विवेकपूर्ण मताधिकार की जिम्मेदारी

By: Oct 9th, 2017 12:02 am

डा. ओपी शर्मा

लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार हैं

हिमाचली मतदाता हर दल और नेता का नजदीक से आकलन और मूल्यांकन करने लगा है और इसी के आधार पर अपने बहुमूल्य मताधिकार का प्रयोग करते हुए अपनी सरकार भी चुनेगा। लोकतंत्र में मताधिकार का बड़ा महत्त्व है, बल्कि दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो मताधिकार ही सब कुछ है…

रैलियों के बढ़ते शोर के साथ महसूस होने लगा है कि चुनावी पहर अब दूर नहीं। ऐसे में मतदाता हर दल और नेता का नजदीक से आकलन और मूल्यांकन करने लगा है और इसी के आधार पर अपने बहुमूल्य मताधिकार का प्रयोग करते हुए अपनी सरकार भी चुनेगा। लोकतंत्र में मताधिकार का बड़ा महत्त्व है, बल्कि दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो मताधिकार ही सब कुछ है। इसी अधिकार से जन अपने प्रतिनिधि और  सरकार चुनते हैं। वोट करते हैं, वोट के द्वारा अपना प्रतिनिधि चुनते हैं, जिसे जनादेश कहते हैं। इसके इसी महत्त्व के आधार पर कहा जा सकता है कि यह अधिकार आपसे थोड़ी जिम्मेदारी की आशा रखता है। जिम्मेदारी यह कि आप ऐसे प्रत्याशी को मत दें, जिसे आप सही और सबसे ठीक समझते हैं। मताधिकार का इस्तेमाल बोझ या दान समझ कर न करें। युवा देश व प्रदेश की शक्ति है। युवा राष्ट्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अपनी कर्मठता, सक्रियता व सामर्थ्य से अपनी ऊर्जा से नई शक्ति का संचार करता है। चुनावों में नए चेहरे वोटर के रूप में सामने आए हैं। वे विवेकपूर्ण ढंग से मतदान कर वोट के अधिकार का प्रयोग कर नई सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 2014 के चुनाव में युवाओं का प्रतिशत ज्यादा रहा है। वे नेता न थे या चुनाव न लड़ रहे थे, परंतु मतदाता के तौर पर उनकी संख्या कहीं ज्यादा थी।

नेशनल इलेक्शन वॉच के सर्वे के मुताबिक 15 वीं लोकसभा के 543 सांसदों से 162 सांसदों के खिलाफ मामले अदालतों में लंबित थे। उन सांसदों के खिलाफ मामले जघन्य अपराध तथा महिला उत्पीड़न से जुड़े थे। आज भी राजनीति में ऐसे आपराधिक छवि वाले नेताओं की कमी नहीं है। इन व्यक्तियों को सबक सिखाना चाहिए और वोट द्वारा राजनीति से बाहर निकालना चाहिए, ताकि राजनीति में सांसद व विधानसभा में अच्छे लोग आएं और देश-प्रदेश का कल्याण व निर्माण करें। हिमाचल के ग्रामवासी सादा जीवन व्यतीत करते हैं। इनमें सच्चाई, ईमानदारी और अपनत्व की भावना विद्यमान होती है। जनमत की शक्ति का सम्मान करते हैं और अवहेलना करने वाले की निंदा की जाती है।  अज्ञानता के कारण युवाओं व महिलाओं का काफी समय से शोषण हुआ है, इसलिए इस उपेक्षित समुदाय को जागरूक करना समय की मांग है। नेता बनने के लिए छोटी आयु उचित समय है। नौजवान एवं वयस्क आयु के व्यक्ति भी नेता बन सकते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश में प्रजातंत्र सुदृढ़ हुआ है। लोकतंत्र का विकेंद्रीकरण हुआ है। संविधान के अनुसार प्रत्येक बालिग युवा व युवती स्त्री-पुरुष को मत देने का अधिकार प्राप्त है। सभी जातियों के स्त्री-पुरुषों को चुने जाने या मत देने का समान अधिकार प्राप्त है। नेतृत्व का अब प्रजातंत्रिकरण हो गया है। चुने गए नेताओं को अधिकार के साथ-साथ कर्त्तव्य भी निभाने हैं। समाजसेवा करनी है। चुनाव में जिस व्यक्ति का बहुमत होगा, वही विजयी होगा। इसलिए मतदाता को अपना दिमाग लगाकर सोच-समझ कर मत देना चाहिए। युवा जो 18-35 वर्ष की आयु में आते हैं, इनमें बहुत से छात्र हैं, जो स्कूलों-कालेजों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ऐसे छात्र जो 18 वर्ष के हो गए हैं, उन्हें वोट अवश्य डालना चाहिए। उन्होंने विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक महान देश भारत की 16वीं लोकसभा के चुनाव 2014 में भाग लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा को बनाने में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने मतदान को लोकप्रिय बनाने के लिए जन जागरूकता कार्यक्रम चलाकर अच्छा कदम उठाया है।

यह कार्यक्रम प्रदेश के हर स्कूल, पंचायत, युवा महिला, स्वयंसेवी संस्थाओं तक पहुंचा है और सभी लोगों ने मिलकर संदेश से जनमानस को शिक्षित, जागरूक व प्रेरित किया है कि प्रत्येक मतदाता को मतदान केंद्र जाकर हर हालत में वोट डालना है। भारत सरकार का चुनाव आयोग, प्रदेश सरकार व अन्य संबंधित पार्टियां व लोग इस चुनाव के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। इसलिए प्रत्येक मतदाता का परम कर्त्तव्य है कि वोट डालकर नेतृत्व चुनाव में योगदान करें। समाज आज कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। महिलाओं की इज्जत तार-तार हो रही है। प्रत्येक दिन कोई न कोई महिला अपराध का शिकार हो रही है। समाज शर्मसार हो गया है। प्रशासन पंगु हो गया है। किसी भी व्यक्ति की सुरक्षा खतरे से खाली नहीं है। देश में घोटाले पर घोटाले हुए हैं। कुछ राजनीतिज्ञों व नौकरशाहों ने भ्रष्टाचार कर जनमानस को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। बड़े-बड़े कारोबारियों ने करोड़ों रुपए कमाकर अपने घर भर लिए हैं, जबकि आम लोगों का जीवन नरक बना है। इस भ्रष्ट संस्कृति को तहस-नहस करने का हमारे पास एक सुनहरा अवसर है। समाज को धर्म, जाति, समुदाय के आधार पर बांटना अच्छा नहीं है। इससे भाईचारा बिगड़ता है और समाज में घृणा पैदा होती है। सब लोग भाई-भाई हैं। मतदाता को भी ऐसे षड्यंत्रों से सावधान रहना होगा। इसलिए मतदाताओं को सबके नेतृत्व के लिए चुनाव प्रक्रिया में बुद्धिमता से भाग लेना चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि प्रदेश का भविष्य हमारी सावधानी पर ही निर्भर करता है।


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