नारी सम्मान के नवरात्र

By: Sep 26th, 2017 12:05 am

(स्वाति (ई-मेल के मार्फत))

संसार के उद्गम का स्रोत आदि शक्ति है। माना जाता है कि इस विस्तृत, अपरिमित और अचंभित करने वाले संसार का निर्माण इसी आदि शक्ति से हुआ है। वैसे भी प्रकृति में सृजन क्षमता स्त्री को ही प्राप्त है। यह प्रकृति और आदि शक्ति स्त्री रूपा ही तो है। संपूर्ण बह्मांड के कण-कण में जिस ऊर्जा का संचार है, वह स्त्री रूपा है। नवरात्र का त्योहार हमें हर साल इस बात का स्मरण कराता है। यह मात्र त्योहार या पूजा नहीं, बल्कि नारी शक्ति की महत्ता समझने का अवसर है। मां दुर्गा के नव रूप, स्त्री की नौ कलाओं के परिचायक हैं। मां भवानी अपने जिन रूपों में वंदनीय हैं, आज की स्त्री में भी वही सृजन, पालन और संहार की अभूतपूर्व शक्ति है। दुर्गा के नव रूप जिन आनंदों और शक्तियों से भरे हैं, आज की स्त्री उन्हीं शक्तियों और भावनाओं से सुसज्जित हैं। आज स्त्री सशक्त है। बदलते समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। संयम, ज्ञान, समझ, धैर्य, आत्मविश्वास और साहस से वह आगे बढ़ रही है। शक्ति का अर्थ सिर्फ शारीरिक बल नहीं होता है। शक्ति का अर्थ मानसिक और भावनात्मक संतुलन भी है। इस समाज की भी जवाबदेही है कि नवरात्र में सिर्फ शक्ति की उपासना नहीं करें, बल्कि स्त्रियों के प्रति सम्मान की भावना रखें। भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा, बलात्कार से मुक्त समाज  ही मां दुर्गा की असली पूजा होगी एवं भयमुक्त नारी ही मां दुर्गा की असल आराधक होगी। इस बदलते और स्त्रियों के लिए और घातक होते दौर में स्त्री को अपने शक्ति रूप का स्मरण करना होगा। आज स्त्री ने हर रूप में स्वयं को साबित किया है। दकियानूसी सोच की कैद में फंसी स्त्री इन बंधनों से आजाद हो रही है और ये सुखद संकेत हैं।

 


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