कुदरत से खिलवाड़
(किशोरी लाल कौंडल, कलीन, सोलन )
जल, जंगल और जमीन के अस्तित्व के आधार पर ही सारा ब्रह्मांड स्थिर है। ये तीनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि जल, जंगल और जमीन में से किसी एक में भी अस्थिरता आ जाती है, तो भू-मंडल पर असामान्य घटनाएं घटनी शुरू हो जाती हैं और ये मानव जीवन के अतिरिक्त प्रकृति की सारी प्रक्रियाएं अस्त-व्यस्त कर देती हैं। इनका आपसी संतुलन अस्थायी होना मानव जीवन के लिए सबसे अधिक खतरे की घंटी है, जो बजनी शुरू हो चुकी है। जंगल धरती पर खड़े हैं, धरती जंगलों के द्वारा स्थिर है। जहां पेड़ नहीं होते, वहां बारिश नहीं होती। जहां बारिश नहीं होती वहां पर किसी वनस्पति या फसल का होना असंभव है। शुद्ध पानी और शुद्ध वायु हमें वृक्षों से प्राप्त होती है। इसलिए जल, जंगल, जमीन, इन तीनों का संतुलित रहना मानव, अन्य जीव-जंतुओं, वनस्पतियों आदि के लिए संजीवनी के समान है। परंतु ज्यादा दौलत इकट्ठा करने के लालच में हम सब यह भूल गए हैं और जानबूझ कर कुदरत द्वारा दिए गए अनमोल पदार्थों का अवैज्ञानिक तरीकों से अवैध दोहन करने लग पड़े हैं। सड़कों, बांधों, खनिज पदार्थों के लिए इतने बड़े-बड़े विस्फोट किए जा रहे हैं, जिनमें धरती के बड़े-बड़े भू-खंड हिल जाते हैं। कुएं, बावडि़यां, प्राकृतिक स्रोत सूख चुके हैं। यही सिलसिला चलता रहा तो आने वाला समय भयंकर होगा। समय रहते मानव समाज को प्रकृति से छेड़छाड़ का क्रम बंद करना चाहिए।
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