मेरा, तुम्हारा नहीं, हमारा अपना
आजादी की समीक्षा में हिमाचल की कुर्बानियों का इतिहास, आज भी सीमा पर प्रहरी के रूप में शहादत दर्ज करता है, तो यह राष्ट्रीय जज्बा प्रदेश की बुनियाद बनाता है। इसलिए हर बार देश को अक्षुण्ण बनाए रखने की सौगंध, तिरंगे में लिपटे किसी हिमाचली बलिदान की इबारत में लौटती है, तो फौज में जाने की पंक्ति लंबी हो जाती है। दुश्मन के खिलाफ हर युद्ध में हिमाचल ने अपने सीने को राष्ट्रीय सुरक्षा का कवच बनाया, इसलिए कारगिल जैसी लड़ाई में शहीद इसी मिट्टी का तिलक लगाकर हुए। परमवीर चक्र धारण करने वाले हिमाचल के ही सपूत मेजर सोमनाथ शर्मा ने देश का पहला तमगा शहादत के साथ धारण किया, तो आज तक की शुमारी में यह आदर्श बनकर प्रदेश की माताओं की कोख को बलिदान का आशीर्वाद देता है। यह दीगर है कि इस बहादुरी का कभी मूल्यांकन नहीं हुआ और न ही राष्ट्रीय योजनाओं में ऐसी कुर्बानियों की गिनती हुई। वोटों की राजनीति में बड़ी आबादी के राज्य जीते, मगर जहां देश के लिए सबसे अधिक शहीद हुए, उसका जिक्र तक नहीं होता। ऐसे में जब देश का बजट पेश हो, तो एक मापदंड यह भी हो कि राष्ट्र के लिए किस राज्य से सबसे अधिक शहीद हुए ताकि उन परिंदों के घोंसले बच जाएं जो वतन के नाम फना हुए। यह भी एक तथ्य है कि राष्ट्रीय बहादुरी के आलेख में जब शहीदों को नमन होता है, तो हिमाचल की नम आंखें तीस फीसदी से भी अधिक अपने सपूतों को बलिदान होते देखती हैं। इसलिए यहां हर घर से सैनिक होना, एक रिवायत नहीं बल्कि राष्ट्र धर्म है। यही हिमाचल है जहां से निकले जनरल जोरावर सिंह ने बहादुरी का परचम चीन-तिब्बत सीमा के भीतर तक पहुंचाया, तो अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह भी वजीर राम सिंह पठानिया ने किया। यह दीगर है कि आजादी के जश्न में वजीर राम सिंह पठानिया के राष्ट्रीय दस्तावेज आज भी लाल किले के संबोधन का विषय नहीं बने। आज भी कारगिल युद्ध की महान शहादत में निरूपित सौरभ कालिया के साथ हुए बर्बर सलूक का बदला न पाकिस्तान से पूरा हुआ है और न ही ऐसे अमानवीय कृत्य के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की आवाज बुलंद कर पाए हैं। बहरहाल प्रदेश सरकार ने धर्मशाला में युद्ध संग्रहालय के रूप में आजादी की सबसे बड़ी आदरांजलि शहीदों को दी है। शहीद स्मारक के साथ संग्रहालय भवन के प्रवेश द्वार पर जनरल जोरावर सिंह की मूर्ति स्थापना, वास्तव में हिमाचली नायक के कद को ऊंचा करती है। संग्रहालय में जुटाई जा रहीं वीर सपूतों की यादें तथा बहादुरी के तमगे, पहली बार सारे प्रदेश को बता रही हैं कि हिमाचली होने का गौरव क्या है। इसी तरह स्वतंत्रता सेनानियों और बाबा कांशी राम के स्मारकों की पृष्ठभूमि में हम अपनी पहचान की वजह और राष्ट्र भक्ति की प्रमाणित विरासत को स्पष्ट कर पाएंगे। सारे विश्व में लोकतांत्रिक व्यवस्था का जनक, मलाणा अगर आज भी एक धरोहर के मानिंद मात्र गांव से कहीं ऊपर है, तो ऐसे अनेक उदाहरणों से भरी हिमाचली तस्वीर को पेश करने की आवश्यकता है। राष्ट्र गायन की धुन बनाने वाले कैप्टन राम सिंह को पैदा करती हिमाचली धरती का ही कमाल है कि मुंबई हमले के खिलाफ कार्रवाई की कमान यहां के सपूत ब्रिगेडियर सिसोदिया थामते हैं तो आतंक भी थर-थर कांपने लगता है। आजादी के इन प्रतिबिंबों के हिसाब से हिमाचल की मान्यता का एक दूसरा पक्ष नागरिक समाज से भी जुड़ता है। यह प्रदेश मेरा, तुम्हारा के बजाय हम सभी का बने और इसके लिए हमें सामूहिक जिम्मेदारी व नागरिक जिम्मेदारी में अपने दोहरे मापदंड व निजी अहंकार छोड़ने होंगे। आइए हम एक हिमाचल, एक नीति पर चलते हुए एक धाम-एक भाषा, एक टोपी व एक वेशभूषा के रंग में समाहित हो जाएं।
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