खूबसूरत नज़रों का शहर कौसानी

By: Oct 29th, 2017 12:05 am

समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1890 मीटर है। कौसानी आने वाले पर्यटक खासतौर से हिमालय की चोटियों के खूबसूरत नजारों को देखने आते हैं। इसके अलावा यह जगह मंदिरों, चाय के बागानों और आश्रमों के लिए भी जानी जाती है। कौसानी को भारत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। प्रसिद्ध हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मभूमि कौसानी ही है…

हिमालय की गोद में बसा सुंदर पर्वतीय स्थल कौसानी, अलमोड़ा से मात्र 52 किलोमीटर की दूरी पर है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1890 मीटर है। कौसानी आने वाले पर्यटक खासतौर से हिमालय की चोटियों के खूबसूरत नजारों को देखने आते हैं। इसके अलावा यह जगह मंदिरों, चाय के बागानों और आश्रमों के लिए भी जानी जाती है। कौसानी को भारत का स्विटजरलैंड भी कहा जाता है। प्रसिद्ध हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मभूमि कौसानी ही है। कौसानी एक ओर सोमेश्वर तो दूसरी ओर गरुड़, बैजनाथ कत्यूरी घाटियों के बीच बसा है। इस कस्बे से आप हिमालय पर्वतमाला की नंदा देवी, माउंट त्रिशूल, नंदाकोट आदि चोटियों का अनोखा नजारा देख सकते हैं।कौसानी कस्बे के दो हिस्से हैं। ऊपरी हिस्से में अनासक्ति आश्रम और होटल हैं और नीचे के इलाके में यहां का मुख्य बाजार। आश्रम के मुख्य हाल में गांधी जी के कौसानी में  रहने के दौरान की कुछ तस्वीरें लगी हुई हैं। महात्मा गांधी 1929 में कौसानी के अनासक्ति आश्रम में आए और यहां रुककर उन्होंने गीता के श्लोकों का सरल अनुवाद किया था जिसे अनासक्ति योग का नाम दिया गया था। इस आश्रम में एक ऐसा कमरा है जहां रोजाना शाम को भजन का कार्यक्रम होता है, जिसमें शामिल होकर मन को सुकून और शांति मिलती है।यह मंदिर समूह कौसानी-बागेश्वर मार्ग पर कौसानी से करीब 16 किलोमीटर दूर स्थित है। समुद्र तल से यह 1100 मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर है। इन मंदिरों के नाम पर ही इस कस्बे का भी नाम पड़ा है। बैजनाथ के ये मंदिर नागर शैली के मंदिर हैं और संभवतः इन्हें नवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के बीच कुमाऊं के कत्यूरी शासकों ने बनवाया था। मंदिरों के इस समूह में मुख्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जबकि अन्य 17 छोटे-छोटे मंदिरों में केदारेश्वर, लक्ष्मीनारायण और ब्राह्मणी देवी की मूर्तियां प्रमुख हैं। 208 हेक्टेयर में फैले चाय के बाग यहां की एक और घूमने वाली जगहों में शामिल हैं जहां बहुत ही अच्छी किस्म की चाय की खेती की जाती है।  मार्च से नवंबर तक का समय सबसे सही और अनुकूल होता है। जहां गर्मियों में चीड़ के घने वन से गुजरते रास्ते सुकून देते हैं, वहीं अक्तूबर-नवंबर में नीले आसमान के नीचे हिमालय की चोटियों को देखना कभी न भूलने वाला अनुभव है।

 


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