शब्द वृत्ति

By: Aug 18th, 2017 12:02 am

विक्षिप्त चीन

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

आक्रामक है नीति यह, हमको मत कम आंक,

करता लूट-खसोट क्यों, जरा गिरेबां में झांक।

बासठ-बासठ बंद कर, छप्पन इंची राज,

पिट जाएगा मान जा, अब तो आ जा बाज।

बकबक मत कर, चिमचिमी आंखें देंगे फोड़,

अगर चाह है तो ले भुगत, गर्दन देंगे मरोड़।

भारत ने प्रण कर लिया, फेंको चीनी माल,

माल सड़े गोदाम में, कचरा ले संभाल।

रोज-रोज की धमकियां, हर दिन की बकवास,

मोदी जी से कर मल्ल तू, हो जाएगा विश्वास।

धन्यवाद जनता का, राखी पर खूब भगाया भूत।

बहिष्कार कर चीन का, हिंद किया मजबूत।

कच्ची मौली ने किए, हैं संबंध प्रगाढ़।

चीनी से अच्छी भली, अपनी देशी खाड़।

आभारी हम आपके, मानी बातें नेक।

आने वाले शीघ्र ही अब परिणाम अनेक।

दूषित न हो पर्व अब, हानि रहित त्योहार।

दुश्मन को दें मात हम, ले आर्थिक आधार।

खूब दिखा दी चीन को, असली अब औकात।

आगे भी कायम रहे, दीपोत्सव पर बात।

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