जब एक पुलिस वाला बन गया कलम का सिपाही

By: Oct 18th, 2017 12:10 am

ओंकार चंद शर्मा

आज भी राष्ट्रीय स्तर के चित्रकारों में श्री शर्मा की गिनती की जाती है। आज तक करीब 400 से 500 पेंटिंग श्री शर्मा आधुनिक और एब्सट्रेक्ट आर्ट और पहाड़ पर कलाकृतियां बना चुके हैं। ओसी शर्मा की अब तक करीब 25 पुस्तकें- जिसमें सात पुस्तकें आर्ट पर, 8 उपन्यास, एक काव्य संग्रह और दो कहानी संग्रह शामिल हैं…

देवभूमि कांगड़ा में पंडित अमरनाथ शर्मा व केसरी देवी के घर जन्मे  ओंकार चंद शर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहते हुए ख्याति प्राप्त करने वाले ओसी शर्मा ने भारतीय पुलिस सेवा की जिम्मेदारी को जहां बड़ी शिद्दत से निभाया है, वहीं एक सर्वश्रेष्ठ लेखक होने का भी श्री शर्मा को गौरव प्राप्त है। उन्हें एक चित्रकार होने के नाते भी हिंदोस्तान में पहचान मिली है। 20 मई, 1940 को जन्मे ओसी शर्मा की प्राथमिक शिक्षा जीएवी  सीनियर सेकेंडरी स्कूल कांगड़ा से हुई है, जबकि उच्च शिक्षा उन्होंने डिग्री कालेज धर्मशाला में ग्रहण की है। श्री शर्मा ने एमए हंसराज कालेज होशियारपुर से की और पीएचडी दिल्ली विश्वविद्यालय से की। वर्ष 1963 में श्री शर्मा का चयन भारतीय पुलिस सेवा में हो गया। 1964 से आईपीएस सेवा में कार्यरत रहने वाले ओसी शर्मा वर्ष 1998 में मध्य प्रदेश पुलिस महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन उन्हें बनाया गया। 5 साल तक श्री शर्मा भारत सरकार की इंडियन काउंसिल फॉर कल्चर रिलेशन विदेश विभाग में सलाहकार मंडल के सदस्य भी  रहे। हिमाचल प्लानिंग बोर्ड में भी श्री शर्मा की सेवाएं ली गईं। समाजसेवा व कला संस्कृति शिक्षा से जुड़े ओ सी  शर्मा ने चित्रकारी पांचवीं कक्षा से ही शुरू कर दी थी। सरदार सोभा सिंह के सान्निध्य में चित्रकारी करते हुए राष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त चित्रकार बन गए। बाई नेल इंडिया में श्री शर्मा की पेंटिंग प्रदर्शित हुई । आज भी राष्ट्रीय स्तर के चित्रकारों में श्री शर्मा की गिनती की जाती है। आज तक करीब 400 से 500 पेंटिंग श्री शर्मा आधुनिक और एब्सट्रेक्ट आर्ट और पहाड़ पर कलाकृतियां बना चुके हैं। ओसी शर्मा की अब तक करीब 25 पुस्तकें- जिसमें सात पुस्तकें आर्ट पर, 8 उपन्यास, एक काव्य संग्रह और दो कहानी संग्रह शामिल हैं।  दो ग्रंथ भाषा विज्ञान श्री शर्मा ने लिखे हैं। श्री शर्मा की क्राइम अगेंस्ट वूमन पुस्तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने के लिए गाइड रेफ रेंस मानी जाती हैं। भारतीय संसद में भी इस पुस्तक को रेफरेंस के रूप में स्वीकार किया गया है। भ्रूण हत्या के विरुद्ध कानून बनाने के लिए इस पुस्तक का प्रयोग करने के लिए कई राष्ट्रों को विवश होना पड़ा है। खेलकूद का शौक ओसी शर्मा को बचपन से ही रहा है । हाकी, क्रिकेट के खिलाड़ी रहे ओसी शर्मा ने ज्वालाजी के निकट सपड़ी में  स्टेडियम बनाया और कांगड़ा ग्राउंड को भी 1970 में समतल बनाया। डीएवी कालेज कांगड़ा की बात करें तो मूल स्रोत में श्री शर्मा की प्रेरणा रही है। उस समय के इंडस्ट्रियल फाइनेंस कारपोरेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन सीडी खन्ना के माध्यम से डीएवी प्रबंधन कमेटी दिल्ली के चेयरमैन जीएल दत्ता के प्रयासों से कांगड़ा में डीएवी कालेज का निर्माण किया गया। उसी शर्मा को हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा साहित्य सारस्वत अवार्ड और चार बार सारस्वत अवार्ड से सम्मानित किया गया। हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग देश की उन ख्याति प्राप्त संस्थाओं में शुमार है, जिसका प्रधान होने का गौरव महात्मा गांधी को भी प्राप्त हुआ था। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में दो एमफिल की डिग्रियां श्री शर्मा की पुस्तकों पर अनुसंधान पर दी गईं। परिवार में भाई विनोद शर्मा और स्वर्ण कुमार शर्मा तथा एक बहन मौजूद हैं । भ्रष्टाचार के खिलाफ  लड़ाई लड़ने में भी ओसी शर्मा पीछे नहीं रहे। हालांकि इसके लिए उन्हें काफी दिक्कतें  भी झेलनी पड़ी । उन्होंने मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहते हुए मुख्यमंत्री के खिलाफ केस किया। जीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल कांगड़ा  के प्रधानाचार्य रतनलाल मिश्रा का शिष्य होने पर श्री शर्मा गौरव महसूस करते हैं । बचपन से सादगी के साथ जीवन जीने की कला श्री शर्मा को बुजुर्गों से मिली है।

