चित्रांकन को दिव्य से संगम जरूरी

By: Oct 14th, 2017 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह भले ही पंजाब से थे, लेकिन उनका अधिकतर जीवन अंद्रेटा (हिमाचल) की प्राकृतिक छांव में सृजनशीलता में बीता। इन्हीं की जीवनी और उनके विविध विषयों पर विचारों को लेकर आए हैं प्रसिद्ध लेखक डॉ, कुलवंत सिंह खोखर। उनकी लिखी पुस्तक ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ में सोभा सिंह के दार्शनिक विचारों का संकलन व विश्लेषण किया गया है। किताब की विशेषता यह है कि इसमें कला या चित्रकला ही नहीं, बल्कि अन्य सामाजिक विषयों पर भी मंथन किया गया है। आस्था के विभिन्न अंकों में हम उन पर लिखी इसी किताब के मुख्य अंश छापेंगे जो आध्यात्मिक पहलुओं को रेखांकित करते हैं। इस अंक में पेश हैं दर्शन पर उनके विचार ः

चित्रकार सोभा सिंह का योगदान अमूल्य है। लोगों को मन की शांति देने के लिए उन्होंने लोगों के सामने उनके आदर्श रखे। उन्होंने गुरुओं, अवतारों व पैगंबरों के चित्र बनाए। पेंटिंग की उनकी कला को विकसित होने तथा संपूर्ण होने में पूरा जीवन लगा। तभी उन्होंने कहा कि तकनीक मेरी है, लेकिन कला उसकी है। वह एक स्वयं प्रशिक्षित चित्रकार थे तथा कला उनकी रगों में थी। उन्होंने कुछ गद्य तथा कविताएं भी लिखी। उन्होंने अपनी माता से सौंदर्य, जुनून व नैतिकता का पाठ पढ़ा। बीज रूप में कला, निडरता, साहस, सच्चाई, अनुशासन, उच्च चरित्र व ईश्वर से प्रेम उन्होंने अपने पिता से लिया। सेना में काम करने के कारण वह बहुत अनुशासनप्रिय थे। माता के निधन के कारण उनका बचपन कठिनाइयों में बीता। इससे उन्हें अनेक सबक मिले। वह ईमानदारी, सच्चाई व कठिन परिश्रम में विश्वास करते थे। विदेशों की भी उन्होंने यात्राएं की। इराक के बसरा से वह 1922 में लौटे। इसके बाद वह प्रोफेशनल चित्रकार बन गए। उन्होंने पैसे के लिए कभी चित्रकारिता नहीं की। उन्होंने हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल और कांगड़ा ब्राइड जैसे मशहूर चित्र बनाए। संतों का उन पर गहरा असर पड़ा। उन्होंने फरीद व ्अन्य संतों के चित्र भी बनाए। वर्ष 1922 में भारत में अंग्रेजों से आजादी के लिए असहयोग आंदोलन चल रहा था। इसी दौरान गुरुद्वारों को महंतों से छुड़ाने के लिए सिख आंदोलन भी शुरू हो गया। सिखों ने दोनों आंदोलनों में भरपूर योगदान दिया और कई तरह का उत्पीड़न सहन किया। आंदोलन के दौरान इनमें भागीदारी करने वालों को कई तरह की यातनाएं दी गईं। इनमें से कई मूर्छित हो गए, कई घायल हुए तथा कुछ को जानें भी गंवानी पड़ी। कई तरह की यातनाएं सहन करने के बावजूद सिखों को ये बातें डरा नहीं पाईं तथा उन्होंने बढ़-चढ़कर दोनों आंदोलनों में भाग लिया। इन सब बातों का चित्रकार सोभा सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा। आंदोलन में भाग लेने वालों का गुरुओं में गहन विश्वास था। तभी उनका हौसला कायम रहा। इसी कारण सोभा सिंह ने गुरुओं के चित्र बनाए। उन्होंने गुरुओं को लोगों के समक्ष रोल माडल के रूप में रखा। इससे आनंद की प्राप्ति भी संभव है। इसी कारण उन्होंने गुरुओं, अवतारों व पैगंबरों का चित्रण शुरू किया। वह स्थायित्व व स्थिरता के विरोधी थे। इसीलिए उन्होंने विविधता का पक्ष लिया। अपनी चित्रकला में भी उन्होंने विविधता लाई तथा कई तरह के चित्र बनाए। यह विविधता उनके अपने घर तथा बागीचे में भी देखी जा सकती थी। उनका विश्वास था कि अपने को गतिमान रखने के लिए विविध क्षेत्रों के प्रतिष्ठित ज्ञाताओं को पढ़ना जरूरी था। थोरोऊ, व्हिटमैन, कृष्णामूर्ति, ईमर्सन व काहलिल जिब्रान उनके प्रिय विचारक थे। उन्होंने गुरु गं्रथ साहिब का भी अध्ययन किया। उनका विश्वास था कि दिव्य को चित्रित करने के लिए कलाकार का दिव्यता से सुसंगम होना चाहिए। उच्च चरित्र, समर्पण, सच्चाई, ईमानदारी व सादगी से ही ऐसा हो सकता है। उनका विश्वास था कि कलाकार का उच्च चरित्र होना चाहिए। इसका बिना वह चित्रों में संजीदगी नहीं ला सकता तथा उसमें आत्मा का प्रवेश नहीं करवा सकता। उनका विश्वास था कि विषय की भीतरी आध्यात्मिकता उसके बाहरी रूप में साफ तरह झलकनी चाहिए। इस तरह का मात्र एक चित्र ही कलाकार को संपूर्णता, नाम व प्रसिद्धि दिला देता है।


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