बाबाओं के अनुसरण का मनोविज्ञान

By: Sep 8th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

प्रो. एनके सिंहडेरा सच्चा सौदा की ही मिसाल लें, तो इसके अनुयायी एक औसत तबके से आते हैं जिन्हें डेरे में समानता का भाव मिला, इलाज में ढाढस व सांत्वना भी मिली, निःशुल्क खाना भी मिला तथा अध्यात्म जैसी लगने वाली गतिविधियों में शामिल होने का मौका भी मिला। डेरा के भक्तों के परिजनों को नौकरियां भी दी गईं तथा जब उन्हें जरूरत पड़ी तो उनकी कई तरह से मदद भी की गई। वास्तव में मुफ्त लंगर व आवास की सुविधा के चलते सुरक्षा की भावना से समूहों में आने वाली महिलाओं को यह सबसे सस्ता व सुरक्षित पर्यटन लगा…

हाल के दिनों में हम देख रहे हैं कि देश में धार्मिक नेताओं की बाढ़ सी आ गई है। वे स्वयंभू भगवान बन गए हैं और उनके लाखों अनुयायी भी हैं। उनके अनुयायियों का उनमें अंध-विश्वास है और इसके कारण सामाजिक व वैधानिक परंपराओं व नियमों के उल्लंघन के साथ समाज तेज गति से पथभ्रष्ट हो रहा है। हाल में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह बलात्कार के आरोप में न्यायालय ने सजा सुनाई। फैसला आने के बाद उसके अनुयायियों ने दंगा-फसाद किया और पुलिस की कार्रवाई में 23 लोग मारे गए। राम रहीम का मुख्य कृषि भूमि पर बना एक डेरा है, जो 700 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें ऐश्वर्य की सभी प्रकार की अति आधुनिक सुविधाएं भी हैं। गुरमीत सिंह के आश्रम देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी फैले हुए हैं। सवाल यह उठता है कि जब गुरमीत सिंह अपने डेरे में इस प्रकार की ठाठ-बाट की सुविधाएं जुटा रहा था, तो सरकार चुप क्यों रही? कोई भी आदमी यह सोचकर व्यथित हो जाता है कि इस तरह की स्थितियों में सरकार शुरू में ही क्यों कार्रवाई नहीं करती? क्यों इस तरह की स्थितियां बनने दी जाती हैं कि बाद में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है और इस दौरान सार्वजनिक संपत्ति तथा जान-माल का भारी नुकसान होता है? डेरा सच्चा सौदा की मिसाल ही लें, तो यह केस वर्ष 2002 में एक शिकायत से शुरू हुआ तथा इस पर अंतिम फैसला अब जाकर 2017 में आया है। इस केस को निपटाने में लगभग 15 साल लग गए और इस दौरान गुरमीत सिंह ने न केवल अपने लाखों अनुयायी बना लिए, बल्कि करोड़ों की संपत्ति भी एकत्र कर ली। वह इतना शक्तिशाली हो गया कि मुख्यमंत्रियों तक को नामांकित करने लगा। सबसे कठिन सवाल यह है कि जब बाबाओं और उनके पापों को अनावृत्त किया जाता है तो इसका अनुयायियों पर कोई असर नहीं होता। नेता और मंत्रिगण इन बाबाओं के आस-पास मंडराते देखे जा सकते हैं। ये बाबा लोग चुनावों के दौरान अपनी पसंद की पार्टी के पक्ष में मतदान की अपील करके उसका समर्थन करते हैं।

बाबाओं के अनुयायी भी बिना कोई सवाल किए उसी को वोट देते हैं, जिसको समर्थन दिया गया हो। हरियाणा की बात करें तो एक अवसर को छोड़कर शेष सभी चुनावों के मौके पर गुरमीत सिंह ने कांग्रेस को अपना समर्थन दिया था। हालांकि पिछले चुनावों में उसने भाजपा को समर्थन दिया। इस मामले में सजा आने के बावजूद गुरमीत के अनुयायी अभी भी उसी का अनुसरण कर रहे हैं। सवाल यह है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग प्रथमद्रष्टया ही उनके प्रति आकर्षित क्यों हो जाते हैं। लोक क्यों उनकी पूजा करने लग जाते हैं? क्यों उनका अनुसरण करते हैं और क्यों वे इनके पास जाने लग जाते हैं? बाबा लोग इतनी बड़ी संख्या में अपने अनुयायी बनाने में इसलिए सफल हो जाते हैं क्योंकि उनके पास भक्तों को राहत देने की योग्यता होती है अथवा वे यह विश्वास पैदा करने में सफल हो जाते हैं कि वे उनकी राहत की जरूरत को पूरा कर रहे हैं। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग, जिनकी उच्च शिक्षा तक पहुंच नहीं होती, बड़ी संख्या में अध्यात्म के जादू के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। इस तरह के गूढ़ व्यवसाय की असंख्य दुकानें छोटे स्तर पर देश भर में हैं। वे दर्द अथवा बीमारी का निवारण करते हैं। वे सामूहिक कीर्तन, नृत्य अथवा संगीत के माध्यम से भी हिप्नोटाइज करके लोगों का इलाज करते हैं। सभी बाबा लोग जनता को सेवाएं प्रदान करते हैं और यही कारण है कि उनकी समाज में बड़ी मांग रहती है।

