हिमालयी क्षेत्र में कृत्रिम झीलें संपूर्ण क्षेत्र के लिए खतरा

By: Sep 20th, 2017 12:02 am

हिमाचल प्रदेश में ऐसी कई और झीलें बन गईं, जो कभी भी प्रलय मचा सकती हैं। हिमालयी क्षेत्र में कृत्रिम झीलें संपूर्ण क्षेत्र के लिए एक बड़ा खतरा हैं। विश्व प्रसिद्ध पर्यटन घाटी कुल्लू के पर्यावरण में भारी असंतुलन आ रहा है…

सिकुड़ते हिमालयी ग्लेशियर

हिमाचल प्रदेश पूरे देश में ऐसा अकेला हिमालयी राज्य है, जहां किसी भी नदी पर केंद्र सरकार के जल संस्थान मंत्रालय द्वारा बाढ़ पूर्वानुमान के लिए एक भी केंद्र स्थापित नहीं किया गया है, जबकि उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में विभिन्न बड़ी नदियों के तटीय क्षेत्रों पर ऐसे कई केंद्र स्थापित किए गए हैं। इसे लेकर प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा जल संसाधन मंत्रालय को कई पत्र भी लिखे गए थे, लेकिन अभी तक इस बारे में कोई निर्णय नहीं किया गया है। केंद्रीय जल आयोग को भेजे गए एक पत्र में मंत्रालय ने बिना स्टाफ बढ़ाए सतलुज के तटीय क्षेत्रों में बाढ़ पूर्वानुमान चौकियां स्थापित करने की अनुमति जरूर दी, लेकिन जल आयोग के सूत्रों के मुताबिक यह अव्यावहारिक है, क्योंकि उनके पास पहले ही स्टाफ इतना कम है कि वे सतलुज के उद्गम क्षेत्रों में ऐसी व्यवस्था करने में असमर्थ हैं। ऐसी स्थिति में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की अनुमति मात्र औपचारिकता बनकर रह गई। हैरतअंगेज तथ्य यह है कि ब्यास, चिनाब जैसी नदियों पर बाढ़ पूर्वानुमान केंद्रों की स्थापना तो दूर सतलुज पर भी ऐसा नेटवर्क स्थापित हो पाना संभव नहीं दिखता, जबकि भाखड़ा बांध होने के कारण सतलुज पर ऐसे नेटवर्क की जरूरत काफी ज्यादा है। केंद्र सरकार को सन् 2000 में सतलुज में आई प्रलंयकारी बाढ़ को देखते हुए इस संबंध में पहले ही कार्रवाई कर देनी चाहिए थी। सतलुज पर नाथपा- झाकड़ी फिर भाखड़ा बांध जैसी महत्त्वपूर्ण जल विद्युत परियोजनाओं के होने के कारण इस नदी पर पर्याप्त संख्या में बाढ़ पूर्वानुमान चौकियां स्थापित की जानी चाहिए। सतलुज के तटीय क्षेत्रों में बसी हजारों लोगों की आबादी के जान -माल की रक्षा के लिए बाढ़ को लेकर भविष्यवाणी और आपदा प्रबंधन का चुस्त नेटवर्क किन्नौर व शिमला जिला में होना जरूरी है। हिमाचल प्रदेश में ऐसी कई और झीलें बन गईं, जो कभी भी प्रलय मचा सकती हैं। हिमालयी क्षेत्र में कृत्रिम झीलें संपूर्ण क्षेत्र के लिए एक बड़ा खतरा हैं। विश्व प्रसिद्ध पर्यटन घाटी कुल्लू के पर्यावरण में भारी असंतुलन आ रहा है। घाटी का तापमान बढ़ रहा है व बर्फ की चादर सिकुड़ती जा रही है। उत्तर भारत के समस्त हिमखंड तेजी से पिघलते जा रहे हैं। मौसम विशेषज्ञों से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि कुल्लू घाटी में ‘ग्लोबल वार्मिंग’ पांव पसार रहा है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 1960 से 1990 तक के बीच न्यूनतम औसत तापमान में +0.37 िंसेंटीग्रेट की बढ़ोतरी हुई है।              – क्रमशः


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