नवविवाहितों का ‘काला महीना’ शुरू
सावन साजन संग गुजारने के बाद कांगड़ा जिले की नई नवेली दुल्हनें काला महीना गुजारने अपने मायके जाने को तैयार हैं। इस जुदाई से नए दूल्हे भी उदास हैं। क्योंकि अब उन्हें अपनी जीवन संगिनी के दीदार भी डेढ़ माह बाद ही होंगे। रीति-रिवाज के मुताबिक इन दिनों में सास-बहु और दामाद-सास का एक दूसरे को देखना वर्जित माना जाता है। इस रिवाज का अभी भी पूरे चाव से पालन होता है।
उधर, बिटिया के घर आने की खुशी में उसके अम्मा बापू भी घर की चौखट पर खड़े इंतजार कर रहे हैं। पहाड़ी प्रथा के अनुसार काला महीना गुजारने को नवविवाहिता को पूरी तैयारी के साथ भेजा जाता है। एक दिन पहले ही पकवान बना दिए जाते हैं। एक बड़े टोकरे में इन पकवानों को भरकर दुल्हन के साथ मायके छोड़ कर आते हैं। दुल्हनों को इतनी लंबी छुट्टी शादी के बाद पहली बार यह ही मिलती है। सावन के खत्म होने और भाद्रपद के आगाज के साथ ही काला महीना शुरू हो जाता है। इस बार यह महीना 16 अगस्त से शुरू हो रहा है। कहीं- कहीं तो पति के साथ- साथ ससुर भी अपनी बहू को मायके छोड़ने जाते हैं। नई नवेली दुल्हनों को काले महीने में मायके भेजने के इस रीति-रिवाज को कांगड़ा के अलावा मंडी, बिलासपुर, ऊना व चंबा जिलों में भी मनाया जाता है।
युवा पीढ़ी ने अपनाया नया तरीका
भले ही आज की युवा पीढ़ी इन रिवाजों को मानने से थोड़ी हिचकिचती हो, लेकिन आज इन नए नवेले जोड़ों ने काला महीना मनाने का नया तरीका अपनाया है। चडीगढ़ में नौकरी करने वाले रोहित का कहना है वह काला महीने में अपनी बीवी को अपने साथ चड़ीगढ़ ले जाएंगे। वहीं कुछ ने इन दिनों घर और ससुराल से दूर घूमने- फिरने का प्लान बना लिया है। इससे एक तरफ जहां घूम फिर कर खूब मौज भी हो जाएगी और काला महीना भी कट जाएगा।
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