डेरा सच्चा सौदा की ही मिसाल लें, तो इसके अनुयायी एक औसत तबके से आते हैं जिन्हें डेरे में समानता का भाव मिला, इलाज में ढाढस व सांत्वना भी मिली, निःशुल्क खाना भी मिला तथा अध्यात्म जैसी लगने वाली गतिविधियों में शामिल होने का मौका भी मिला। डेरा के भक्तों के परिजनों को नौकरियां भी दी गईं तथा जब उन्हें जरूरत पड़ी तो उनकी कई तरह से मदद भी की गई। अधिकतर लोगों को डेरा सुरक्षित लगा, महिलाएं स्वतंत्र रूप से कहीं भी घूम सकती थीं तथा किसी को तंग नहीं किया गया। वास्तव में मुफ्त लंगर व आवास की सुविधा के चलते सुरक्षा की भावना से समूहों में आने वाली महिलाओं को यह सबसे सस्ता व सुरक्षित पर्यटन लगा। सभी प्रकार के काम सबके सामने खुले में होते थे, हालांकि पर्दे के पीछे गैर-कानूनी व असामाजिक गतिविधियों को भी अंजाम दिया जाता रहा।

गुरमीत सिंह की गुफा, जहां चोरी-छिपे बुरे काम होते थे, मन-बहलाव का एक साधन बन गया। मैं सार्वजनिक हित में राज्य के प्रशासन से अपील करता हूं कि वह डेरों अथवा अन्य संस्थानों की गैर-कानूनी गतिविधियों से निपटते समय व्यापक अध्ययन कर ले। इस तरह के डेरों के फैलाव का मूल कारण धन तथा सत्ता है, जो भ्रष्टाचार के लिए खाद-पानी का काम करते हैं। सभी तरह का भ्रष्टाचार धन बल के बढ़ते महत्त्व का परिणाम है। इससे निपटने के लिए निष्पक्षता से जांच व कठोर कार्रवाई की जरूरत है। मेरी दूसरी सलाह स्वास्थ्य विभागों के लिए है। सभी जिला अस्पतालों में मनोचिकित्सा तथा मनोविज्ञान विभागों की व्यवस्था होनी चाहिए जहां सस्ते दामों पर सभी वर्गों के मरीजों का चिंता, उदासी तथा अवसाद का बेहतर उपचार हो। सरकार को इन दोनों सुझावों पर अमल करना चाहिए तथा अवसाद जैसी भयंकर बीमारियों से पीडि़त लोगों के बेहतर इलाज की व्यवस्था करनी चाहिए। एकमात्र परेशानी यह है कि डेरे में जाना कोई कलंक नहीं है, जबकि अस्पताल में जाने का मतलब है मरीज की बीमारी घोषित हो जाना। हमें ग्रामीण इलाकों में फैले अंध-विश्वास व रूढि़यों के खिलाफ लड़ना होगा। हमें ब्लॉक स्तर पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली व कृषि सेवाओं की तरह ही स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बड़े पैमाने पर सामुदायिक सेवाओं की जरूरत है। पंचायत स्तर पर शिक्षित नर्सें होनी चाहिएं, जो महिलाओं की छोटी समस्याओं को हल कर सकें तथा घरेलू व ग्रामीण मसलों को सुलझा सकें। अन्य शब्दों में संयुक्त परिवार प्रणाली के खत्म होने के बाद सामुदायिक सेवाओं के केंद्र ग्राम स्तर पर ही होने चाहिएं।

बस स्टैंड

प्रथम यात्री : दुष्कर्म मामले में हिमाचल पुलिस का नाम बदनाम हो गया है। इससे पहले भी उन पर गलत मामलों के आरोप लगे हैं, ऐसा क्यों?

दूसरा यात्री : एक बार जब उसने नशे की तस्करी में परिवहन विभाग के एक अधिकारी को गिरफ्तार किया तो प्रयोगशाला की परीक्षण में वह मात्र बेकिंग पाउडर निकला। पुलिस की कार्यप्रणाली एक मजाक बन गई है।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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