क्यों आए भगवान कृष्ण और शिव आमने-सामने

By: Aug 19th, 2017 12:05 am

दानवीर दैत्यराज बलि के सौ प्रतापी पुत्र थे, उनमें सबसे बड़ा बाणासुर था। बाणासुर  ने भगवान शंकर की बड़ी कठिन तपस्या की। शंकर जी ने उसके तप से प्रसन्न होकर उसे सहस्र बाहु तथा अपार बल दे दिया। उसके सहस्र बाहु और अपार बल के भय से कोई भी उससे युद्ध नहीं करता था। इसी कारण से बाणासुर  अति अहंकारी हो गया। बहुत काल व्यतीत हो जाने के पश्चात भी जब उससे किसी ने युद्ध नहीं किया, तो वह एक दिन शंकर भगवान के पास आकर बोला, हे चराचर जगत के ईश्वर! मुझे युद्ध करने की प्रबल इच्छा हो रही है किंतु कोई भी मुझसे युद्ध नहीं करता। अतः कृपा करके आप ही मुझसे युद्ध करिए। उसकी अहंकारपूर्ण बात को सुन कर भगवान शंकर को क्रोध आया किंतु बाणासुर  उनका परमभक्त था इसलिए अपने क्रोध का शमन कर उन्होंने कहा, अरे मूर्ख! तुझसे युद्ध करके तेरे अहंकार को चूर-चूर करने वाला उत्पन्न हो चुका है। जब तेरे महल की ध्वजा गिर जाए, तभी समझ लेना कि तेरा शत्रु आ चुका है। बाणासुर की उषा नाम की एक कन्या थी। एक बार उषा ने स्वप्न में श्री कृष्ण के पौत्र तथा प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध को देखा और उस पर मोहित हो गई। उसने अपने स्वप्न की बात अपनी सखी चित्रलेखा को बताया। चित्रलेखा ने अपने योगबल से अनिरुद्ध का चित्र बनाया और उषा को दिखाया और पूछा, क्या तुमने इसी को स्वप्न में देखा था। इस पर उषा बोली हां। चित्रलेखा ने द्वारिका जाकर सोते हुए अनिरुद्ध को पलंग सहित उषा के महल में पहुंचा दिया। नींद खुलने पर अनिरुद्ध ने स्वयं को एक नए स्थान पर पाया और देखा कि उसके पास एक सुंदरी बैठी हुई है। अनिरुद्ध के पूछने पर उषा ने बताया कि वह बाणासुर  की पुत्री है और अनिरुद्ध को पति रूप में पाने की कामना रखती है। पहरेदारों को संदेह हो गया कि उषा के महल में अवश्य कोई बाहरी मनुष्य आ पहुंचा है। उन्होंने जाकर बाणासुर से अपने संदेह के विषय में बताया। उसी समय बाणासुर ने अपने महल की ध्वजा गिरी हुई देखी। उसे निश्चय हो गया कि कोई मेरा शत्रु ही उषा के महल में प्रवेश कर गया है। वह अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर उषा के महल में पहुंचा। उसने देखा कि उसकी पुत्री उषा के समीप पीतांबर वस्त्र पहने बड़े-बड़े नेत्रों वाला एक सांवला सलोना पुरुष बैठा हुआ है। बाणासुर  ने क्रोधित हो कर अनिरुद्ध को युद्ध के लिए ललकारा। उसकी ललकार सुनकर अनिरुद्ध भी युद्ध के लिए प्रस्तुत हो गए और उन्होंने लोहे के एक भयंकर मुगदर को उठा कर उसी के द्वारा बाणासुर  के समस्त अंगरक्षकों को मार डाला। बाणासुर और अनिरुद्ध में घोर युद्ध होने लगा। जब बाणासुर ने देखा कि अनिरुद्ध किसी भी प्रकार से उसके काबू में नहीं आ रहा है तो उसने नागपाश से उन्हें बांधकर बंदी बना लिया। इधर द्वारिका पुरी में अनिरुद्ध की खोज होने लगी और उनके न मिलने पर वहां पर शोक और रंज छा गया। तब देवर्षि नारद ने वहां पहुंच कर अनिरुद्ध का सारा वृत्तांत कहा। इस पर श्री कृष्ण, बलराम, प्रद्युम्न, गद, सांब आदि सभी वीर चतुरंगिणी सेना के साथ लेकर बाणासुर के नगर शोणितपुर पहुंचे और आक्रमण करके वहां के उद्यान, परकोटे, बुर्ज आदि को नष्ट कर दिया। आक्रमण का समाचार सुन बाणासुर  भी अपनी सेना को साथ लेकर आ गया। श्री बलराम जी कुंभांड तथा कूपकर्ण राक्षसों से जा भिड़े, अनिरुद्ध कार्तिकेय के साथ युद्ध करने लगे और श्री कृष्ण बाणासुर के सामने आ डटे। घनघोर संग्राम होने लगा। चहुं ओर बाणों की बौछार हो रही थी।  जब बाणासुर को लगने लगा की वो श्रीकृष्ण को नहीं हरा सकता, तो उसे भगवन शंकर की बात याद आई। अंत में उसने भगवन शंकर को याद किया। बाणासुर की पुकार सुनकर भगवान शिव ने रुद्रगणों की सेना को बाणासुर की सहायता के लिए भेज दिया। शिवगणों की सेना ने श्रीकृष्ण पर चारो और से आक्रमण कर दिया, लेकिन श्रीकृष्ण और श्रीबलराम के सामने उन्हें हार का मुह देखना पड़ा। शिवगणों को परस्त कर श्रीकृष्ण फिर बाणासुर पर टूट पड़े। अंत में अपने भक्त की रक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव रणभूमि में आए।

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