राष्ट्रगान पर विवाद मंजूर नहीं

By: Oct 7th, 2017 12:02 am

ललित गर्ग

लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं

हमारे देश में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत को लेकर तथाकथित कट्टर ताकतें विरोधी स्वर उठाती रही है। इनके सार्वजनिक स्थलों पर गायन का दायरा क्या हो और वह किसके लिए सहज या असहज है, इस सवाल पर कई बार बेवजह विवाद उठे हैं। अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बुधवार को दिए अपने एक आदेश में साफ कह दिया है कि मदरसों में राष्ट्रगान गाना अनिवार्य है, क्योंकि राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज का सम्मान करना प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्त्तव्य एवं दायित्व है। जाति, धर्म और भाषा के आधार पर इसमें भेदभाव नहीं किया जा सकता। कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में जब राज्य सरकार ने सभी मदरसों में पूरी औपचारिकता के साथ राष्ट्रगान के गायन का आदेश जारी किया, तो उस पर एक पंथ विशेष से जुड़े राजनीतिक नजरिए वाले लोगों ने आपत्ति दर्ज की थी। यह दलील दी गई कि देश के प्रति आस्था एवं निष्ठा दर्शाने के लिए शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों को राष्ट्रगान गाने पर मजबूर नहीं किया जाए। इसे मदरसे में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की धार्मिक आस्था और विश्वास के विपरीत भी बताया गया। इस मसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर करके यह मांग की गई थी। यह विडंबनापूर्ण है कि एक राष्ट्र में रहने वाले लोगों के लिए उस राष्ट्र का गीत, उसका ध्वज, उसके राष्ट्रीय प्रतीक क्यों धार्मिक आस्था एवं विश्वास के विपरीत हो जाते हैं? जबकि ये सभी अपने देश के महान इतिहास, इसकी परंपराओं और बिना किसी धर्म, भाषा, क्षेत्र भेद के आपसी भाईचारे की भावना को बढ़ावा देते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास करार देते हुए उसे खारिज कर योगी सरकार के आदेश पर हाई कोर्ट की मुहर लगा दी है। अब तो कट्टरपंथियों को जुबान बंद कर लेनी ही चाहिए। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रगान राष्ट्रीय अखंडता, पंथनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक भावना को प्रखर करता है। संविधान का अनुच्छेद 51ए नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों का वर्णन करता है और उसमें राष्ट्रगान को भारत की आजादी का अभिन्न हिस्सा माना गया है। इसे पूर्ण सम्मान देना और इसके सम्मान की रक्षा करना भारत के हर नागरिक का कर्त्तव्य है। संवैधानिक दृष्टि से राष्ट्रगान के सम्मान को सुनिश्चित करना सरकार एवं कानून-व्यवस्था की भी जिम्मेदारी है। इसी जिम्मेदारी को निभाते हुए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने आदेश जारी कर सभी मदरसों में राष्ट्रगान गाना और राष्ट्रध्वज फहराना अनिवार्य कर दिया था। इस शासनादेश को एक अधिवक्ता शाहिद अली सिद्दिकी ने कोर्ट में चुनौती दी थी। क्या सोचकर उन्होंने इस आदेश को चुनौती दी? कैसे उनकी नजर में उत्तर प्रदेश सरकार का यह आदेश त्रुटिपूर्ण है? उनकी दलील थी कि शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को राष्ट्रगान के लिए विवश नहीं किया जाए। ऐसा करने का अर्थ है जबरदस्ती राष्ट्रभक्ति को थोपना। लेकिन याचिकाकर्ता अपनी दलीलों के समर्थन में एक भी साक्ष्य पेश नहीं कर पाए, जिससे यह साबित हो कि राष्ट्रगान गाने से उनकी धार्मिक आस्था और विश्वास पर कोई प्रभाव पड़ा हो। खबरों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के