औद्योगिक सभ्यता से बढ़ा पर्यावरण प्रदूषण

By: Aug 2nd, 2017 12:05 am

बढ़ती औद्योगिक सभ्यता की एक सबसे बड़ी कमी यह रही है कि इससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा है। वर्तमान समय में कारखानों की चिमनियों से निरंतर निकलता धुआं, विभिन्न वाहन तथा ताप बिजलीघर वायुमंडल में भारी मात्रा में धुआं छोड़ते हैं…

संसाधनों की कमी : पर्यावरण प्रदूषित होने का एक प्रमुख कारण संसाधनों की कमी है। जनसंख्या वृद्ध के साथ-साथ भूमि, खनिज, कृषि उत्पाद, ऊर्जा तथा आवास की प्रति व्यक्ति उपलब्धता कम होती जा रही है।

बढ़ता औद्योगिकीकरण : बढ़ती औद्योगिक सभ्यता की एक सबसे बड़ी कमी यह रही है कि इससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा है। वर्तमान समय में कारखानों की चिमनियों से निरंतर निकलता धुआं, विभिन्न वाहन तथा ताप बिजलीघर वायुमंडल में भारी मात्रा में धुआं छोड़ते हैं, जिससे वायुमंडल में भारी मात्रा में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ तालाबों, नदियों तथा समुद्रों में प्रदूषण की समस्या पैदा हो गई है। इससे पेड़- पौधों के साथ-साथ बड़ी संख्या में जीव जंतु भी मृत्यु का शकार होने लगे हैं।

वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि : वर्तमान समय में पर्यावरण प्रदूषण का खतरा रासायनिक पदार्थों, जहरीले धुएं आदि से उतना अधिक नहीं है, जितना पृथ्वी के वायुमंडल के तापमान के बढ़ने से उत्पन्न हुआ है। वायुमंडल के तापमान में वृद्धि होने से धु्रवों पर बर्फ पिघलने और इस तरह समुद्री तटवर्ती क्षेत्रों के पानी में डूब जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है।

वनों का कटाव : औद्योगिक धुएं से वायुमंडल में फैलने वाली कार्बन डाइआक्साइड तथा अन्य जहरीली गैसों के प्रभाव को कम करने के लिए जहां अधिक वन लगाने की आवश्यकता है, वहीं वन क्षेत्रों में निरंतर कमी आ रही है। नवीन उद्योग तथा नवीन बस्तियां बसाने के लिए अतिरिक्त जमीन प्राप्त करने के लिए वनों को साफ करने का क्रम निरंतर चल रहा है।

बढ़ती जनसंख्या : विकास और जनसंख्या का एक दूसरे से अभिन्न संबंध है। वर्तमान में मानव जाति के समक्ष अनेक समस्याएं हैं। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या पृथ्वी पर बढ़ती जनसंख्या है। विश्व की जनसंख्या प्रति वर्ष 86 मिलियन की दर से बढ़ रही है। शहरों में बढ़ती हुई जनसंख्या के फलस्वरूप तंग मलिन बस्तियों का जाल बिछता जा रहा है। इससे पेय जल, मल-जल, के निपटारे आदि की समस्याएं बढ़ रही हैं। जनसंख्या वृद्धि से ऊर्जा के परंपरागत साधनों के उपयोग में वृद्धि हुई है।

अनियमित ऋतु : समय पर वर्षा का न होना, भयंकर बाढ़, भूकंप, महामारी एवं सूखा पड़ना आदि प्राकृतिक आपदाओं का कारण पर्यावरण का प्रदूषित हो जाना है। इससे मनुष्य में अनेक प्रकार की बीमारियां फैली हैं, कृषि योग्य भूमि के अनुपजाऊ होने की संभावना बढ़ी है।

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