आत्म पुराण

By: Sep 23rd, 2017 12:05 am

गीले ईधन में से आग के कारण जल निकलता जान पड़ता है, पर वहां जल का कारण अग्नि है अथवा लकड़ी का गीलापन है, इसका निश्चय करना कठिन होता है, इससे हमने अग्नि को छोड़कर वायु को ही जल का कारण मान लिया है। जैसे पुत्र का कारण जो पिता है, वह तर्क से पुत्र के पुत्र का भी कारण है। इसी प्रकार तेज कारण जो वायु है, वह तेज से उत्पन्न कार्य जल का भी कारण मानी जा सकती है।

गार्गी- हे याज्ञवल्क्य! वह वायु किस कारण में ओत प्रोत है?

याज्ञवल्क्य- हे गार्गी! वह वायु अंतरिक्ष लोक में ओत प्रोत है

गार्गी- अंतरिक्ष लोक किस कारण में ओत प्रोत है?

याज्ञवल्क्य- अंतरिक्ष लोग गंधर्व लोक में ओत प्रोत है।

गार्गी- गंधर्व वह सूर्यलोक कारण कौन सा है?

याज्ञवल्क्य- सूर्य लोक चंद्रमा लोक में ओत प्रोत है।

गार्गी- चंद्रमा लोक कारण कौन सा है।

याज्ञवल्क्य- वह इंद्र लोक में ओत प्रोत है।

गार्गी- इंद्रलोक का कारण क्या है?

याज्ञवल्क्य- वह प्रजाति लोक में ओत प्रोत है।

गार्गी- प्रजापति लोक किसमें है।

याज्ञवल्क्य- प्रजापति लोक ब्रह्म लोक में ओत प्रोत है। अब अंतरिक्ष आदि शब्दों का अर्थ भी जान लेना चाहिए। तात्पर्य यह कि अंतरिक्ष लोक से आरंभ करके जो आकाश आदि पंच भूतों के पश्चात जो गंर्धव लोक आदि अन्य बताए गए वे एक-दूसरे से अधिकाधिक सूक्ष्म अवस्थाओं के नाम हैं। इस प्रकार गंधर्व लोक से सूर्य लोक सूक्ष्म है और चंद्रमा लोक की अपेक्षा सूर्यलोक स्थूल है। ऐसा ही क्रम इंद्रलोक तक चला जाता है। अब इंद्रलोक, प्रजापति लोक और ब्रह्म लोक का अर्थ समझना चाहिए। इनमें से जो संपूर्ण दृष्टि गोचर होने वाले प्रपंच आत्मा रूप में देखे, उसे इंद्र कहते हैं। इससे इंद्र कटाह के भीतर तथा बाहर जो सूत्र आत्मा है और जिसको पारिक्षित पुरुष कहते हैं,इससे प्रजापति शब्द से उस सूत्र-आत्मा का अर्थ समझना चाहिए और माया के अज्ञान का अर्थ अव्याकृत है। यही अव्याकृत सूत्र आत्मा का आधार है। इससे ब्रह्मलोक का अर्थ अव्याकृत ही समझना चाहिए। वह अव्याकृत समष्टि और रूप से दो प्रकार का है।

गार्गी-हे याज्ञवल्क्य! वह अव्याकृत रूप ब्रह्म लोक किसी कारण में ओत प्रोत है?

याज्ञवल्क्य- हे गार्गी! यह आदंन स्वरूप आत्मा केवल शास्त्र प्रमाण से ही जानने योग्य है। इसलिए शास्त्र का प्रमाण देकर ही तुमको आत्मा का रूप पूछना चाहिए। उस मर्यादा का त्याग करके तुमने जो अनुमान-प्रमाण की रीति से यह प्रश्न किया, वह व्यर्थ ही है। क्योंकि सब का अधिष्ठान आत्मा किसी अनुमान का विषय नहीं है। आत्मा के विषय में अनुमान की रीति से पूछना अनुचित है। अगर तुम ऐसा दुराग्रह करोगे, तो तुम्हारा मस्तक गिर जाएगा। याज्ञवल्क्य के वचनों से भयभीत होकर गार्गी अरुण ऋषि के पुत्र उद्दालक की ओर देखती हुई अपने स्थान पर बैठ गई। उद्दालक ने भी भुज्यु की तरह मद्रदेश में पतंजलि की कन्या के शरीर में प्रतिष्ठ अग्नि देवता का वर्णन करके कहा कि अग्नि देवी ने उस समय हमारे गुरु और सब ब्रह्मचारियों के सम्मुख सूत्र और अंतर्यामी के स्वरूप कथन किया। तू उस सूत्र और अंतर्यामी के रूप में न जान कर जो सब ब्राह्मणों की गउओं को अपने घर ले जाएगा तो तेरा मस्तक गिर जाएगा।


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