ज्यादातर मदरसों ने सरकार के आदेश का पालन किया है। लेकिन उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के दरगाह आला हजरत से मदरसों में राष्ट्रगान न गाए जाने का फरमान जारी हुआ था। इसे देखते हुए सरकार अब कड़े कदम उठा सकती है। सरकार को कड़े कदम उठाने भी चाहिएं। प्रश्न राष्ट्रीयता का है, उसकी मजबूती का है, उसके प्रति राष्ट्र के नागरिकों की निष्ठा एवं दायित्व का है। कोई भी धर्म, जाति या भाषा राष्ट्रीयता से ऊपर नहीं हो सकती। इन दिनों घटनाचक्र ऐसा चला कि दो-चार मुद्दों को छोड़कर अन्य राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दे गौण हो गए। पूरा देश दर्शक बनकर देख रहा है कि किस तरह  भारत में कट्टरपंथी ताकतें कभी तिरंगे का, कभी राष्ट्रगान का, कभी वंदेमातरम् का, तो कभी सरस्वती वंदना का विरोध करती रहती हैं। किसी को एक शब्द पर आपत्ति तो किसी को किसी क्षेत्र के नाम पर। कट्टरपंथी एक शब्द के उच्चारण से घबराते हैं, पर उनकी अज्ञानता है, हठधर्मिता है या कट्टरपन है। यह तो वही जानें, परंतु वह माटी जिसे हम शीश नवाते हैं, शीश पर धारण करते हैं, जिन हवाओं में हम सांस लेते हैं, उसे अगर नमन करें तो इसमें कौन सी भावना आहत हो जाती है। एक गंभीर एवं संवेदनशील प्रश्न है, जो बार-बार राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को खंडित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन कब तक हम राजनीति करने वाले संकीर्ण एवं स्वार्थी लोगों के साये में देश को संकट के बादलों में धकेलते रहेंगे? कब तक इस तरह की देश को बांटने एवं तोड़ने की कोशिशों को प्रोत्साहन देते रहेंगे? लालकिले की प्राचीर पर खड़े होकर राष्ट्रध्वज की छाया में पूरे देश को देखें, तो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब समान दिखाई देते हैं। वहां से राष्ट्र का अतीत, वर्तमान और भविष्य दिखाई देता है। राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रगान आजादी एवं राष्ट्रीय अखंडता के लिए दिए गए बलिदानों का पवित्र प्रतीक है। इनसे जुड़ने एवं इनके प्रति निष्ठा व्यक्त करने का अर्थ मात्र औपचारिक होना नहीं होता, बल्कि अपने आपको देश की अखंडता के लिए संकल्पपूर्वक प्रस्तुत करना होता है। सवाल यह है कि आखिर कट्टरपंथियों को मदरसों पर राष्ट्रध्वज फहराने, राष्ट्रगान गाने में दिक्कत क्या है? जिसे राष्ट्रगान गाने से परहेज है, उनका आखिर किस मुद्दे से और किस आधार पर यह कहना है कि उससे राष्ट्रभक्ति का सबूत न मांगा जाए? राष्ट्रवाद पहली प्राथमिकता है, यह भारत की उदारता है कि यहां सभी धर्मों, जातियों, भाषाओं, वर्गों के लोगों को समानता से जीने का माहौल उपलब्ध है, लेकिन उदारता का अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता कि लोग राष्ट्रीयता को ही गौण कर दें। राष्ट्रध्वज हो या राष्ट्रगान, राष्ट्र की अस्मिता एवं अस्तित्व का प्रतीक है। दरअसल, आम लोग देश के प्रति अपनी भावनाएं जाहिर करने को लेकर पूरी तरह सहज रहते हैं। लेकिन कई बार निहित स्वार्थी एवं संकीर्ण तत्त्व इस तरह के मामलों को विवादित बना देने में ही अपनी शान समझते हैं। आम लोगों को उससे शायद ही कोई मतलब होता हो, लेकिन विवाद की स्थिति में अकसर उन पर भी अंगुलियां उठने लगती हैं। इस बात से शायद ही किसी को आपत्ति हो कि देश के प्रति भावनात्मक अभिव्यक्तियां अगर बिना किसी विवाद और दबाव के सामने आएं, तो अपने असर में वे स्थायी नतीजे देने वाली होंगी। उससे अंततः देश को ताकत मिलेगी।


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