लेकिन घूंघट खामोश रहा

By: Sep 23rd, 2017 12:02 am

अमित शाह की कांगड़ा रैली में जोश था-रोष था, टिकटों की बेचैनी, लेकिन घूंघट खामोश था।  यानी अगर इसे भाजपा की हुंकार की तरह देखें तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ खड़ा किया। सत्ता को परवान चढ़ाने की राह पर शाह की कांगड़ा रैली का परचम, परिचय और परिश्रम, एक साथ युवाओं को पगडंडी पर अपना कारवां दिखा गया। इसे चुनावी आगाज की शैली में देखें तो हिमाचली सत्ता के वर्तमान आलेख, केंद्रीय सत्ता से मुकाबिल हैं। मुकाबला कठिन या सरल होगा, इस आशय में बहती महत्त्वाकांक्षा और सैकड़ों कार्यकर्ताओं का हुजूम पार्टी अध्यक्ष से कितना सुन पाया या शाह कितना कह पाए, इसकी गवाही में वक्त की रहनुमाई तय है। यह इसलिए कि पार्टी के जोश में टिकटार्र्थी भी खूब होंगे और बेचैनी यह कि हर कार्यकर्ता कुछ पाने की डगर पर चल कर आया। पार्टी की चुनावी रूपरेखा में तकनीकी अलंकरण और जमघट के हिस्से में आई कांग्रेस के खिलाफ चार्जशीट। कार्यकर्ता की रग-रग तक विरोध की धारा में, हिमाचल की सत्ता को पस्त करने की नब्ज टटोलकर शाह चले गए, लेकिन अब इस जंग की वजह रैली नहीं, हिमाचली दिल तक भाजपा की निशानी होगी। कहना न होगा कि हिमाचल में कांगड़ा रैली से हटकर भी राजनीति की एक ऐसी बस्ती है, जिसके राजा वीरभद्र सिंह हैं। यह तसदीक पुनः कांगड़ा की रैली कर गई कि विरोध के खंभों पर वीरभद्र सिंह का नाम और काम टंगा। अगर वीरभद्र सिंह सरकार का विकास अविवेकपूर्ण रहा, तो भी तमाम उद्घाटनों और शिलान्यासों का जवाब देने के लिए न तो एक रैली सक्षम होगी और न ही एक हुंकार से सारा विरोध फैल जाएगा। यह इसलिए भी कि वीरभद्र ने अपनी छवि पर पैदा हुए संकट को सरकार की सक्रियता तथा जनता के साथ सीधे संवाद से ढांप लिया है। कम से कम शाह की रैली में उठी तोहमतें वीरभद्र सिंह के नाम का ढिंढोरा तो पीट ही गईं, क्योंकि वहां दो सरकारों के जिक्र में युद्ध की सतह पर हिमाचल की वर्तमान सरकार है। यह दीगर है कि वीरभद्र सरकार के दौरान हुए कई कारनामों की पड़ताल हुई और कानून-व्यवस्था से जुड़े मसले कोसने की वजह बने। चुनाव की संगत में बैठी सियासत को कांगड़ा का मंच यह समझाता रहा कि इस भीड़ में सभी साथी हैं, लेकिन प्रतिस्पर्द्धा तो उन नारों की रही, जो प्रमुख नेताओं की शक्ति बताने लगे। शाह रैली में नारे अगर किसी नेता के पक्ष में ज्यादा गूंजे तो क्या पार्टी के कान में खुजली नहीं हुई होगी या फिर वे सिद्धांत खामोश क्यों रहे, जो घोषणा कर चुके हैं कि चुनाव किसी नेतृत्व में नहीं लड़ा जाएगा। बहरहाल कांगड़ा में पिछले चुनाव से हटकर तकरीर व हकीकत के शब्द बयां हुए, तो यह मानना पड़ेगा कि शाह अपने विस्फोटक अंदाज के दरवाजे खुले रखते हैं। कांगड़ा रैली में भाजपा ने अपने नौजवानों को निहारा, इसलिए मंच की गूंज में चुनाव जीतने का जोश रहा। हिमाचल में विचारधारा या पक्ष में खड़े युवा से हटकर एक बड़ा वर्ग या तो चुनावी स्याही का रंग देखने को उतावला है या कुछ पाने के लिए वर्तमान राजनीति से हटकर हिसाब कर रहा है। सवा लाख नए मतदाताओं के भूखंड का बंटवारा किसी मंच से नहीं होगा, क्योंकि जिसके गांव में कालेज खुल चुका है उसका सहारा वहीं दिखाई देगा। युवा प्रश्नों के बजाय कांगड़ा रैली ने वीरभद्र को ललकारा है। ये वही युवा हैं जो हिमाचल सरकार की हालिया पुलिस भर्ती के मैदानों पर कांगड़ा रैली की तादाद से बढ़कर पहुंचे, तो उनकी आशाएं सरकार के परिणाम पर टिकी हैं। ऐसे में कांगड़ा रैली अगर हिमाचली युवा की पीड़ा, महत्त्वाकांक्षा और खुद से चल रहे द्वंद्व से मुखातिब होती तो राजनीति के नक्शे पर आशा चिन्हित होती, लेकिन यहां तो हर आगंतुक वोट है, इसलिए भाजपा की रसीद कांगड़ा में बड़ी हो गई।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App