अयोध्या में भव्य दीपावली

By: Oct 21st, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

उत्तर प्रदेश की सरकार ने आम भारतीयों के साथ खड़े होकर पहली बार दिवाली का उत्सव मनाया तो लगा सरकार और लोगों में द्वैत समाप्त हो गया है। यह द्वैत विदेशी शासन में तो होता है, लेकिन पंथनिरपेक्षता को नाग की तरह गले में धारण किए स्वतंत्र भारतीयकरण सरकार भी इसी द्वैत की रक्षा करती रही। योगी आदित्यनाथ की सरकार को बधाई देनी चाहिए कि उन्होंने अयोध्या को उसका उचित स्थान दिलवाने की पहल तो की…

दीपावली की शुरुआत आज से लगभग पौने दो लाख साल पहले त्रेता युग में अयोध्या से हुई थी। उस दिन श्रीराम चंद्र चौदह साल का वनवास काट कर, श्रीलंका के रावण को पराजित कर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित अपने शहर अयोध्या वापस आए थे। वे पुष्पकलावती विमान से वापस आए थे। रात्रि का समय था। अयोध्या के लोगों ने रामचंद्र जी के वापस अपने राज्य में पहुंचने पर प्रसन्नता में दीपमाला की थी। तभी से सारे देश में उस दिन दीपमाला की परंपरा शुरू हुई। तब से लेकर आज तक यह प्रकाश-पर्व भारत वर्ष में बड़े ही हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है। दीपावली यही चरितार्थ करती है-असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। धीरे-धीरे दिवाली या दीपावली का विस्तार होता गया और उसका स्वरूप भी विस्तृत होता गया। आज दीपावली भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दिवाली अब केवल भारत तक ही सीमित न रहकर विश्व भर में आयोजित की जाने लगी है। यह त्योहार सारे भारत, नेपाल, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, मॉरिशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद और दक्षिण अफ्रीका में मनाया जाता है। इतिहास में एक कालखंड ऐसा भी आता है, जिसमें विदेशी सत्ताएं यहां हावी रहीं। लगभग हजार वर्ष पहले भारत में विदेश से आई इस्लामी शक्तियों का वर्चस्व बढ़ता गया और धीरे-धीरे अयोध्या अपना महत्त्व खोती गई। उज्बेकिस्तान से आए बाबर ने भारत में मुगल वंश का राज ही स्थापित नहीं किया, बल्कि अयोध्या में राम मंदिर का विध्वंस कर उस पर एक मस्जिद का निर्माण कर दिया। उन दिनों राजा किसी दूसरे देश को जीतने पर, नई बादशाहत की घोषणा वहां के किसी महत्त्वपूर्ण प्रतीक का विध्वंस कर उसके खंडहरों पर नई व्यवस्था का प्रतीक स्थापित कर ही करता था।

अयोध्या में बाबर ने भी यही किया। उसके बाद दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से अयोध्या धीरे-धीरे अपना महत्त्व खोती गई। अठारहवीं शताब्दी में जब अंग्रेज हिंदोस्तान में आ गए और कुछ सालों में ही उन्होंने भारत पर अपना कब्जा कर लिया तो उन्होंने अपने राज्य विस्तार में एक बात का खास ध्यान रखा। उन्होंने भारत के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक नगरों को दरकिनार कर नए स्थानों को सत्ता केंद्र स्थापित किए। उन्होंने काशी, प्रयागराज, अयोध्या, मथुरा इत्यादि सभी नगरों की अवहेलना की। अंग्रेज पुराने सांस्कृतिक भारत को उखाड़ कर वहां नया भारत स्थापित करना चाहते थे, जिसका अपनी संस्कृति से कोई संबंध नहीं था। अपनी इस नीति को उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ अंजाम दिया। कोलकाता, मुंबई, चेन्नई इत्यादि भारत के कई शहर इसी रणनीति का प्रमाण थे। अयोध्या में मंदिर को तोड़कर जो बाबरी ढांचा खड़ा किया गया था, वह अयोध्या में स्थायी विवाद का कारण बन गया था। वैसे भी सरयू का प्रवाह कहीं चलता था, कहीं रुकता था। अयोध्या बदरंग होता जा रहा था। दीपावली सारे देश में मनाई जाती थी, अयोध्या में भी मनाई जाती रही, लेकिन त्रेता युग की उस दीपावली को, जिस दिन भगवान राम अपने घर वापस आए थे, उसे लोग भूल गए थे। मामला यहां तक पहुंच गया, जो लोग काशी, वाराणसी और अमृतसर इत्यादि शहरों की बात करते हैं, उन्हें सांप्रदायिक की उपाधि दी जाने लगी। ऐसे वातावरण में उत्तर प्रदेश की सरकार द्वारा अयोध्या में दीपावली को मनाना और त्रेता युग की तर्ज पर ही उसका भव्य आयोजन करना एक नई शुरुआत है।

