साहित्य में घटती विश्व दृष्टि

By: Aug 20th, 2017 12:05 am

आज बहुत से कवियों के अंतःकरण में जो बेचैनी है, ग्लानि, अवसाद एवं विरक्ति है उसका एक कारण उनमें विश्व दृष्टि का अभाव है जो उन्हें आभ्यंतर आत्मिक शक्ति प्रदान कर सके, उन्हें मनोबल दे सके व उनकी पीड़ाग्रस्त अगतिकता को दूर कर सके…

साहित्य में प्रकट भाव एवं विश्व दृष्टि के मध्य व्यापक फासला होता है। साहित्यकार जीवंत एवं चेतना संपन्न प्राणी है, संवेदनशील होने के कारण जीवन जगत के प्रति उसकी प्रतिक्रियाएं या तो संवेदनात्मक होती हैं या ज्ञानात्मक। जब साहित्यकार की विश्व दृष्टि एवं भाव दृष्टि में मूलबद्ध एकता पाई जाए, तभी उसके पास अपनी दार्शनिक धारा होती है। साहित्यकार का कल्पना सचेतन हृदय जितना ही विश्वव्यापी होता है, उतनी ही उनकी रचना की गहराई से हमारी परितृप्ति बढ़ती है। मानव विश्व की सीमा फैलकर हमारा चिरंतन विहार क्षेत्र उतनी ही विपुलता प्राप्त करता है। ईश्वरीय आनंद सृष्टि अपने भीतर से निकलकर ही प्रसारित होती है, मानव हृदय की आनंद सृष्टि उसी की प्रतिध्वनि है। इस जगत सृष्टि के आनंद गीत की झंकार हमारी हृदय सृष्टि की वीणा के तारों को दिन-रात स्पंदित करती रहती है। जो मानस संगीत ईश्वरीय सृष्टि के प्रतिघात से हमारे हृदय में गूंजता रहता है वह सृष्टि का आवेग है, साहित्य उसी का विकास है। यह विकास ही सृष्टि का मूल है। संसृति इसीलिए नित्य नवीन एवं चिर रमणीय है। उसमें प्रतिपल ऋद्धि और समृद्धि लीलायमान है। इसकी कामना गतिशीलता को उर्जस्वित करती है। जीवन भी इसीलिए काम्य और कमनीय है। जब जीवन की सारी विचित्र लीलाओं के साथ सम्मिलित होकर प्रवाहित होने के लिए अंतःकरण व्याकुल हो जाता है, उसी क्षण परम सौंदर्य एवं विश्वव्यापी प्रकाश के दर्शन होते हैं। मानवीय संबंधों की विचित्र रस लीला, आनंद एवं अनिर्वचनीयता का आभास होता है। आज बहुत से कवियों के अंतःकरण में जो बेचैनी है, ग्लानि, अवसाद एवं विरक्ति है उसका एक कारण उनमें विश्व दृष्टि का अभाव है जो उन्हें आभ्यंतर आत्मिक शक्ति प्रदान कर सके, उन्हें मनोबल दे सके व उनकी पीड़ाग्रस्त अगतिकता को दूर कर सके। आज साहित्यकारों में ऐसी विश्व दृष्टि अपेक्षित है, जो भाव दृष्टि का, भावना का, भावात्मक जीवन का अनुशासन कर सके। विश्व का निःश्वास हमारी चित-वंशी में कौन सी रागिनी बजा रहा है, साहित्य उसी को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने की चेष्टा है।

-अरुण कुमार शर्मा

सेवानिवृत्त निदेशक, भाषा एवं संस्कृति हिप्र ग्राम अप्पर घनेड़ी, डाकघर शोघी तहसील व जिला शिमला, हिप्र

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