ध्यान की गहराइयां

By: Sep 23rd, 2017 12:05 am

श्रीश्री रवि शंकर

श्री कृष्ण गीता में कहते हैं, आप  तब तक योग की स्थिति को उपलब्ध नहीं हो सकते, जब तक आपके अंदर की इच्छाएं समाप्त नहीं हो जातीं। आप इस बात को अपने अनुभव से भी देख सकते हैं। जब आप नींद के लिए बिस्तर पर जाते हैं और कोई बात आपको परेशान कर रही होती है तो आप गहरी नींद का अनुभव नहीं कर पाते…

मैं चाहता हूं कि प्रत्येक घर आश्रम की तरह ही हो। आश्रम से अभिप्राय है जहां किसी श्रम की आवश्यकता नहीं है। आश्रम अर्थात जहां शरीर, मन और बुद्धि के सभी कार्य स्वतः ही विलीन हो जाएं। प्रत्येक प्रकार का भय, निराशा, तनाव, असुरक्षा की भावना समाप्त हो जाए और आप गहरी शांति का अनुभव करें। इसलिए प्रत्येक घर आश्रम के समान ही होना चाहिए। लोग अच्छे घर की कल्पना करते हैं। वे अपना समय व ऊर्जा घर को सजाने-संवारने में लगाते हैं या फिर वे घर बदलते रहते हैं, परंतु फिर भी वे आराम प्राप्त नहीं करते। आप आराम या विश्राम का अनुभव तभी कर सकते हैं, जब आप स्वयं में केंद्रित हों। पहला कार्य आराम करना व अंतिम कार्य भी आराम करना ही है। वह जगह जहां आप सबसे ज्यादा आराम व सुविधा का अनुभव कर सकते हैं वे आप ही हैं। अतः स्वयं की गहराइयों में आराम करना, शांत रहना बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसलिए इस पूरे संसार में सबसे सुंदर घर जो आप में ही निहित है, के लिए आप स्वयं को तैयार करें और उसी में रहें। शांति के लिए आप अपने मन को पूरे संसार से हटा कर स्वयं में केंद्रित करें। इस घर में आपका स्वागत है! जब आप अपने घर में लौट कर आते हैं तो आप पाते हैं कि आपको प्रत्येक जगह अपने घर जैसी ही सुंदर व अच्छी लगती है। अब आप जहां भी जाएंगे आप दूसरों के लिए सुंदरता व शांति ही लाएंगे। जब आप दुखी होते हैं या थके हुए होते हैं, तब आप में अच्छी चीजें भी घृणा पैदा करती हैं, संगीत भी आपको विचलित करता है, चांद की रोशनी भी आपको अच्छी नहीं लगती। इसलिए यह जरूरी है कि आप पूर्ण आराम करें और आराम आप तभी कर सकते हैं, जब आप सभी प्रकार की क्रियाओं को पूर्णतया समाप्त कर दें। सभी प्रकार की क्रियाएं अर्थात कार्य करना सोचना, बोलना, देखना, सुनना, सूंघना, स्वाद लेना आदि। निद्रा में केवल अस्वेच्छा से होने वाली क्रियाएं ही होती हैं जैसे सांस लेना, दिल का धड़कना, पाचन क्रिया व रक्त संचार का होना। परंतु यह भी पूर्ण आराम नहीं है। पूर्ण आराम तो तभी है, जब आपका मन पूर्ण रूप से स्वयं में केंद्रित हो जाए और आप पूर्ण आराम करें। पर यह केवल ध्यान में ही हो सकता है। अभी आप केवल दहलीज पर ही हैं। आप अपने घर में स्वयं ही बंद हैं। अतः शीघ्रता से अपने मन का दरवाजा खोलें, क्योंकि जब आपका आंतरिक द्वार खुलेगा, तभी आप प्रेम, आनंद, शांति व सुख का अनुभव कर सकेंगे। जब तक आपके दिमाग में आपको इच्छाएं घेरे रखेंगी, आप पूर्ण आराम की स्थिति को उपलब्ध नहीं होंगे। तब आप अपने घर नहीं लौट सकेंगे। श्री कृष्ण गीता में कहते हैं, आप  तब तक योग की स्थिति को उपलब्ध नहीं हो सकते, जब तक आपके अंदर की इच्छाएं समाप्त नहीं हो जातीं। आप इस बात को अपने अनुभव से भी देख सकते हैं। जब आप नींद के लिए बिस्तर पर जाते हैं और कोई बात आपको परेशान कर रही होती है तो आप गहरी नींद का अनुभव नहीं कर पाते। इसलिए बहुत महत्त्वाकांक्षी लोग गहरी निद्रा का अनुभव नहीं कर पाते, क्योंकि वे मानसिक रूप से आजाद नहीं होते। किसी भी चीज को छोड़ने की कला सीखें। इसे करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप यह अनुभव करें कि संसार विलीन हो गया है या आप मर चुके हैं।


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