सरयू नदी पर राम की पैड़ी में दीप उत्सव मनाया गया। अयोध्या में इस दीपावली के अवसर पर ऐसी भव्य तैयारियां की गई थीं, जैसे जमाने पहले भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद यहां दिवाली मनाई गई थी। पुष्पक विमान की अनुभूति करवाते हेलिकाप्टर के जरिए भगवान राम की सवारी उतरी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगवान राम को तिलक लगाया और फिर आरती उतारी। राम की पैड़ी पर लोगों ने एक लाख 87  हजार 213 दीये जलाकर नया रिकार्ड कायम किया। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अयोध्या त्रेता युग जैसी दिवाली का गवाह बना। इस महोत्सव में शरीक हुए लोगों के लिए ये पल अविस्मरणीय रहे होंगे। यह बहुत पहले किया जाना चाहिए था। लेकिन अंग्रेजों के चले जाने के बाद नई सरकार ने भारत की सांस्कृतिक परंपराओं को नकारने को ही पंथनिरपेक्षता का नाम दिया। सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित अनेक दिवसों को महोत्सव का दर्जा दिया और भारत के करोड़ों लोगों द्वारा मनाए जाने वाले सांस्कृतिक-ऐतिहासिक उत्सवों से किनारा कर लिया। यही कारण है कि दिवाली का उत्सव सरकार नहीं मनाती थी, क्योंकि इससे सांप्रदायिकता की बू आती थी और पर्यावरण दिवस लोग मनाते हैं, क्योंकि यह सरकारी उत्सव है।

बाद में तो स्थिति यहां तक पहुंची कि बुद्धिजीवियों ने बहुत मेहनत करके यह सिद्ध किया कि भारत के अधिकांश सांस्कृतिक-ऐतिहासिक उत्सव ऐसे हैं, जिनसे पर्यावरण का नाश होता है और मानव अधिकारों पर चोट पहुंचती है। धीरे-धीरे न्यायालयों ने आदेश जारी करने शुरू कर दिए कि मूर्ति विसर्जन से नदियां प्रदूषित होती हैं, दीपावली पर पटाखा चला देने से प्रदूषण फैलता है, जलीकट्टू पर बैल पूजा से पशुओं के प्रति निर्दयता का प्रसार होता है, इसलिए इनको तुरंत बंद कर देना चाहिए। बैल दौड़ में पशुओं के प्रति निर्दयता सूंघने वाले अनेक लोग अपने सामने बकरा कटवा कर उसका मांस खाने को पशु प्रेम की संज्ञा देने लगे। ऐसे वातावरण में उत्तर प्रदेश की सरकार ने आम भारतीयों के साथ खड़े होकर पहली बार दिवाली का उत्सव मनाया तो लगा सरकार और लोगों में द्वैत समाप्त हो गया है। यह द्वैत विदेशी शासन में तो होता है, लेकिन पंथनिरपेक्षता को नाग की तरह गले में धारण किए स्वतंत्र भारतीयकरण सरकार भी इसी द्वैत की रक्षा करती रही। योगी आदित्यनाथ की सरकार को बधाई देनी चाहिए कि उन्होंने अयोध्या को उसका उचित स्थान दिलवाने की पहल तो की।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App