मृत होती जीवन रेखाएं

By: Sep 21st, 2017 12:05 am

( डा. राजन मल्होत्रा, पालमपुर )

मुझे किसी कार्यवश विगत दिनों चंडीगढ़ जाना पड़ा। अपने वाहन में जाने के कारण कांगड़ा-चंडीगढ़ मार्ग पर सड़क की दुर्दशा जो कांगड़ा से देहरा व तत्पश्चात ऊना तक 100 किमी लंबी इस सड़क की देखने को मिली, वह शायद ऊना के बाद 124 किमी चंडीगढ़ तक देखने को नहीं मिली। यह सड़क अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है और जगह- जगह पर गढ्ढे इसकी दुर्दशा बयां कर रहे हैं। जगह जगह पर लगाए गए कोलतार के पैचों ने सड़क की छाती छलनी कर दी है। इस सरकार ने तो सड़कों को सिर्फ पैच लगाकर ही काम चला लिया। सड़कों के लिए करोड़ों का बजट क्या पैच लगाने में ही खर्च हो गया। इस सरकार का तो टाइम पूरा हुआ। हफ्ते- दस दिन में आचार संहिता लग जाएगी और सारे काम धरे के धरे रह जाएंगे। अब तो लोगों को आने वाली सरकार से ही आस है, जो आकर प्रदेश की सड़कों का कायाकल्प करेगी। जनसभाओं में घोषणाएं करना विकास नहीं होता। विकास का पता चलता है, इन सीमावर्ती सड़कों पर गुजर कर, जो बताती हैं कि हम हिमाचल की सड़कें हैं, हमें कोई भी नहीं पूछता।

 


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