शहादत नहीं याद…परिवार को एक नौकरी की आस

By: Aug 13th, 2017 12:05 am

बिलासपुर – जो चिराग जलाए तूने आज मेरी कब्र पर, बुझ न जाए भूल से, यह कर्ज है हर शख्स पर, वक्त की मार में मुझको भुला देना न तू, देखना है मौत का तुझ पर हुआ है क्या असर। शहीदों को श्रद्धांजलि देती कविता की ये पंक्तियां शहीद बलदेव की शहादत के बाद उनके परिवार के साथ हो रहे मजाक की तस्वीर बयां करती है, क्योंकि सरकार भूल चुकी है उस शहीद को जिसने देश की रक्षा करते हुए शहादत का जाम पिया। हालांकि सैनिक कल्याण विभाग द्वारा अब बेशक सेना के साथ ही पैरा मिलिट्री फोर्स के जवानों की शहादत की राशि को बढ़ाकर 20 लाख रुपए कर दिया गया, लेकिन शहीद बलदेव का परिवार आज भी सरकार की चौखट पर नौकरी या फिर परिवार की खुशहाल जिंदगी के लिए उम्दा राहत राशि की फरियाद लिए नाक रगड़ रहा है।  22 मई, 2016 का वह दिन जब बिलासपुर के शाहतलाई के तहत पड़ने वाले नघ्यार गांव के बलदेव शर्मा ने मणिपुर में उग्रवादियों से लोहा लेते हुए शहादत का जाम पिया था। बलदेव शर्मा की शहादत के बाद उनका परिवार आज दिन तक उचित मुआवजे और परिवार की आर्थिकी को सुदृढ़ करने के लिए नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहा है। प्रदेश सरकार के साथ ही पीएमओ तक न्याय की गुहार लगाई गई, लेकिन शहीदों की चिताओं पर बड़े-बड़़े वादे करने वाले नेताओं के कानों तक शायद शहीद परिवार की फरियाद पहुंच ही नहीं पा रही है। शहादत के बाद शहीद बलदेव के घर पहुंचे सरकार के मंत्री व प्रशासन ने बेटे को सरकारी नौकरी दिलाने, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला का नाम शहीद के नाम पर रखने और पांच लाख रुपए की आर्थिक मदद करने की बड़ी घोषणाएं कीं, लेकिन कार्यालयों के चक्कर लगाने के बाद से लेकर आज तक परिवार को सैनिक कल्याण बोर्ड बिलासपुर की ओर से सिवाय डेढ़ लाख की राशि के और कुछ नहीं मिला।  शहीद बलदेव शर्मा की शहादत को करीब डेढ़ साल होने को है। उनका बेटा विवेक शर्मा सचिवालय, नेताओं और सरकार के चक्कर काटकर थक चुका है। सरकार अपनी की हुई घोषणाओं को भूल चुकी है। ऐसे में यह शहीद की शहादत का अपमान नहीं तो और क्या है। करीब डेढ़ वर्ष पहले शहीद हुए परिवार को महज डेढ़ लाख और जुलाई के बाद शहीद होने वाले सैनिक को 20 लाख की राशि। विवेक कुमार ने सरकार की इस कार्यप्रणाली पर कई सवाल उठाए हैं।विवेक कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि अब पैरा मिलिट्री परिवार के शहीद के परिवार को 20 लाख की राशि मिलेगी। बेशक उन्हें यह राशि न दी जाए, लेकिन कम से कम परिवार की आर्थिकी सुदृढ़ करने के लिए एक नौकरी तो मिले। परिवार में मां के साथ ही उनकी छोटी बहन की जिम्मेदारी भी अब उन्हीं के कंधों पर है। मुख्यमंत्री से भी सिवाय आश्वासन के और कुछ नहीं मिला।

शहीदों के नाम पर सिर्फ घोषणाएं

विवेक शर्मा ने बताया कि उन्होंने नौकरी को लेकर केंद्र सरकार से भी गुहार लगाई थी। जवाब आया कि शिलांग में होने वाली भर्ती में कोशिश करें। शिलांग में भर्ती प्रक्रिया में हिस्सा लिया। दौड़, मेडिकल, टाइपिंग आदि में भाग लिया, लेकिन जब मैरिट बनी तो उसमें नाम ही नहीं था। उन्होंने कहा कि न्याय की यह लड़ाई केवल मात्र उनकी नहीं है, बल्कि और भी शहीदों के ऐसे परिवार हैं, जिनके साथ केंद्र व राज्य सरकारें वादे करके पीछे हट चुकी हैं।

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