौरान भी लोग इस संगम तट पर आते और यहां के पवित्र जल को घर ले जाकर उसे घर में छिड़कते और पानी में डालकर नहाते। तभी से तांदी संगम के महत्त्व को जानते थे। परिवार के साथ संगम तट पर जाते और सभी परंपराओं को भी निभाते थे। तांदी संगम को देखते-देखते ही बड़े हो गए। फिर जब बड़े होकर कुरुक्षेत्र में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान बतौर प्रवक्ता सरस्वती नदी के विषय को लेकर बोलने का मौका मिला, तो सरस्वती नदी के बारे में खोज करते- करते डाक्टर चंद्रमोहन परशीरा को तांदी संगम के बारे में इतना अधिक जानने का मौका मिला कि वह इस बात को लेकर अपने आप को ही नहीं बल्कि लाहुलवासियों को भी खुशनसीब मानते हैं कि उन्होंने ऐसे पवित्र स्थल पर जन्म लिया है, जहां पर पवित्र चंद्रभागा नदी बहती है। डाक्टर चंद्रमोहन परशीरा की मानें तो सरस्वती नदी के बारे में जानते-जानते उन्हें हरिद्वार में ब्राह्मणों ने बताया कि 100 साल पहले हरिद्वार से पंडितोें का समूह तांदी संगम तट पर चंद्रभागा नदी में पूजा के लिया जाया करता था। गंगा व सरस्वती की तरह यह भी पवित्र नदी है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में है जहां पर नदी सूक्त अध्याय में इसका पूरा वर्णन पढ़ने को मिलता है। चंद्रमोहन परशीरा ने भी कई ग्रंथों को जब पढ़ा तो अनेकों जगह पर उन्हें चंद्रभागा नदी का वर्णन पढ़ने को मिला। तभी उन्हें मालूम हुआ है कि इस नदी का कितना महत्त्व है। इसी बीच उन्हें जब मालूम पड़ा कि विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल बीमार चल रहे हैं, वह उनसे मिलने पहुंचे। उनके देहांत के बाद हिंदू परिषद ने निर्णय लिया था कि उनकी अस्थियों को पवित्र नदियों में विसर्जित किया जाएगा। परशीरा ने आग्रह किया था कि अशोक सिंगल की अस्थियोें को हिमाचल में भी चंद्रभागा नदी में विसर्जित किया जाए। डा. चंद्रमोहन परशीरा के अनुसार अगर अशोक सिंघल की अस्थियों को यहां विसर्जित नहीं किया जाता, तो आज तांदी संगम पर्व नहीं मनाया जाता। साहित्याकार कृष्णकांत ने भी गं्रथों का शोध किया है, जहां पर भागवत में भी इसका वर्णन मिलता है। आज भी इस पवित्र संगम तट पर लाहुल के लोग खासतौर पर गौशाल गांव के लोग हर साल फागली उत्सव के दौरान चंद्रभागा नदी का पानी लेने आते है और साथ घर ले जाते है। तांदी संगम पर्यटन की दृष्टि से उभर कर सामने आए, लेकिन अच्छा सैलानी यहां पहुंचे जो नेचर व पर्यावरण से प्रेम करता हो। ताकि लाहुल घाटी जैसी आज साफ- सुथरी है, वैसी हमेशा बनी रहे। युवाओं को यहां रोजगार मिले। इसे लेकर तांदी संगम को उभारने को लेकर प्रारूप तैयार किया गया है। पर्यटन मंत्रालय ने भी इसका विकास करना लाजिमी समझा। इससे लाहुल-स्पीति का पर्यटन विकसित होगा।

 -संदीप शर्मा, कुल्लू

जब रू-ब-रू हुए…

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संगम पर्व की पृष्ठभूमि कैसे बनी?

चंद्रभागा संगम पर जब अशोक सिंघल के देहांत के बाद 29 जून, 2016 को उनकी अस्थियों का विर्सजन किया गया, तो चंद्रभागा संगम एक पृष्ठभूमि बन गई। तभी से ही यहां पर इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई।

आस्था के इस  तट पर  आपके लक्ष्यों का संगम वास्तव में है क्या?

चंद्रभागा नदी को सप्त सिंधु की एक नदी के तौर पर भी माना जाता है। हिंदू व बौद्ध धर्म दोनों का यह एक पवित्र स्थल है। जबसे यह पर्व शुरू हुआ है तबसे यह विश्वव्यापी आस्था से भी जुड़ गया है।

तांदी संगम की रूपरेखा में सबसे बड़ी पवित्रता आपका शोध कैसे निरूपति करता है?

तांदी संगम जिस तरह से लोगों के सामने आया है यह भी ईश्वर की अनुकंपा हुई। जब विभिन्न शास्त्रों को पढ़ा गया तो उनमें भी चंद्रभागा संगम का उल्लेख पाया गया। शिव पुराण के पांचवें अध्याय में भी तांदी संगम का उल्लेख है।

समाज का कितना समर्थन मिला और इस धार्मिक आयोजन के राष्ट्रीय पैगाम क्या हैं?

