पूर्व सैनिकों के सेवा लाभ पर गिद्ध दृष्टि

By: Aug 22nd, 2017 12:02 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

पूर्व सैनिक निर्धारित सेवा शर्तों को पूरा करके ही नौकरी हासिल करते हैं, फिर इन सैनिकों की नौकरियों को लेकर इतना हो हल्ला एवं ईर्ष्या-द्वेष वाला रवैया क्यों? जब सैनिक पुनर्वास का मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है, तो फिर अफसरशाही भूतपूर्व सैनिकों को मिलने वाले सेवा लाभों को समाप्त करने के लिए क्यों इतना उतावलापन दिखा रही है…

मीडिया में भारत-चीन सीमा विवाद, पाक प्रायोजित आतंकवाद और भारतीय सशस्त्र सेनाओं की युद्धक भूमिका को लेकर व्यापक बहस हो रही है। वहीं दूसरी तरफ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हुई अनेक लड़ाइयों में अपनी बहादुरी का परचम लहराने वाले वीर हिमाचली सैनिकों की कुर्बानियों को नजरंदाज करते हुए कुछ स्वार्थी तत्त्वों द्वारा एक नई बहस को हवा दी जा रही है कि हिमाचल में पूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरियों में मिलने वाली सुविधाएं बंद कर दी गई हैं । केंद्र सरकार द्वारा तथा अपने राज्य के भूतपूर्व सैनिकों के पुनर्वास के लिए सभी राज्यों द्वारा व्यवस्था की गई है। हिमाचल प्रदेश में भी अपने वीर सेनानियों तथा पूर्व सैनिकों के कल्याण एवं पुनर्वास को सुनिश्चित बनाने के लिए डिमोबिलाइज्ड आर्म्ड फोर्सेस पर्सनल, रिजर्वेशन ऑफ वैकेंसीज इन हिमाचल स्टेट नॉन टेक्निकल सर्विसेज रूल्स-1972, डिमोबिलाइज्ड इंडियन आर्म्ड फोर्सेस पर्सनल रिजर्वेशन ऑफ वैकेंसीज इन एचपीएएस रूल्स-1974 और एक्स सर्विसमेन टेक्निकल सर्विसेज रूल्स-1985 को लागू किया गया था। इन्हीं नियमों के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के भूतपूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण, सीनियोरिटी तथा वित्तीय लाभ प्रदान किए जा रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों से भूतपूर्व सैनिकों की सैन्य सेवाकाल में की गई राष्ट्रसेवा के बदले उन्हें मिलने वाली सुविधाओं का कुछ कर्मचारी संगठनों द्वारा न केवल विरोध किया जा रहा है, बल्कि अब सुनियोजित षड्यंत्र के तहत यह दुष्प्रचार भी किया जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश सरकार की अगस्त, 2017 को हुई मंत्रिमंडलीय बैठक में इसी अधिनियम की धारा 5(1) को निरस्त करने संबंधी प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है तथा शीघ्र ही इस बारे अधिसूचना जारी होने वाली है। जहां तक डिमोबिलाइज्ड आर्म्ड फोर्सेस पर्सनल रूल्स, 1972 का संबंध है, इस सिलसिले में माननीय उच्च न्यायालय हिमाचल प्रदेश के समक्ष दायर सिविल रिट पटीशन संख्या 1352-2006 के तहत पूर्व सैनिकों के खिलाफ आए फैसले के बाद माननीय उच्चतम न्यायालय में दायर स्पेशल लीव पटिशन (सिविल) संख्या 66(68)2008 तथा एसएलपी सिविल (8710) 2009 पर जब तक माननीय उच्चतम न्यायालय का अंतिम फैसला नहीं आ जाता है, तब तक प्रदेश सरकार को यथास्थिति बनाए रखने के आदेश जारी किए हुए हैं। यह यथास्थिति तीन मार्च, 2008 तथा 16 मार्च, 2009 से प्रभाव में है।

अब प्रश्न उठता है कि जब यह मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है, तो फिर अफसरशाही भूतपूर्व सैनिकों को मिलने वाले सेवा लाभों को समाप्त करने के लिए क्यों इतना उतावलापन दिखा रही है? चुनावी महीनों के इतने नजदीक हिमाचल प्रदेश सरकार से यह अलोकप्रिय निर्णय करवाने के प्रयास क्यों किए जा रहे हैं? आखिर इस फैसले के पीछे कौन सी ताकतें काम कर रहीं हैं और किस का हित सधता नजर आ रहा है, इसकी प्रदेश सरकार को जरूर खोजबीन करनी चाहिए। इस मामले में सरकार का पक्ष भी अभी आना बाकी है। भूतपूर्व सैनिक जो कि हुनरमंद, शिक्षित-प्रशिक्षित, कौशलयुक्त तथा अनुशासित वर्ग है, का सेवानिवृत्ति के पश्चात पुनर्वास एवं कल्याण देखना भी केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। राज्य सरकार के सभी विभागों में सेवारत पूर्व सैनिक निर्धारित सेवा शर्तों को पूरा करके ही नौकरी हासिल करते हैं, फिर इन सैनिकों की नौकरियों को लेकर इतना हो हल्ला एवं ईर्ष्या-द्वेष वाला रवैया क्यों अपनाया जा रहा है? वैसे भी अब भारत में पूर्व सैनिकों, वीरगति को प्राप्त रणबांकुरों और सरहदों पर तैनात फौजियों को स्वतंत्रता एवं गणतंत्र दिवस के अवसरों पर महज याद कर लेने का रस्मी रिवाज बाकी रह गया है। हिमाचल प्रदेश में इस समय भूतपूर्व सैनिकों की संख्या लगभग एक लाख 11 हजार 508 है, जबकि वीर नारियों की संख्या 34 हजार 624 के आसपास है।

हिमाचल के औसतन हर घर से एक सदस्य देश की एकता, अखंडता व संप्रभुता की रक्षा के लिए सेना में शामिल होता है। जब एक सामान्य युवा घर-गृहस्थी बसाने की तैयारी कर रहा होता है, तब हिमाचली युवा सेना में शामिल होने के लिए सड़क व मैदानों पर पसीना बहा रहा होता है। आज भी जब कभी कहीं सेना की भर्ती होती है, तो देश सेवा का जज्बा हिमाचली युवाओं की लंबी कतारों को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। हजारों सैनिक भारतीय सशस्त्र सेनाओं में गर्व से राष्ट्रसेवा में संलग्न हैं। क्या वे सशस्त्र सेनाओं में रहकर देशसेवा का नमूना पेश कर कोई गुनाह कर रहे हैं? याद रखिए जब कोई राष्ट्र और उसके नागरिक अपने वीर सैनिकों का समुचित मान-सम्मान नहीं करते, तो उसके कुपरिणाम क्या हो सकते हैं उन्हें इसकी भी चिंता कर लेनी चाहिए। वह भी तब, जब हमारे बहादुर सैनिक आतंकवाद, पाकिस्तान और चीन जैसे पारंपरिक दुश्मनों से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार बैठे हों। इस लिहाज से भी उनका मनोबल ऊंचा बनाए रखने के लिए उन्हें उनका वाजिब हक मिलना ही चाहिए।

ई-मेल : rmpanuj@gmail.@gmail.com

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