चित्रकारी, ईमानदारी और  किताबें पढ़ना उनके शौक में शुमार रहा है। इन किताबों से ही प्रेरित होकर श्री शर्मा ने बेहतर जीवन व्यतीत किया है और आज सेवानिवृत्ति के बाद समाज सेवा के साथ- साथ पेंटिंग और किताबों में खोए रहने वाले ओसी शर्मा अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट हैं। खड़ी बोली का स्वरूप खड़ी बोली, भाषा विज्ञान, शव यात्रा मेरा अनन्य, किनारे के लोग, संपर्क, लोककथा से इतिहास, नाभि कुंड जैसी पुस्तकें उनके द्वारा लिखी गई हैं । वह कहते हैं कि समाज में युवा पीढ़ी नशे से दूर और शिक्षित हो । इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वह हमेशा प्रयासरत रहेंगे। वह युवाओं को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि अच्छी किताबें युवा पीढ़ी की दशा और दिशा बदल सकती हैं। इसलिए  ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें पढ़कर वे अपने जीवन को खूबसूरत बना सकते हैं।

– राकेश कथूरिया, कांगड़ा

जब रू-ब-रू हुए…

अंग्रेजी मीडिया गिने-चुने लोगों को महत्त्व देता है…

जीवन के इस पड़ाव पर पहुंच कर जब पीछे मुड़कर देखते हैं, तो संतोष कहां और अतृप्त कहां रहे?

असंतोष तब होता है जब सरकारी उच्च अधिकारी रहते हुए जो कार्य कर सकते हैं उसमें जब कायदे कानून नियम आड़े आते हैं तो कुछ कर नहीं पाते हैं, लेकिन पद पर रहते हुए जो कुछ किया उस से संतुष्ट हूं। राजनीतिक लोगों के साथ टकराव और उनकी दखलअंदाजी निंदनीय है।

आप जिस हिमाचली परिदृश्य से निकल कर सफलता की सीढि़यां चढ़ते गए, उसका कोई एक मूल मंत्र?

