महिला आरक्षण बिल पर मोदी से उम्मीदें

By: Sep 25th, 2017 12:05 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

कुलदीप नैयरमोदी ने पहली बार किसी महिला को देश का रक्षा मंत्री बनाया है। यह अब तक का सबसे बड़ा बदलाव है। यहां तक कि काफी शक्तिशाली इंदिरा गांधी ने भी अपने पास केवल विदेश मंत्रालय रखा था। अब रक्षा तथा विदेश, दोनों मंत्रालय महिलाओं को सौंप देना वास्तव में ही मोदी सरकार का एक साहसिक कदम है। यह मोदी की सकारात्मक सोच का सूचक है। मुझे आशा है कि इस मामले में मोदी जिस तरह प्रतिबद्ध लगते हैं, उसी तरह वह महिला आरक्षण विधेयक के मामले में भी अपनी सकारात्मक सोच का परिचय देंगे…

महिला आरक्षण विधेयक कुछ कारणों, विशेषकर पुरुष वर्चस्ववादी सोच, के चलते संसद में अभी तक पास नहीं हो पाया है। इसे लोकसभा में पहली बार 1996 में तब पेश किया गया था, जब एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे। बाद में विधेयक को लेकर बड़ा ड्रामा हुआ, जिसने इसके पारित होने में कई अड़ंगे डाले। हालांकि वर्ष 2010 में पहली कानूनी बाधा दूर हो गई। इस विधेयक में महिलाओं के लिए लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। मसौदे के अनुसार महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण रोटेशन के आधार पर होगा तथा ड्रॉ निकाल कर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि निरंतर तीन आम चुनावों में केवल एक बार ही एक सीट आरक्षित हो। मसौदे में कहा गया है कि महिलाओं के लिए सीट आरक्षण संशोधन कानून लागू होने के बाद 15 वर्षों में खत्म हो जाएगा। वास्तव में 108वां संविधान संशोधन विधेयक, जिसे महिला आरक्षण विधेयक भी कहते हैं, ने इस वर्ष 12 सितंबर को अपने अस्तित्व के 21 वर्ष पूरे कर लिए। इन सभी वर्षों में अब तक केवल राज्यसभा की मंजूरी ली जा सकी है। पिछले दो दशकों में विधेयक को लेकर संसद के दोनों सदनों में कई ड्रामे होते रहे हैं। विधेयक में तय किए गए मापदंडों को हटाने की पूरी कोशिश हुई है। यहां तक कि राज्यसभा में (2008 में) इसे रखने से रोकने के लिए सदन के अध्यक्ष हामिद अंसारी पर शारीरिक हमले की कोशिश भी हो चुकी है। इस तरह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को ज्यादा प्रतिनिधित्व दिलाने की लड़ाई अधर में फंस चुकी है।

इस विधेयक को संसद की मंजूरी नहीं मिल पाई और इसे पूर्व में एक समय संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट लोकसभा को दी तथा 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी, जिन्होंने पहली एनडीए सरकार का नेतृत्व किया, ने इस विधेयक को दोबारा लोकसभा में रखा। तत्कालीन कानून मंत्री एम. थंबीदुरैई ने जब इसे सदन में रखा तो राजद के एक सांसद ने इसे स्पीकर से छीन लिया तथा इसे टुकड़ों में फाड़ डाला। उसके बाद विधेयक की हर बार दुर्गति हुई तथा सदन को भंग कर दिया गया। इसके बाद इसे 1999, 2002 तथा 2003 में दोबारा पेश किया गया। दुर्भाग्य से पुरुष सांसदों ने इस विधेयक का विरोध किया। हालांकि कांग्रेस, वाम दल तथा भाजपा जैसे दल खुले रूप से इस विधेयक को समर्थन देने की घोषणाएं करते रहे हैं, इसके बावजूद इसे लोकसभा में पास नहीं किया जा सका। इस बात में संदेह नहीं है कि वर्ष 1998 में वाजपेयी सरकार अपने अस्तित्व के लिए दूसरे दलों पर निर्भर थी, इसी कारण वह इस विधेयक को पास नहीं करवा पाई। वर्ष 1999 के मध्यावधि चुनाव में वाजपेयी फिर सत्ता में आ गए। इस बार एनडीए को लोकसभा में 544 सीटों में से 303 सीटें मिलीं। इस बार वाजपेयी को ऐसी स्थिति में धकेल दिया गया, जहां उन्हें सभी दलों को एकजुट बनाए रखना था। अगर इस विधेयक को औपचारिक रूप से मतदान के लिए रखा गया होता, तो कांग्रेस तथा वाम दलों के सहयोग से यह पास हो गया होता। लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो पाया। वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव से तुरंत पहले वाजपेयी ने कांगे्रस पर विधेयक को रोकने का आरोप लगाया तथा कहा कि इस बार भाजपा व उसके सहयोगी दलों को अगर निर्णायक बहुमत मिल गया तो इस बिल को पास करवा दिया जाएगा।

