पर्यटन का चांद

By: Oct 11th, 2017 12:05 am

पर्यटन  की किश्तियां यूं तो हिमाचल के तट को छूने लगी हैं, लेकिन संभावनाओं का प्रवाह रुक सा गया है। ऐसे में जब कभी पर्यटन खुद एक नई परिभाषा में लिपट कर प्रस्तुत होता है, तो आशाओं के कदम भी शामिल होते हैं। ऐसा ही एक पर्यटन करवाचौथ बनकर शिमला के रिज पर घूमता है। चांद के दीदार में पर्यटन के ऐसे अनूठे संगम की सारे हिंदोस्तान में और कोई मिसाल नहीं मिलती। हिमाचल चाहे तो इस समारोह की चांदनी में एक नया पर्यटन शुरू कर दे। एक रिज की मिलकीयत में सैलानियों की आमद के नजारे हर धार्मिक स्थल तक फैल सकते हैं, बशर्ते मंदिर परिसरों की विकास योजनाएं, करवाचौथ जैसे समागमों के लिए उपयुक्त स्थल मुहैया करा पाएं। हिमाचल के हर पर्यटक स्थल में रिज सरीखा मैदान और माल रोड की तर्ज पर यातायात प्रतिबंद्धित बाजार हो, तो पर्यटकों की अभिव्यक्ति में श्रद्धा से संस्कृति तक का प्रवेश होगा। इसी तरह देशभक्ति के चिन्हित प्रतीक हिमाचल की पृष्ठभूमि को सुसज्जित करें, तो यह प्रदेश हकीकत में वीरभूमि के सम्मान से अलंकृत होगा। करवाचौथ की रात में शिमला के रिज पर उतरे हजारों चांद अपने आप में ऐसा पर्यटन निहारते हैं, जिसकी सज्जा पर प्रदेश को रत्तीभर खर्च नहीं करना पड़ता, लेकिन जब हम अपने सैन्य गौरव को संजोएंगे तो पत्थर भी प्रेरणा देंगे। कुछ इसी तरह का प्रयोग पालमपुर के सौरभ वन विहार में हो रहा है। कारगिल युद्ध के जिस टीले, टाइगर हिल पर सौरभ कालिया ने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे की ऊंचाई साबित की, उसके प्रतीकात्मक स्वरूप में बना रॉक गार्डन वास्तव में राष्ट्रीय जज्बात का पहरेदार बन गया है। हिमाचल के राष्ट्रीय बलिदान की कहानी शाश्वत स्वरूप में हर पल सरहद पर तैनात है, तो वीर नायक तिरंगे के साथ लिपट कर अमर होने का जज्बा रखते हैं। यह दीगर है कि देश ने हिमाचल की सैन्य पृष्ठभूमि को देखते हुए आज तक ऐसा कोई फैसला नहीं लिया, जिसके तहत सेना का कोई प्रतिष्ठान इस धरती को चूम पाता, फिर भी एक संभावना बहादुरी के प्रतीकों को संवारने की रहती है। पालमपुर में सौरभ वन विहार में सजी कारगिल युद्ध की गाथा, हर भारतीय को सैन्य पर्यटन की परंपरा से जोड़ेगी। इससे पूर्व कमोबेश हर शहर में खासी ऊंचाई तक फहरा रहे तिरंगे के दर्शन से जुड़ा पर्यटन बढ़ रहा है। धर्मशाला में राज्य स्तरीय शहीद स्मारक व युद्ध संग्रहालय के कारण पर्यटकों के मेले हर प्रतीक को पूजते हैं। प्रदेश में प्रयास यह होना चाहिए कि दृश्य एवं श्रवण माध्यम से सौरभ वन विहार में अगर कारगिल युद्ध की शौर्य गाथा प्रस्तुत हो, तो धर्मशाला शहीद स्मारक से प्रदेश का सैन्य तथा शिमला के रिज से वीरता इतिहास के कार्यक्रम चलें। हिमाचल को बाकायदा एक नीति के तहत सैन्य पर्यटन को विकसित करने के लिए सेना के प्रतिष्ठानों से सहयोग लेना चाहिए, ताकि पता चले कि आबादी में सबसे छोटे हिमाचल से हर साल राष्ट्रीय शहादतों में तीस फीसदी शुमारी किस जज्बात से होती है। पर्यटन की हिमाचली विशिष्टता का स्मार्ट फोन भी मुरीद है और अब इस हुनर की इबारत में मोबाइल पर्यटन की जरूरत समझें। प्रदेश में एग्रो, टी, ईको या हाई वे टूरिज्म की शृंखला जितनी लंबी हो रही है, उतनी ही जरूरत सुरक्षित व उचित स्थान पर सेल्फी प्वाइंट बनाने की है। प्रदेश के कमोबेश हर शहर, सड़क, ऐतिहासिक-धार्मिक स्थलों, चाय बागानों, मनोरम घाटियों व दृश्यावलियों को स्मार्ट फोन पर्यटन से जोड़ने के लिए सैलानी तो बढ़ रहे हैं, केवल उन्हें सुरक्षित सेल्फी प्वाइंट भर सौंपना है।


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