गुरदासपुर जनादेश के मायने

By: Oct 17th, 2017 12:02 am

लोकसभा की एक सीट पर उपचुनाव के नतीजे राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित नहीं किया करते। उससे निकटस्थ राज्यों के जनादेश भी तय नहीं होते, लेकिन जो पार्टियां डूब रही हों या जनता के बीच अप्रासंगिक होती जा रही हों, ऐसी कोई भी जीत उनमें नया उत्साह, जोश और आत्मविश्वास भर सकती है। इस संदर्भ में पंजाब की गुरदासपुर सीट के जनादेश के कई मायने हैं। बेशक फिल्म स्टार विनोद खन्ना ने 1998 और 2014 के बीच चार बार इस सीट से चुनाव जीता था, लेकिन 2009  में वह कांग्रेस के हल्के उम्मीदवार प्रताप सिंह बाजवा से चुनाव हार भी गए थे। गुरदासपुर कभी भी भाजपा का गढ़ नहीं रहा। जो चुनावी जीतें हासिल की गईं, वे विनोद खन्ना की निजी जीत थीं और भाजपा-अकाली दल गठबंधन के ‘अच्छे दिन’ चल रहे थे। दूसरी ओर, गुरदासपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के 12 बार सांसद चुने जा चुके हैं। लिहाजा पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ की उपचुनाव में 1,93,219 वोटों से जीत अचंभित नहीं करती। लोकसभा के पूर्व स्पीकर एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री बलराम जाखड़ की चुनावी विरासत भी सुनील के पक्ष में है। वह 2002 से 2017 तक लगातार तीन बार अबोहर से विधायक चुने गए और 2012-17 के दौरान पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। करीब छह माह पहले ही कांग्रेस ने पंजाब में सत्ता प्राप्त की थी। इतनी जल्दी जनता का मोहभंग नहीं हुआ करता। बेशक विनोद खन्ना गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय नेता थे। यदि भाजपा उनके किसी परिजन पर दांव खेलती और अकाली दल का पूरी शिद्दत से समर्थन और सहयोग मिलता, तो नतीजे कुछ भी हो सकते थे। गुरदासपुर जनादेश ने यह भी साबित कर दिया कि पंजाब के इन इलाकों में जनता फिलहाल भाजपा को स्वीकार करने के मूड में नहीं है। जीएसटी, नोटबंदी, बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की समस्याएं आदि ने चुनाव को कितना प्रभावित किया, यह बाद के विश्लेषणों के जरिए स्पष्ट होगा, लेकिन भाजपा को पंजाब में चिंतन करना पड़ेगा कि उसे अकेला चलना है या अकाली दल के साथ गठबंधन जारी रखना है! पंजाब से सटा राज्य है-हिमाचल प्रदेश। वहां चुनावों की हलचलें गरमा चुकी हैं। ऐसे में गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र की नौ विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट पर ही भाजपा को बढ़त नसीब हुई है। यह जनादेश हिमाचल को एक सीमा तक ही प्रभावित कर सकता है, क्योंकि हिमाचल के चुनावी मुद्दे भिन्न हैं, लेकिन इस उपचुनावी जीत के बाद कांग्रेस की चेतना जागृत हो सकती है और वह एकजुटता से दूसरे चुनावों में उतरने को कमर कस सकती है। अभी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर दो लोकसभा सीटों पर भी उपचुनाव होने हैं। ये सीटें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य के विधान परिषद के सदस्य चुने जाने के कारण खाली हुई हैं। इसी तरह राजस्थान में अलवर और अजमेर सीटों पर भी उपचुनाव होने हैं। सांसदों की मृत्यु के कारण ये सीटें खाली हुई हैं। यदि इनमें से दो सीटें भी कांग्रेस जीतती है और प्राणपण से गुजरात में चुनाव लड़ने उतरती है, तो नतीजे चौंकाऊ भी हो सकते हैं। 2019 के आम चुनाव का परिदृश्य तक बदल सकता है। 2018 में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मिजोरम, नगालैंड आदि कई राज्यों में चुनाव होने हैं। भाजपा का राजनीतिक लक्ष्य है कि भारत को ‘कांग्रेस मुक्त’ बनाना, लेकिन इनमें से किसी भी भाजपा शासित राज्य पर कांग्रेस की सत्ता सवार हो गई, तो कांग्रेस पुनर्जीवित हो सकती है। फिलहाल हकीकत यह है कि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के प्रति देश के कई अंचलों में ‘हवा’ बदलने तो लगी है, लेकिन प्रधानमंत्री की अपनी लोकप्रियता में सेंध नहीं लगाई जा सकी है। राहुल गांधी उनकी तुलना में पांच फीसदी भी लोकप्रिय नहीं बन पाए हैं। हालांकि उनकी राजनीतिक और चुनावी यात्राएं जारी हैं, लेकिन कई जगह वह प्रधानमंत्री मोदी की नकल करते लगते हैं, लिहाजा उनकी मौलिकता भी समाप्त होने लगती है। अब लोकसभा में भाजपा की 281 और कांग्रेस की 45 सीटें हो गई हैं। भाजपा ने अभी तक कोई भी उपचुनाव नहीं जीता है, लिहाजा चुनौती भाजपा की ओर है और गुरदासपुर ने उसे बढ़ा भी दिया है। ‘हवा’ गुजरात की भी पक्ष में नहीं लगती, जिस तरह लोगों की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, लेकिन फिलहाल ऐसी स्थितियां ‘अर्द्धसत्य’ की तरह हैं।


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