वर्ष 2004 में बनी यूपीए सरकार ने इस बिल को साझा न्यूनतम कार्यक्रम में यह कहते हुए शामिल कर लिया कि महिलाओं को आरक्षण दिलाने के लिए वह इस बिल को लोकसभा में पेश करने के लिए पहल करेगी। वर्ष 2005 में भाजपा ने बिल को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की। इसके बाद 2008 में मनमोहन सिंह सरकार ने इसे राज्यसभा में पेश किया। दो साल बाद नौ मार्च, 2010 को बड़ी राजनीतिक बाधा पार की गई, जब सदन ने सदस्यों के बीच हाथापाई के बावजूद इसे पास कर दिया। ऊपरी सदन में इसे पास कराने के लिए भाजपा, वाम दल व अन्य पार्टियां भी सत्तारूढ़ कांगे्रस के साथ आ गईं। उस समय तीन बड़े दलों की तीन बड़ी महिला नेताओं-सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज तथा वृंदा करात ने राज्यसभा में बिल के पास होने की खुशी में मीडिया में एक साथ फोटो खिंचवाए थे। दुखद बात है कि उसके सात साल बाद आज तक भी यह बिल उससे आगे नहीं बढ़ पाया है। राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में निम्न सदन यानी लोकसभा में इसे पास नहीं करवाया जा सका है। यूपीए-2 सरकार भी लोकसभा में 262 सीटें होने के बावजूद इस बिल को पास नहीं करवा पाई। सौभाग्य से अब भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है। वह इसे पास करवा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बिल के प्रति कटिबद्ध हैं। इसके बावजूद अगर यह विधेयक, अधिनियम बन जाता है तो मुझे आश्चर्य होगा।

इसका कारण यह है कि सभी दलों के पुरुष सांसद महिलाओं के साथ शक्ति साझा करने को तैयार नहीं हैं। वे घर पर ही महिलाओं से गौरवपूर्ण व्यवहार नहीं करते हैं। उनका मानना है कि महिलाओं को शक्ति एक सीमा से ज्यादा नहीं दी जानी चाहिए। यह सत्य है कि मोदी ने पहली बार किसी महिला को देश का रक्षा मंत्री बनाया है। यह अब तक का सबसे बड़ा बदलाव है। यहां तक कि काफी शक्तिशाली समझी जाने वाली इंदिरा गांधी ने भी अपने पास केवल विदेश मंत्रालय रखा था। अब रक्षा तथा विदेश, दोनों मंत्रालय महिलाओं को सौंप देना वास्तव में ही मोदी सरकार का एक साहसिक कदम है। यह मोदी की सकारात्मक सोच का सूचक है। मुझे आशा है कि इस मामले में मोदी जिस तरह प्रतिबद्ध लगते हैं, उसी तरह वह महिला आरक्षण विधेयक के मामले में भी अपनी सकारात्मक सोच का परिचय देंगे। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि यह 2019 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं के वोट बटोरने का प्रयास मात्र है। सच्चाई कुछ भी हो, अगर लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या बढ़ती है तो वे देश के मामलों में अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं।

ई-मेलः kuldipnayar09@gmail.com


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