परिश्रम और ईमानदारी जीवन में आगे बढ़ने के लिए जरूरी है। न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए।

दिल के करीब क्या -लेखन या प्रोफेशन। दोनों के बीच मानवीय संवेदना के तर्क और यथार्थ?

सरकारी काम अपनी जगह है। व्यक्ति के पास प्रतिदिन काफी समय होता है। कला के लिए भी समय  निकल जाता है, कोई दिक्कत नहीं सब कुछ साथ साथ चलता है।

कोई एक प्रकाशन, जिसने आपके लेखन की दिशा तय की?

वर्ष 1961 में उस्मानिया यूनिवर्सिटी में मेरी कहानी  भाग्य रेखा को सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार मिला उसने दिशा बदल दी।

भारतीय परिपक्ष्य में लेखन अपने धरातल से दूर हो रहा है? क्या आप सहमत हैं?

हिंदी का लेखक समाज के उच्च वर्ग तक नहीं पहुंचता है। अंग्रेजी मीडिया चंद गिने- चुने लोगों को महत्त्व देता है, लिहाजा मीडिया और पब्लिक लेखकों  से दूर हो जाते हैं।

हिमाचल से निकल कर आपने जो पाया, उसका कितना कर्ज अपनी माटी के सामने चुका पाए?

कर्ज नहीं था। मैने साधारण परिवार से जीवन शुरू किया जीवन में जो भी परिश्रम से मिला उसे कर्त्तव्य मानकर किया । हिमाचल प्रदेश ने प्रकृति को छोड़कर कुछ न दिया है।

हिमाचल कहां अपने यथार्थ की अनदेखी कर रहा है। वास्तव में विजन होना क्या चाहिए?

राजनीतिक परिस्थितियों में सारे प्रदेश को तबाह कर दिया है दृष्टिकोण सिर्फ  आसपास और अपने स्वार्थ के लिए है, प्रदेश का कोई महत्त्व नहीं है।

शैक्षणिक स्तर पर हिमाचली युवाओं को आपकी सलाह?

योग्य विद्यार्थी यहां आते हैं, अच्छा मार्गदर्शन उन्हें मिलना चाहिए, वह उपलब्ध नहीं है। सरकार, समाज और अभिभावकों की तरफ  से उन्हें बेहतर मार्गदर्शन मिले, तो  परिस्थितियां बदल सकती।

केंदीय विश्वविद्यालय पर जारी सियासत को आप कैसे देखते हैं?

एक छत के नीचे तमाम शैक्षणिक सुविधाएं होनी चाहिए। इस पर कोई राजनीति हो रही है, तो वह निंदनीय है।

हिमाचली विकास के वर्तमान नजरिए का पिछड़ापन कहां दिखाई देता है?

शिक्षा का स्तर उचित नहीं है प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल सही ढंग से नहीं हो पा रहा है।

जीवन की कोई ऐसी उपलिब्ध जो केवल आपके ही नाम है?

लेखन मेरा मार्गदर्शन है। 11 साल की उम्र से लिख रहा हूं। जब तक मैं जीवित हूं, तब तक यह क्रम जारी रहेगा इससे बड़ी उपलब्धि मेरे लिए कोई हो नहीं सकती। भाषा विज्ञान से लेकर कला संस्कृति ने मुझे बहुत आगे बढ़ाया है।

भारत की राजनीतिक व्यवस्था से कब-कब आहत होते हैं?

राजनीतिक दूरदर्शिता आज तो है ही नहीं। केवल मंदिर-मस्जिद नेहरू-गांधी, भगवा और हरे रंग पर यदि पूरा देश चल रहा है, तो यह हमारे देश का दुर्भाग्य है।

सपना जो अभी जिंदा है?

स्वप्न नहीं देखता। सपनों पर विश्वास नहीं है।

अपनी ही रचना की चंद पंक्तियां….? 

कविता अपने स्तर पर है लेखन अपने स्तर पर है, उन पर अनुसंधान हुए हैं यह बड़ी बात है।


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