तांदी संगम पर लोगों का भरपूर समर्थन व सहयोग मिला। अगर इस वर्ष की बात की जाए तो क्षेत्र के आसपास के 108 महिला मंडलों द्वारा राशन एकत्रित किया गया, जिससे संगम पर्व के दिन भंडारा आयोजित हुआ है। हजारों की संख्या के हिसाब से लोगों ने भंडारे का आनंद लिया है। उसके बावजूद तीन क्विंटल घी बच गया। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि लोग इस घाट को लेकर काफी उत्सुक हैं।

हिमाचल में इस तरह कई संगम हैं, जहां प्राचीन मान्यताओं से अस्थि विसर्जन होते हैं, तो क्या इस दिशा में और स्थल जुड़ेंगे?

हिमाचल में अगर ऐसे कई संगम हैं तो वहां के स्थानीय लोगों को इस पर शोध करना चाहिए। वहां ऐतिहासिक घटनाओं को लोगों के सामने लाना चाहिए। समाज के सामने जब ऐतिहासिक घटनाएं आएंगी तभी संगम का जीर्णोद्धार हो सकता है। यहां कई नाले भी ऐसे पवित्र हैं, जहां पर लोग अस्थियों का विसर्जन करते हैं।

हिमाचली नदियों के पौराणिक महत्त्व पर हुए अध्ययन को कहां तक पूर्ण मानते हैं?

हिमाचल की नदियों पर किसी भी तरह का कोई शोध नहीं हो रहा है। वर्तमान युग में कोई बड़ा प्रयास नदियों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए उठाया जा रहा है। कई जलविद्युत परियोजनाएं नदियों के वजूद को खत्म कर रही हैं।

कोई विशेष शोध, आलेख या प्रकाशन, जिसमें ऐसा जिक्र मिलता है?

हिमाचल की पवित्र नदियों से जुड़े इतिहास का अगर शोध किया जाता है तो कई ऐतिहासिक स्रोत सामने आएंगे। यह तभी संभव है अगर सरकार हिमाचल की नदियों व जलस्रोेतों के संरक्षण व संवर्द्धन बारे कोई ठोस कदम उठाती है।

हिमाचल में धार्मिक पर्यटन पर आपके सुझाव?

हिमाचल में काफी ज्यादा धार्मिक स्थल हैं। आबादी से डेढ़ गुना ज्यादा तक यहां पर बाहरी राज्यों से सैलानी आते हैं, लेकिन धार्मिक यात्रा और धार्मिक पर्यटन में अलग-अलग अंतर है। पर्यटन की दृष्टि से बेशक अच्छी खासी आमदनी प्रदेश के राजकोष में जाती हो, लेकिन यहां की सड़कें व यातायात की स्थितियां अच्छी नहीं हैं। इन्हें तुरंत सुधारने की जरूरत है, जिससे हिमाचल में धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।

गंगा आरती की तरह हिमाचली नदियों के संदर्भ में ऐसे कुछ प्रयास कहां तक जायज हैं?

गंगा की तरह हिमाचल में अभी नदियों की आरतियों का प्रचलन शुरू नहीं हुआ है। अगर चंद्रभागा संगम पर जल्द घाट बनता है तो यहां पर हर दिन आरती भी होगी व अन्य कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान भी होंगे और नदियों के संदर्भ में अगर ऐसे प्रयास किए जाते हैं तो ये काफी जायज भी हैं। इससे नदियों के प्रति लोगों की आस्था बढ़ेगी।

जल स्रोतों के धार्मिक अनुष्ठान में हिमाचली समाज की भूमिका और कर्त्तव्य?

हिमाचल में नदियों के साथ-साथ काफी ज्यादा ऐसे नाले भी हैं, जो कि अपना धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्त्व रखते हैं। यहां के लोग किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले गंगाजल की तरह ही नदी-नालों से अभिषेक करते हैं। जिसके बाद ही यहां पर धार्मिक कार्य शुरू होते हैं तो हिमाचल समाज की भूमिका के साथ-साथ कर्त्तव्य भी बन जाता है कि इन नदियों  और धार्मिक नालों को गंदगी से बचाया जाए।

हम कब तक नदियों की केवल पूजा करेंगे, जबकि पहाड़ के जलाधिकार सुनिश्चित नहीं?

हिमाचल में तो नदियों की पूजा का प्रचलन तो अभी शुरू नहीं है और न ही लोगों के पास रूटीन में नदियों की पूजा करने का कोई बहाना है तथा अगर तांदी में चंद्रभागा संगम पर घाट जल्द बनता है तो यहां पर लोग बाहरी राज्यों से भी आएंगे।

क्या आप सहमत हैं कि नदी अब बांध से आहत है?

प्रदेश की विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं से नदियों का वजूद खत्म हो रहा है। नदियां वहां से आहत हैं लेकिन इसका नदी पर कोई असर नहीं पड़ता है। नदी की धारा को जिस तरफ मोड़ दिया जाए वह उसी दिशा में मुड़ जाती है, लेकिन उसके किनारे सैकड़ों वर्षों से रहने वाले लोगोें पर इसका असर पड़ता है।

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